2009-09-14 16:33:58

देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा द्वारा दिया गया संदेश


श्रोताओ, संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने रविवार 13 सितम्बर को रोम परिसर में कास्तेल गोंदोल्फो स्थित प्रेरितिक निवास के ग्रीष्मकालीन प्रांगण में देश विदेश से आये तीर्थयात्रियों और पर्यट्कों के साथ देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया। इससे पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित करते हुए कहाः

अतिप्रिय भाईयो और बहनो,

पूजनधर्मविधि पंचांग में सामान्य काल के 24 वें रविवार को ईश वचन हमारे सामने दो अति महत्वपूर्ण सवाल रखता है जिसका सार है आपके लिए नाजरेथ के येसु कौन हैं ? और दूसरा- क्या आपका विश्वास कार्य में व्यक्त होता है या नहीं ? पहला सवाल हम आज के सुसमाचार में पाते हैं जहाँ येसु अपने शिष्यों से कहते हैं- तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ ? संत पेत्रुस का अविलम्ब स्पष्ट है- आप येसु अर्थात् मसीह हैं ईश्वर के अभ्यंजित जन और उनके लोगों को बचाने के लिए भेजे गये हैं।

बहुसंख्यक लोगों के समान नहीं लेकिन पेत्रुस और अन्य शिष्यों ने विश्वास किया कि येसु महान गुरु या नबी सहित इससे कहीं अधिक हैं। वे मानते हैं कि ईश्वर उन्में विद्यमान हैं और उनमें क्रियाशील हैं। इस विश्वास की उदघोषणा करने के तुरंत बाद यद्यपि जब येसु खुले ऱूप से घोषणा करते हैं कि उन्हें घोर दुःख उठाना और मार डाला जाना होगा तब वही पेत्रुस पीड़ा और मृत्यु के परिप्रेक्ष्य का विरोध करता है। इसलिए येसु उसे कड़े शब्दों में कहते हैं ताकि वह समझे कि यह विश्वास करना पर्याप्त नहीं है कि वे ईश्वर हैं लेकिन दया की भावना से संचालित होकर वह भी उसी पथ पर क्रूस के मार्ग पर उनका अनुसरण करे। येसु हमें दर्शनशास्त्र सिखाने के लिए नहीं आये लेकिन हमें रास्ता दिखाने आये, वस्तुतः वह मार्ग जो जीवन की ओर ले जाता है। यह प्रेम मार्ग है जो कि सच्चे विश्वास की अभिव्यक्ति है। यदि एक व्यक्ति अपने पड़ोसी को शुद्ध और उदार ह्रदय से प्यार करता है तो इसका अर्थ है कि वह वास्तव में ईश्वर को जानता है। यदि एक व्यक्ति कहता है कि वह विश्वासी है लेकिन वह अपने भाईयों को प्यार नहीं करता है तो वह सच्चा विश्वासी नहीं है। ईश्वर उसमें निवास नहीं करता है।

संत जेम्स इस रविवार के दूसरे पाठ में स्पष्ट रूप से इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि यदि विश्वास के साथ कर्म नहीं किया जाये तो यह मृत है। इस संदर्भ में मैं कलीसिया के महान धर्माचार्यों में से एक संत योहन क्रिसोस्तम के कथन को उद्धृत करते हुए कहना चाहता हूँ जिसका पूजनधर्मविधि पंचांग आज स्मरण करती है। संत जेम्स के पत्र के उक्त अंश पर टिप्पणी करते हुए वे लिखते हैं- पिता और पुत्र तथा पवित्र आत्मा में एक व्यक्ति का सही विश्वास है लेकिन यदि वह सही मार्ग पर नहीं चलता है तो उसका विश्वास उसकी मुक्ति के लिए व्यर्थ होगा। इसलिए जब तुम सुसमाचार में पढ़ते हो - वे तुझे एक ही सच्चे ईश्वर को और ईसा मसीह को जिसे तूने भेजा है जान लें, यही अनन्त जीवन है, यह न सोचो कि यह वाक्य हमें बचाने के लिए पर्याप्त है, बल्कि पहले से कहीं अधिक शुद्ध जीवन जीना और शुद्ध आचरण करना।

प्रिय मित्रो, कल हम पवित्र क्रूस के विजय का तथा इसके अगले दिन दुःखी कुँवारी माता मरियम का पर्व मनाएँगे। कुँवारी मरियम जिन्होंने ईश्वर के वचन पर विश्वास किया। उन्होंने जब देखा कि उनके पुत्र को अस्वीकार कर अपमानित किया गया तथा क्रूस पर चढ़ाया गया तब भी उन्होंने ईश्वर पर अपना विश्वास नहीं खोया। बल्कि वे येसु के साथ रहीं अंतिम समय तक वे उनके साथ पीड़ा झेलते हुए प्रार्थना करती रहीं। और उन्होंनें उनके पुनरूत्थान के आलोकित करते सूर्य़प्रकाश को देखा। आइये हम उन से सीखें कि विनम्र सेवा का जीवन जीकर अपने विश्वास की साक्षी दें। प्रेम और सत्य के सुसमाचार के प्रति निष्ठावान रहने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर कष्ट और पीड़ा का सामना करने के लिए तैयार रहें और इस तथ्य के प्रति सुनिश्चित रहें कि हम जो कुछ करें वह व्यर्थ नहीं जाएगा।

इतना कहने के बाद संत पापा ने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया और सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।








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