बुधवारीय - आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश
रोम, 25 नवम्बर, 2009। बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने संत
पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं
में सम्बोधित किया। उन्होंने अंग्रेजी भाषा में कहा - . प्रिय भाईयो एवं बहनों,
आज की धर्म शिक्षामाला में हम मध्ययुगीन ईसाई संस्कृति के बारे में चिंतन को जारी रखते
हुए पारिस के संत विक्टोर के जीवन पर विचार करें। संत विक्टोर 20वीं सदी के एक महान्
ईशशास्त्री थे।
संत विक्टोर ने इस बात पर बल दिया कि पवित्र धर्मग्रंथ को समझने
के लिये इसके शाब्दिक और ऐतिहासिक पक्ष पर बल दिया जाना चाहिये।
ऐसा करने से
विवेक और विश्वास ईश्वर के मुक्ति इतिहास को समझने में हमारी सहायता प्रदान कर सकते हैं।
.
इस संबंध में संत विक्टोर ने अपने विचार प्रस्तुत किया जो संस्कारों के बारे
में है जिसे ' साक्रमेंट ऑफ क्रिश्चियन फेथ ' अर्थात् ईसाई विश्वास के संस्कार के नाम
से गया।
इसमें उन्होंने साक्रमेंत या संस्कार को पारिभाषित किया है। इसके अनुसार
संस्कारों का महत्त्व सिर्फ इसलिये नहीं है कि येसु ने इसे स्थापित किया है पर यह भीतरी
कृपा का बाहरी रूप है।
संत विक्टोर का एक शिष्य रिचर्ड ने बताया कि धर्मग्रंथ
एक आध्यात्मिक तरीका है जिसके द्वारा मानव आध्यात्मिक रूप से सुदृढ़ होता है और विवेक
की प्राप्ति करता है।
रिचर्ड ने पवित्र तृत्व पर एक किताब लिखे जिसमें उन्होंने
इस पवित्र तृ्त्वमय ईश्वर को उनके आपसी प्रेम के आधार पर समझाने का प्रयास किया है।
प्रेम
दो व्यक्तियों के बीच का आपसी लेन-देन का संबंध है और यह तीसरे व्यक्ति में परिपूर्ण
होता था।
इस प्रकार विक्टर और रिचर्ड ने ईशशास्त्र को विवेक और विश्वास पर आधारित
किया है। और ये हमें बताते हैं कि यदि हम सुसमाचार को विश्वास और विवेक के द्वारा समझते
हैं तो इससे हम बहुत खुशी प्राप्त होगी और हम पवित्र तृत्व के अनन्त प्रेम को समझ पायेंगे।
इतना
कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।
उन्होंने जापान, डेनमार्क, और अमेरिका
के तीर्थयात्रियों, उपस्थित लोगों और उनके परिवार के सब सदस्यों पर प्रभु की कृपा और
शांति की और उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।