2009-06-15 13:03:57

देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देश


श्रोताओ, रविवार 14 जून को सन्त पेत्रुस महामन्दिर के प्राँगण में एकत्र तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना के पाठ से पूर्व सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने भक्तों को इस प्रकार सम्बोधित कियाः

“अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,
आज इटली सहित अनेक देशों में कॉरपुस दोमिनी अर्थात् यूखारिस्त का महापर्व मनाया जा रहा है जिसमें प्रभु की देह के संस्कार की भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है। हमारे लिये इस पर्व का क्या अर्थ है? यह केवल इसके धर्मविधिक पक्ष की ओर ही हमारा ध्यान आकर्षित नहीं करता; वास्तव में, कॉरपुस दोमिनी एक ऐसा दिवस है जो सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड को, पृथ्वी और स्वर्ग को अपने में समेट लेता है। सबसे पहले तो यह, कम से कम हमारे गोलार्ध में, उस सुन्दर एवं सुगन्धित मौसम को प्रस्फुटित करता है जिसमें वसन्त ऋतु के समापन बाद ग्रीष्म ऋतु आती है, स्वर्ग में सूर्य अपने पूर्ण प्रताप के साथ चमकता है तथा खेतों में गेहूँ की बालें पक जाती है। यहूदियों के समान ही कलीसिया की अवधियाँ भी सौर वर्ष से, बीजों के आरेपण एवं फसल की कटनी से संचालित होती हैं। यह पक्ष, विशेष रूप से, आज के महापर्व में सामने आता है जिसका केन्द्रबिन्दु, पृथ्वी एवं स्वर्ग का फल, रोटी का चिन्ह है। यही कारण है कि यूखारिस्तीय रोटी उस प्रभु का चिन्ह है जिनमें स्वर्ग एवं पृथ्वी, ईश्वर एवं मानव, एक हो जाते हैं। यह दर्शाता है कि ऋतुओं के साथ धर्मविधिक वर्ष का सम्बन्ध मात्र बाह्य सम्बन्ध नहीं है।"

सन्त पापा ने आगे कहाः ......... "कॉरपुस दोमिनी अर्थात ख्रीस्त की देह महापर्व पास्का एवं पेन्तेकोस्त के साथ आत्मीय ढंग से जुड़ा हैः येसु की मृत्यु एवं उनका पुनःरुत्थान तथा पवित्रआत्मा का अवतरण इसकी पूर्वधारणाएँ हैं। इसके अतिरिक्त यह महापर्व त्रियेक ईश्वर के महापर्व से संलग्न है, जिसे हमने विगत रविवार को मनाया था। चूँकि ईश्वर स्वयं सम्बन्ध हैं इसलिये उनसे सम्बन्ध जोड़ा जा सकता है और क्योंकि वे प्रेम हैं इसलिये वे प्रेम कर सकते एवं प्रेम के पात्र बन सकते हैं। इस प्रकार कॉरपुस दोमिनी अर्थात् ख्रीस्त की देह ईश्वर की प्रकाशना है, इस बात का सत्यापन या प्रमाण कि ईश्वर प्रेम हैं। एक बेजोड़ एवं असाधारण रूप में, यह महापर्व हमसे दैवीय प्रेम की बात करता है, दैवीय प्रेम क्या है तथा क्या करता है। उदाहरणार्थ, हमें बताता है कि वह अपने आप के अर्पण से खुद संपोषित होता है और अपने आप को अर्पित करने के द्वारा खुद के लिये पाता है, वह कभी समाप्त नहीं होता और न कभी खर्च होता है जैसा कि हम सन्त थॉमस अक्वाईनस के गीत में सुनते हैं – "नेक सुमतुस कोनसुमितुर" अर्थात् उपभुक्त होने से वह खर्च नहीं होता।"
सन्त पापा ने कहाः ............. "प्रेम सबकुछ को रूपान्तरित कर देता है और इसलिये हम समझते हैं कि येसु की उदारता का चिन्ह, तत्त्वपरिवर्तन का रहस्य आज के महापर्व यानि कॉरपुस दोमिनी का केन्द्र है जो सम्पूर्ण विश्व को रूपान्तरित करता है। उनपर दृष्टि लगाकर तथा उनकी आराधना कर हम कहते हैं – "जी हाँ, प्रेम का अस्तित्व है, और क्योंकि प्रेम का अस्तित्व है सबकुछ बेहतर हो सकता है तथा हम आशा कर सकते हैं। ख्रीस्त के प्रेम से उत्पन्न आशा से ही हम जीने की तथा प्रत्येक कठिनाई को पार करने की शक्ति प्राप्त करते हैं। इसीलिये पवित्र परमप्रसाद की शोभायात्रा के समय हम गीत गाते हैं; हम उन प्रभु की प्रशस्ति गाते एवं उनकी स्तुति करते जो रोटी के टुकड़े के चिन्ह में स्वतः को प्रकट करते हैं। हम सबको इस रोटी की आवश्यकता है क्योंकि स्वतंत्रता, न्याय एवं शांति का मार्ग लम्बा और कष्टकर है।"

अन्त में सन्त पापा ने कहाः ........... "हम कल्पना कर सकते हैं कि किस विश्वास एवं प्रेम के साथ मरियम ने पवित्र यूखारिस्त को अपने हृदय में ग्रहण किया तथा उसकी आराधना की। हर बार उनके लिये वह ऐसा था मानों वे, गर्भागमन से लेकर पुनःरुत्थान तक, अपने पुत्र येसु के पूर्ण रहस्य को ग्रहण कर रहीं हों। मेरे पूजनीय एवं प्रिय पूर्वपरमाध्यक्ष सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने उन्हें "यूखारिस्त की महिला" कहकर पुकारा। मरियम से हम, ख्रीस्त की देह के साथ, अपनी सहभागिता को नवीकृत करना सीखें ताकि हम एक दूसरे से ऐसा ही प्यार कर सकें जैसा उन्होंने हमसे प्यार किया है।"

इस मंगलयाचना के बाद, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने उपस्थित तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सब पर प्रभु की शांति का आव्हान कर सबको अपना प्रेरितिक आर्शीवाद प्रदान किया।







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