पुरोहितों के संरक्षक संत जोन मेरी नियन्नी के ' दियेस नतालिस ' की 150वीं वर्षगाँठ
के अवसर पर पुरोहितों को संबोधित संत पापा के पत्र के कुछ अंश
प्रिय पुरोहित भाइयो, इस वर्ष 19 जून शुक्रवार के दिन होने वाला अति पवित्र ह्रदय
का महोत्सव का बहुत महत्व है। हम इसी दिन परंपरा के अनुसार पुरोहितों की पवित्रता के
लिये प्रार्थना करते हैं।
मैंने यह उचित समझा है मैं इसी दिन में आने वाले वर्ष
को " पुरोहितों का वर्ष " घोषित करुँ। आने वाले साल पुरोहितों के लिये ईश्वर के प्रति
अपने समर्पण को दृढ़ करने का वर्ष होगा ताकि वे सुसमाचार के मूल्यों का साक्ष्य और अधिक
उत्साह और प्रभावपूर्ण तरीके से दे सकें।
पुरोहितों के लिये घोषित यह साल अगले
बर्ष पवित्र ह्रदय के महापर्व के दिन ही समाप्त होगा। संत जोन मेरी वियन्नी बार-बार कहा
करते थे कि पुरोहितों का जीवन येसु के पवित्र ह्रदय के प्रेम का जीवन है।
इस
बात पर अगर हम मनन-चिन्तन करें तो हमारा ह्रदय कृतज्ञता की भावना से भर जायेगा क्योंकि
पुरोहित न केवल कलीसिया के लिये वरदान हैं पर पुरोहिताई अपने-आप के लिये ही एक अनुपम
वरदान हैँ।
पुरोहित येसु के प्रतिनिधि हैं और वे येसु के वचन और मिशन को दुनिया
में आगे बढ़ाते हैं और प्रयास करते हैं कि वे येसु के समान जीवन व्यतीत करें।
आज
मैं उन सभी पुरोहितों को कैसे भूल सकता हूँ जो छिपे रूप में येसु के कार्य को आगे बढ़ा
रहें हैं। आज मैं उनके कार्यों की प्रशंसा करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि विभिन्न
चुनौतियों के बावजूद अपने बुलाहट में अडिग रहें।
भाइयो मुझे याद है जब मैं पहली
बार एक पल्ली पुरोहित के साथ कार्य किया था। उन्होंने मेरे लिये एक अच्छे पल्ली पुरोहित
का जो उदाहरण छोड़ दिया है उसे मैं कभी भी नहीं भूल सकता हूँ चाहे वह लोगों से मिलने-जुलने
के बारे में हो या बीमारों को देखने जाने के संबंध में हो। पुरोहितों को कई बार अपनी
कमजोरियों या आपसी नासमझी के कारण की चुनौतियों और दुःखों का सामना करना पड़ता है पर
सबस अच्छी बात तो यह है कि काथलिक कलीसिया इन गलतियों को नम्रतापूर्वक स्वीकार करती है।
कई बार तो ऐसे समय में पुरोहितों के उनकी सहनशीलता और येसु के प्रति उनके प्यार की तारीफ़
ही की जा सकती है।
हमने अनेक पुरोहितों से बहुत कुछ सीखे पर आज हम संत मेरी वियन्नी
से एक बात तो अवश्य ही सीख सकते हैं वह है उनकी नम्रता जो एक ऐसे भले चरवाहे थे जिन्हें
अपनी रेवड़ की देख-रेख करने में कभी भी थकान का अनुभव नहीं होता था।
वह कहा करता
था कि पुरोहित होना कितना बड़ा वरदान है काश पुरोहित इस बात को समझते कि उनके एक शब्द
उच्चारते ही ईश्वर परमप्रसाद में हाजिर हो जाते हैं।
प्रार्थना के बारे में संत
मेरी वियन्नी कहा करते थे कि हम प्रभु की उपस्थिति में अपना दिल खोलें वही सबसे उत्तम
प्रार्थना है।
क्षमाशील पिता ईश्वर के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा
नहीं है कि पापी ईश्वर की दौड़ता है पर दयालु ईश्वर ही पापियों और कमजोरों को खोजता
रहता है।
संत पापा ने इस अवसर पर पोप पौल षष्टम् के बातों की याद दिलायी और कहा
आज के लोग हमारे उदाहरणों से ज़्यादा प्रभावित होते हैं हमारे प्रवचनों से नहीं।
उन्होंने
कहा कि पुरोहितों को चाहिये के वे लोकधर्मियों में निहित अच्छाइयों और वरदानों को पहचानें
और उनका उपयोग करते हुए मिलकर सुसमाचार का साक्ष्य दें।
धर्माध्यक्ष, पुरोहित
और लोकधर्मी एक साथ मिलकर कार्य करेंगे और यूखरिस्तीय समारोह को अपने जीवन का केन्द्र
मानेंगे तब ही वे विश्व के लिये ईश्वरीय वरदान सिद्ध हो पायेंगे।
संत जोन मेरी
वियन्नी के समान ही अगर हमारा जीवन प्रार्थनामय हो और क्रूसित येसु के प्रेम से ओत-प्रोत
हो तो हम लोगों में आशा का संचार कर सकते हैं, मेल-मिलाप और शांति के प्रचारक बन सकते
हैं।