चर्च मानवाधिकारों की रक्षा और न्याय के लिये कार्य करे - पोप
वाटिकन सिटी, 14 नवम्बर, 2009। संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने कहा है कि चर्च का
दायित्व है कि वह न्याय के लिये कार्य करे और सुसमाचार का प्रचार विश्वास और प्रेम जैसे
गुणों के द्वारा करे।
संत पापा न उक्त बातें उस समय कहीं जव वे कोर उनूम की
परमधर्मपीठीय समिति की 28 वीं पूर्ण सम्मेलन में लोगों को संबोधित कर रहे थे। इस सभा
का आरंभ गुरुवार को आरंभ हुआ और शनिवार 14 नवम्बर को समाप्त होगा।
संत पापा ने
आगे कहा कि सुसमाचार के प्रचार के मार्ग में दो बातों का तनाव सदा बना रहता है। एक तो
मनुष्य का ह्र्दय और दूसरा दुनियावी वातावरण।
उन्होंने इस बात को भी बताया कि
हाल में प्रकाशित दस्तावेज़ ' कारितास इन वेरिताते ' अर्थात् ' सत्य में प्रेम '
और अफ्रीकी धर्माध्यक्षों की द्वितीय महासभा में भी इसकी चर्चा की गयी है।
पोप
ने कहा कि कलीसिया आम लोगों के जीवन को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती है। उन्होंने लोगों से
आग्रह किया कि वे लोगों के विकास के लिये आगे आयें ताकि न्याय पर आधारित समाज का निर्माण
हो सके।
एक ऐसे समाज का निर्माण जहाँ आम लोगों के अधिकारों का मान्यता दी जा
सके और उन्हें उचित सम्मान दिया जा सके।
उन्होंने इस बात को भी स्पष्ट किया है
कि कलीसिया का यह दायित्त्व नहीं है कि वह सीधे तौर पर लोगों के राजनीतिक जीवन पर हस्तक्षेप
करे या राजनीतिक संरचनाओं को बनाने का प्रयास करे।
कलीसिया का कार्य तो है कि
वह लोगों के ह्रदय को जगृत करे, मानवाधिकारों की रक्षा करे और न्याय के लिये कार्य करे।
संत पापा ने कहा कि विश्वास एक ऐसी आध्यात्मिक ताकत है जो विवेक को शुद्ध करती
है और शक्ति और व्यक्तिगत स्वार्थ के घमंड से व्यक्ति को मुक्त करती है।
इस अवसर
पर संत पापा ने लोगों से कहा कि जो लोग सेवाकार्यों में लगे हुए हैं उन्हें चाहिये कि
वे लोगों को इस बात को बताये कि ईश्वर दयालु हैं और ईश्वर ही सभी चुनौतियों में आशा प्रदान
कर सकते हैं।
कलीसिया को चाहिये कि वह ईश्वरीय प्रेम को लोगों तक पहुँचाने के
लिये ईश्वरीय साधन के रूप में कार्य करे।