2009-12-28 11:59:00

वाटिकन सिटीः देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देश


श्रोताओ, रविवार 27 दिसम्बर को सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना के पाठ से पूर्व सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने भक्त समुदाय को इस प्रकार सम्बोधित कियाः

“अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,
आज पवित्र परिवार को समर्पित रविवार है। हम अभी भी बेथलेहेम के चरवाहों के साथ तादात्म्य स्थापित कर सकते हैं जो स्वर्गदूत की उदघोषणा सुनकर तुरन्त गुफा के पास आये तथा जिन्होंने "मरियम एवं योसफ के साथ चरनी में लेटे बालक को पाया" (Lk 2:16)। इस दृश्य पर मनन हेतु हम भी तनिक रुकें तथा इसके अर्थ पर चिन्तन करें। ख्रीस्त जन्म के प्रथम साक्षी अर्थात् चरवाहों ने अपने समक्ष केवल बालक येसु को ही नहीं अपितु एक नन्हें से परिवार को भी पायाः माँ, पिता और नवजात शिशु। एक मानव परिवार में जन्म लेकर ईश्वर ने स्वतः को प्रकट करना चाहा और इसीलिये मानव परिवार ईश्वर की प्रतिमा बन गया। ईश्वर त्रियेक है, वह प्रेम की सहभागिता है तथा, ईश्वर के रहस्य एवं उसके द्वारा सृजित मानव के बीच विद्यमान समस्त भिन्नताओं के बावजूद, परिवार वह अभिव्यक्ति है जो ईश प्रेम के गूढ़ रहस्य को प्रतिबिम्बित करता है। ईश प्रतिरूप में सृजित, पुरुष एवं स्त्री विवाह द्वारा "एक शरीर बन जाते हैं"(Gen 2, 24), अर्थात् प्रेम की ऐसी सहभागिता जो नवजीवन को प्रस्फुटित करती है। एक अर्थ में, मानव परिवार, पारस्परिक प्रेम एवं प्रेम की उर्वरकता के कारण, त्रियेक ईश्वर की प्रतिमा है।"

सन्त पापा ने आगे कहाः .......... "आज की धर्मविधि सुसमाचार के उस विख्यात वृत्तान्त की प्रस्तावना करती है जिसमें 12 वर्षीय येसु, अपने माता पिता को बताये बग़ैर, जैरूसालेम के मन्दिर में छूट जाते हैं। आश्चर्य एवं गहन चिन्ता के साथ माता पिता ने उन्हें तीन दिन बाद धर्माचार्यों के साथ विचार विमर्श में लीन पाते हैं। स्पष्टीकरण मांगनेवाली माँ से येसु कहते हैं उन्हें उनके पिता के यहाँ अर्थात् ईश्वर के घर में रहना है (Lk 2,49)। इस वृत्तान्त में किशोर येसु ईश्वर के प्रति तथा उनके मन्दिर के प्रति महान उत्साह से भरे प्रतीत होते हैं। प्रश्न उठता है कि येसु ने अपने पिता की चीज़ों के प्रति प्रेम किससे सीखा? निश्चित रूप से, पुत्र होने के नाते उन्हें पिता यानि ईश्वर का आत्मीय ज्ञान था, उनके साथ उनका गहन, वैयक्तिक एवं चिरस्थायी सम्बन्ध था किन्तु ठोस रूप से उन्होंने उनकी अपनी संस्कृति में, प्रार्थना, मन्दिर के प्रति श्रद्धा एवं इसराएल की संस्थाओं में आस्था का पाठ अपने माता पिता से ही सीखा था। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मन्दिर में रहने का येसु का निर्णय मुख्यतः पिता के साथ उनके आत्मीय सम्बन्ध का फल था, साथ ही वह मरियम एवं योसफ की परवरिश का परिणाम था। यहाँ हम ख्रीस्तीय धर्मशिक्षा के यर्थाथ मर्म को आत्मसात कर सकते हैं: यह वह फल है जिसकी खोज धर्मशिक्षकों एवं ईश्वर में की जा सकती है। ख्रीस्तीय परिवार इस बात के प्रति सचेत रहता है कि सन्तानें ईश्वर का वरदान एवं ईश योजना का अंग हैं। यही कारण है कि वे उन्हें अपनी सम्पत्ति नहीं मान सकते अपितु ईश योजना में सहयोग करते हुए उनकी सेवा करने तथा उन्हें यथार्थ स्वतंत्रता यानि कि ईश इच्छा के प्रति समर्पण का पाठ पढ़ाने हेतु बुलाये जाते हैं। ईश्वर के प्रति इस "हाँ" का पूर्ण आदर्श कुँवारी मरियम है। उन्हीं के संरक्षण में हम सभी परिवारों को रखते तथा, विशेष रूप से, बहुमूल्य शिक्षा सम्बन्धी मिशन के लिये प्रार्थना करते हैं।"

देवदूत प्रार्थना से पूर्व अपने सन्देश में सन्त पापा ने स्पेन के काथलिक धर्माध्यक्ष एवं विश्वासियों को भी सम्बोधित किया जो पवित्र परिवार को समर्पित महापर्व के उपलक्ष्य में मैडरिड के प्लाज़ा दे लीमा में ख्रीस्तयाग के लिये एकत्र थे। इस समारोह में एकत्र लगभग दस लाख लोगों को सन्त पापा ने विडियो से सम्पर्क कर अपना सन्देश दिया।

स्पानी भाषा में उन्होंने कहाः ........"एक खास सेवा जो ख्रीस्त के अनुयायी अर्पित कर सकते हैं वह है दृढ़तापूर्वक इस सत्य का साक्ष्य देना कि एक पुरुष एवं एक स्त्री पर आधारित परिवार ही सच्चा परिवार है, ताकि परिवार को सुरक्षा प्रदान की जा सके तथा उसे सब प्रकार से समर्थन दिया जा सके। उन्होंने कहा कि परिवार को प्रोत्साहन देना अनिवार्य है क्योंकि परिवार मानवजाति के वर्तमान और उसके भविष्य के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है।"

सन्त पापा ने कहाः "परिवार वह सर्वश्रेष्ठ पाठशाला है जहाँ हम उन मूल्यों की शिक्षा पाते हैं जो व्यक्ति को प्रतिष्ठा प्रदान करते तथा लोगों को महान बनाते हैं। परिवार में ही दुःख और सुख बाँटा जाता तथा एक ही परिवार की छत्रछाया में रहने के कारण व्यक्ति प्रेम का अनुभव पाता है।"


इतना कहकर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने, सबके प्रति मंगलकामनाएँ अर्पित कीं। तदोपरान्त सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में उपस्थित तीर्थयात्रियों के साथ उन्होंने देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सब पर प्रभु की शांति का आव्हान कर सबको अपना प्रेरितिक आर्शीवाद प्रदान किया -------------







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