संयुक्त राष्ट्र संघ का दायित्व सब लोगों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है
संयुक्त राष्ट्र संघ में वाटिकन के स्थायी पर्यवेक्षक महाधर्माध्यक्ष चेलेस्तीनो मिल्योरे
ने कहा कि हर स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को पूरी तरह लागू करने के लिए राष्ट्रों
को मदद करने में संयुक्त राष्ट्र संघ की विशिष्ट भूमिका है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र
संघ की सामान्य सभा को 10 नवम्बर को सम्बोधित करते हुए कहा कि डेढ़ सौ वर्ष पहले धर्म
को लोगों की अफीम कहा जाता था लेकिन आज, भूमंडलीकरण के संदर्भ में इसे निर्धनों का विटामिन
के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने कहा अंतरधार्मिक संवाद और सहयोग को बढ़ावा देते
समय संयुक्त राष्ट्र संघ का अंतिम लक्ष्य यह होना चाहिए कि यह सब देशों और मानव समाज
के हर अंग को शामिल करे कि वे हर व्यक्ति तथा विश्व के प्रत्येक समुदाय की मर्यादा और
अधिकार को मान्यता प्रदान करें। इसकी रक्षा और प्रसार करें। उन्होंने कहा कि संयुक्त
राष्ट्र संघ का चार्टर और अन्य दस्तावेज न केवल अंतःकरण की मौलिक स्वतंत्रता का पूरा
सम्मान करने और प्रसार करने की पुष्टि करती है बल्कि इसके साथ ही बिना किसी अवरोध के
प्रत्येक व्यक्ति द्वारा धर्म की अभिव्यक्ति और पालन करने का सम्मान और प्रसार किये जाने
की पुष्टि करती है। महाधर्माध्यक्ष मिल्योरे ने कहा कि धर्मों का अनूठा योगदान यह है
कि वे मानव आत्मा को ऊपर उठाती, जीवन की रक्षा करती, कमजोरों को सशक्त बनाती, आदर्शों
को कार्यों में परिणत करती, संस्थानों को शुद्ध करती तथा आर्थिक और गैर आर्थिक असमानताओं
को दूर करने में योगदान करती है।