2009-09-28 13:43:35

अंतरकलीसियाई धर्मगुरुओं को संत पापा का संदेश


मेरे अतिप्रिय भाइयों एवं बहनों, मैं खुश हूँ कि मुझे विभिन्न कलीसिया के धर्मगुरुओं से एक साथ मिलने का अवसर प्राप्त हो रहा है।

हमें ज्ञात है कि दो दशकों पूर्व हुए सत्ता परिवर्त्तन के साथ ही कई सकारात्मक बदलाव आये हैं विशेष करके राजनीतिक सहभागिता के क्षेत्र में। मैं यह भी जानता हूँ कि इस बदलाव में ईसाइयों का योगदान अद्वितीय रहा है।

मुझे इस बात की भी जानकारी है कि विभिन्न कलीसियाओं के सदस्य आपसी समझदारी के साथ इस बात के लिये प्रयासरत हैं कि वे एक-दूसरे का साथ दें ताकि शांति और सार्वजनिक हित को बढ़ावा मिले।

फिर भी कई बार यह प्रयास किया जाता है कि ईसाई धर्म के मूल्यों को आम जीवन में हावी होने नहीं दिया जाये।

ऐसा इसलिये कि कई लोग यह सोचते हैं कि ईसाई मूल्यों से समाज का कल्याण नहीं हो सकता है। यह एक समस्या है जिसके समाधान के लिये मैंने अपने दस्तावेज़ ' स्पे साल्भी ' में चर्चा की है।

मैंने वहाँ बताया है कि मानव के बौद्धिक और सार्वजनिक जीवन का सुसमाचार से कृत्रिम अलगाव हमें इस बात के लिये प्रेरित करे कि हम 'आधुनिकता की आलोचना ' और 'आधुनिक ख्रीस्तीय जीवन की आलोचना ' करें ताकि इससे मानव के जीवन में आशा का संचार हो।


भाइयो एवं बहनों, आज ईसाई धर्म विभिन्न मुद्दों में लोगों का मार्गदर्शन करना चाहती है, विशेष करके नैतिक और व्यावहारिक बातों में।


मैं आप लोगों के सामने अंतरकलीसियाई समिति के अध्यक्ष डॉक्टर चेरनी की बातों को दुहराना चाहता हूँ। उन्होंने जोन पौल द्वितीय द्वारा 17 दिसंबर सन् 1999 को जान हुस के नाम पर पहल किये गये अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठि सेमिनार के बारे में कहा था कि इस प्रकार के सेमिनार न केवल ख्रीस्तीयों की एकता को सुदृढ़ करे वरन इससे पूरी यूरोपीय समुदाय को लाभ मिले।

आज में इस बात को पूरे विश्वास के साथ बतलाना चाहता हूँ कि येसु का संदेश पुराना है, पर सदैव नया है जो सबों को एक नयी आशा प्रदान करता है। यूरोप का इतिहास ईसाई धर्म का इतिहास है।

अगर यूरोप अपने अतीत को याद करे तो उसे भविष्य को संवारने में मदद मिलेगी।
यही कारण है कि ईसाई आज भी बोहेमिया के लोग संत अदालबर्ट और सत अगनेस के जीवन प्रेरणायें पाते रहे हैं।

उनके जीवन से लोगों ने इस बात को सीखा कि प्रत्येक ईसाई को चाहिये कि अपने धर्म के बारे में बताने से न घबराये पर धर्म की सच्चाइयों को दुनिया को बताये।

सुसमाचार चाहता है कि अपने संदेश से हर समय और युग के लोगों को एक नयी समझदारी मिले ताकि वे मानव का उचित सम्मान कर सकें।

यह चाहता है कि इसके संदेश से यूरोप के लोगों का आध्यात्मिक और नैतिक मार्गदर्श हो ताकि वे अन्य संस्कृतियों और धर्मों के लोगों के साथ सार्थक वार्ता के लिये पहल कर सकें।

कृतज्ञता के भाव से पूर्ण मैं सबों को उसी ईश्वर के हाथों सौपता हूँ जो हमारा रक्षक और मुक्तिदाता है।










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