2009-12-16 12:49:36

बुधवारीय- आमदर्शन समारोह के अवसर पर
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश
16 दिसंबर, 2009


वाटिकन सिटी, 16 दिसंबर, 2009। बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने पौल षष्टम सभागार में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया। उन्होंने अंग्रेजी भाषा में कहा-


मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, आज की धर्मशिक्षा माला में हम मध्ययुगीन ईसाई संस्कृति के बारे में चिन्तन करते हुए 20वीं सदी के महान् ईशशास्त्री सलिसबरी के जोन बारे में विचार करें। वे एक महान् ईशशास्त्री और ओजस्वी दर्शनशास्त्री थे।

उनका जन्म इंगलैंड में हुआ था और उनकी पढ़ाई-लिखाई पेरिस और चार्टरेस में हुई।

जोन ने संत थोमस बेकेट के साथ मिलकर कार्य किया था। और जब राजा हेनरी द्वितीय के समय में चर्च और राजा के बीच जो समस्या के समाधान में उन्होंने अपना योगदान दिया।

बाद में वे चार्टरेस का धर्माध्यक्ष रूप में अपनी मृत्यु तक चर्च की सेवा की। उन्होंने ' मेटालोजिकोन ' नामक एक किताब लिखी जिसमें उन्होंने इस बात को बताया है कि सत्य दर्शनशास्त्र क्या है।

उन्होंने बताया कि सच्चा दर्शनशास्त्र लोगों को अपना ज्ञान देता है ताकि सच्चाई और अच्छाई के आधार पर एक नये समाज का निर्माण किया जा सके।

जोन ने इस बात को स्वीकार किया है कि मानव की बुद्धि सीमित है फिर उसमें इतनी क्षमता है कि वह वार्ता और विचारों के आदान-प्रदान के द्वारा सत्य को प्राप्त कर सकती है।

उन्होंने बताया कि हमारा विश्वास हमें मदद करता है ताकि हम अपने विवेक का उपयोग कर ईश्वरीय ज्ञान को प्राप्त कर सकें। उनकी एक और किताब जिसे ' पोलिकरातिकुस ' के नाम से जाना जाता है।

इस किताब में जोन ने मनुष्य की बुद्धि या विवेक की क्षमता के बारे में लिखते हुए कहते हैं कि मनुष्य विवेक के द्वारा सत्य को पा सकता है।

जोन को जो अंतर्दृष्टि मिली थी उससे आज भी मानव जाति को लाभ हो सकता है।
आज मानव जीवन और उसकी मर्यादा खतरे में हैं क्योंकि मानव नियमों को मानव जीवन में लादना चाहता है।

आज ज़रूरत है कि व्यक्ति उन प्राकृतिक नियमों, न्याय और सत्य के सिद्धांतों उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से करे तो मानव का सच्चा कल्याण होगा।

इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।

उन्होंने इंगलैंड आयरलैंड, केन्या नाइजिरिया अमेरिका और देश-विदेश से आये तीर्थयात्रियों, उपस्थित लोगों और उनके परिवार के सब सदस्यों पर प्रभु की कृपा और शांति की कामना करते हुए कहा कि वे येसु की ज्योति आनन्द और शांति को सबों को बाँटे, और अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।















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