नैतिक मूल्यों को मजबूत करें ताकि इससे समाज मजबूत हो –संत पापा
वाटिकन सिटी, 31, अक्तूबर, 2009। संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने कहा है कि समाज के विभिन्न
संगठनों को चाहिये कि वे नैतिक मूल्यों को मजबूत करें ताकि इससे समाज मजबूत हो और इसकी
मर्यादा कायम हो।
संत पापा ने उक्त बातें उस समय कहीं जब वे पनामा के राजदूत
देलिया कारदेनास ख्रीस्ती ने 30 अक्तूबर गुरुवार को उनसे मुलाक़ात की।
संत पापा
ने इस बात पर बल दिया कि समाज तब ही सुदृढ़ हो सकता है जब इसके नैतिक मूल्यों को मजबूत
किया जाये।
उन्होंने आगे कहा कि जिन बातों पर समाज को ध्यान देने की आवश्यकता
है वह है सामाजिक न्याय, भ्रष्टाचार के ख़िलाप आन्दोलन, शांति प्रयास गर्भाधान से लेकर
स्वाभाविक मृत्यु तक के मानव जीवन के अधिकार के हनन का विरोध और ऐसे पारिवारिक मूल्यों
की रक्षा जिनके वैवाहिक संबंध नर और नारी से बना हो।
संत पापा ने कहा कि कलीसिया
चाहती है कि वह वर्त्तमान को मजबूत करना चाहती है ताकि हमारा भविष्य उज्ज्वल हो सके।
संत पापा ने साफ शब्दों में कहा है कि कलीसिया का अपना मिशन है जो किसी राष्ट्र
या राजनीतिक पार्टी की योजनाओं से भिन्न है।
उन्होंने कहा कि राज्य के कार्यो
से भिन्न चर्च चाहती है कि वह धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों में अपने को लगाये ताकि
मानव की गरिमा की रक्षा हो सके।
उन्होंने यह भी कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि
कलीसिया तटस्थ बनी रहे। कलीसिया उन सब बातों में राज्य के साथ अपना योगदान देने के लिये
तत्पर है जिससे सबों का कल्याण हो।
इस अवसर पर बोलते हुए संत पापा ने कहा कि
पनामा के सान्ता मरिया ला अनतिगुआ धर्मप्रांत के पाँच सौ वर्ष पूरे हो गये हैं।
इसे
अर्थपूर्ण तरीके से मनाने के लिये लोगों को इस बात पर मनन ध्यान करना चाहिये कि उनका
पारिवारिक और कलीसियाई जीवन कीं नींव कैसी है।
इस अवसर संत पापा ने पनामा के
लोगों के लिये प्रार्थनायें भी चढ़ायीं और कहा कि वे उनका विश्वास मजबूत हो और प्रेरणा
दे ताकि वे राष्ट्र को अपनी उदार सेवा से लाभान्वित कर सकें।
संत पापा ने कहा
है कि देश को मजबूत करने के लिये न्यायिक प्रणाली को व्यवस्थित करने की आवश्यकता है ताकि
लोग ईमानदार और पारदर्शी बन सकें।
यह भी ध्यान देने की बात है कि विकास का लाभ
सबों को मिलना चाहिये।
संत पापा ने इस बात की ओर भी लोगों का ध्यान आकर्षिक किया
कि सेंट्रल अमेरिका की शांति व्यवस्था में पनामा को विशेष भूमिका अदा कर रही है।
और
लोगों को यह बताने का प्रयास कर रही है कि सिर्फ़ आर्थिक और तकनीकि विकास से ही मानव
की सच्ची प्रगति संभव नहीं हो सकती है।