देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें का संदेश
श्रोताओ, रविवार 23 अगस्त को रोम परिसर में कास्तेल गोंदोल्फो स्थित प्रेरितिक प्रसाद
के प्रांगण में देश विदेश से आये हजारों तीर्थयात्रियों के साथ संत पापा बेनेडिक्ट 16
वें ने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया। उन्होंने इस प्रार्थना से पूर्व तीर्थयात्रियों
और पर्य़टकों को सम्बोधित करते हुए कहा-
अतिप्रिय भाईयो और बहनो
पूजन
धर्मविधि ने विगत कुछ रविवारों में हमारे चिंतन के लिए संत योहन के सुसमाचार के 6 वें
अध्याय को दिया जिसमें येसु स्वयं को स्वर्ग से उतरी जीवन की रोटी के रूप में प्रस्तुत
करते हैं। वे यह भी कहते हैं कि यदि कोई इस रोटी को खाएगा तो वह अनन्तकाल तक जीवित रहेगा
तथा जो रोटी मैं दूँगा वह संसार के जीवन के लिए मेरा शरीर है।
उन यहूदियों के
लिए यह गहन वाद विवाद का विषय था जो कह रहे थे कि यह हमें खाने के लिए अपना शरीर कैसे
दे सकता है. येसु जोर देते हैं कि यदि तुम मानव पुत्र का शरीर नहीं खाओगे और उसका रक्त
नहीं पियोगे तो तुम्हें जीवन प्राप्त नहीं होगा। आज हम सामान्य काल के 21 वें रविवार
को इस पाठ के अंतिम भाग पर मनन चिंतन करते हैं जिसमें चौथे सुसमाचार लेखक संत योहन, लोगों
और शिष्यों की प्रतिक्रियाओं पर चर्चा करते हैं कि येसु के शब्दों से उत्पन्न अपयश को
देखते हुए अनेक लोगों ने जो अबतक येसु का अनुसरण कर रहे थे कहा- यह तो बहुत कठोर शिक्षा
है, इसे कौन मान सकता है और उस समय से अनेक शिष्यों ने येसु का साथ छोड़ दिया. येसु इसके
बावजूद अपने वक्तव्य में कोई नरमी नहीं लाते हैं वस्तुतः वह बारह शिष्यों की ओर मुड़कर
सीधे पूछते हैं- क्या तुमलोग भी चले जाना चाहते हो. यह विचारोतेजक सवाल न केवल तात्कालीन
लोगों को लेकिन हर युग के विश्वासियों और स्त्री पुऱूषों को सम्बोधित है। आज भी, ख्रीस्तीय
विश्वास के कारण कुछ लोग अपकीर्ति का सामना करते हैं। येसु की शिक्षा कठिन प्रतीत होती
है, इसे दैनिक अभ्यास में लागू करने में मुश्किल लगता है। इसलिए कुछ लोग इससे इंकार करते
और येसु को छोड़ देते हैं। वैसे लोग भी हैं जो समय के फैशन के अनुरूप ईशवचन को अनुकूल
बनाने का प्रयास करते हैं और इस तरह से ईशवचन के अर्थ और मूल्य को विकृत करते हैं।
क्या
तुमलोग भी चले जाना चाहते हो यह विचलित करनेवाली आवाज हमारे दिलों में प्रतिध्वनित होती
है और हममें से प्रत्येक जन के निजी उत्तर की प्रतीक्षा करती है। येसु वास्तव में सतही
और औपचारिक अनुसरण से संतुष्ट नहीं हैं, उनके लिए प्रथम और उत्साही जुड़ाव पर्याप्त नहीं
है। इसके विपरीत हमें हमारे जीवन में उनकी सोच और इच्छा में शामिल होना है। उनका अनुसरण
करने से दिल में आनन्द भर जाता है तथा हमारे अस्तित्व को पूर्ण अर्थ प्राप्त होता है
लेकिन यह कठिनाईयों और त्याग को लाता है क्योंकि बहुधा हमें प्रचलित धारा के विरूद्ध
जाना होता है। क्या तुम भी चले जाना चाहते हो येसु के इस सवाल के जवाब में शिष्यों की
ओर से सिमोन पेत्रुस उत्तर देते हैं प्रभु हम किसके पास जायें, आपके ही शब्दों में अनन्त
जीवन का सन्देश है। हम विश्वास करते और जानते हैं कि आप ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुऱूष
हैं।
अतिप्रिय भाईयो और बहनो, अपनी मानवीय कमजोरियों के प्रति जागरूक रहकर
लेकिन पवित्र आत्मा की शक्ति से बल पाकर जो स्वयं को व्यक्त करते तथा येसु के साथ सामुदायिकता
में प्रदर्शित करते हैं हम भी प्रेरित संत पेत्रुस के जवाब को दुहरा सकते हैं। विश्वास,
मानव के लिए ईश्वर का उपहार है और इसके साथ ही यह मानव का ईश्वर के प्रति स्वतंत्र और
पूर्ण समर्पण है। विश्वास, ईश्वर के वचन को विनम्रतापूर्वक सुनना है, यह हमारे कदमों
के लिए ज्योति है जो हमारे पथ को आलोकित करती है। यदि हम विश्वासपूर्वक अपने दिल को येसु
के लिए खोलेंगे, यदि हम अपने आप को उनके द्वारा जीतने देंगे तो हम भी आर्स के पल्ली पुरेहित
के समान अनुभव कर सकेंगे कि इस पृथ्वी पर हमारी एकमात्र खुशी है ईश्वर को प्रेम करना
तथा जानना कि वे हमें प्रेम करते हैं। आइय़े माता मरियम से याचना करें कि प्रेम से परिपूरित
इस विश्वास को हम सदैव जीवित रखें जिसने उन्हें, नाजरेथ की विनम्र बालिका को, ईश्वर की
माता और सब विश्वासियों का आदर्श बना दिया।
इतना कहकर संत पापा ने देवदूत संदेश
प्रार्थना का पाठ किया तथा सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।