देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देश
श्रोताओ, रविवार सात जून को सन्त पेत्रुस महामन्दिर के प्राँगण में एकत्र तीर्थयात्रियों
के साथ देवदूत प्रार्थना के पाठ से पूर्व सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने भक्तों को इस
प्रकार सम्बोधित कियाः
“अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, पेन्तेकोस्त के पर्व
के साथ अपने शिरोबिन्दु पर पहुँचे पास्का काल के बाद, धर्म विधि प्रभु की तीन भव्यताओं
की प्रस्तावना करती हैः आज, पवित्र तृत्व, आगामी गुरुवार को ख्रीस्त की देह जिसे इटली
सहित अनेक देशों में आनेवाले रविवार को मनाया जायेगा; और अन्ततः, आगामी शुक्रवार को येसु
के पवित्रतम हृदय का महापर्व। ये प्रत्येक धर्मविधिक पर्व एक परिप्रेक्ष्य को रेखांकित
करते हैं जिनके द्वारा ख्रीस्तीय धर्म के सम्पूर्ण रहस्य का आलिंगन किया जाता हैः अर्थात्
क्रमशः, एक एवं त्रियेक ईश्वर का यथार्थ, यूखारिस्तीय संस्कार तथा ख्रीस्त के व्यक्तित्व
का ईश्वरीय एवं मानव केन्द्र। वास्तव में यह मुक्ति के एकमात्र रहस्य के विभिन्न आयाम
हैं जो एक प्रकार से येसु के रहस्योद्घाटन अर्थात् देहधारण से लेकर उनकी मृत्यु, पुनःरुत्थान
एवं स्वर्गारोहण तथा पवित्रआत्मा के वरदान तक के क्रम को अपने में समेट लेते हैं।
सन्त पापा ने आगे कहाः .......... “आज हम पवित्र तृत्व पर चिन्तन करते हैं जैसे
प्रभु येसु ख्रीस्त ने हमें बताया। उन्होंने हम पर प्रकट किया कि ईश्वर प्रेम हैं "एक
व्यक्ति के इकाई में नहीं अपितु एक तत्त्व के त्रियेक में। ईश्वर सृष्टिकर्त्ता एवं करूणामय
पिता हैं; एकलौते पुत्र हैं, अनन्त प्रज्ञा हैं, जो हमारे लिये मर गये और जी उठे; वे
अन्ततः पवित्रआत्मा है जो सबकुछ का, ब्रहमाण्ड एवं इतिहास का समय के अन्त तक संचालन करते
हैं। तीन व्यक्ति जो एक ईश्वर हैं क्योंकि पिता प्रेम है, पुत्र प्रेम है और पवित्रआत्मा
प्रेम है। ईश्वर पूर्ण एवं केवल प्रेम हैं, निर्मलतम प्रेम, असीम और अनन्त। वे अकेलेपन
में निवास नहीं करते किन्तु इसके विपरीत वे जीवन के कभी न थकनेवाले स्रोत हैं जो अनवरत
देता एवं संचरित करता रहता है। शीर्ष ब्रहमाण्ड अर्थात् हमारी धरती, हमारे गृह, तारे
और नक्षत्र या फिर विश्व में व्याप्त लघु एवं अति सूक्ष्म तत्वों आदि के पर्यवेक्षण द्वारा
किसी प्रकार हम उनकी थाह ले सकते हैं। जो कुछ भी अस्तित्व में है उसपर किसी न किसी प्रकार
पवित्र तृत्व का नाम अंकित है क्योंकि जो कुछ अस्तित्व में है, भले ही वह छोटे से छोटा
एवं सूक्ष्म से सूक्ष्म ही क्यों न हो वह प्रेम से उत्पन्न होता है, प्रेम के लिये दूर
तक पहुँचता तथा प्रेम के आत्मा द्वारा विचरता या संचरित होता है, यद्यपि उसमें चेतना
एवं स्वतंत्रता की मात्रा अलग अलग रहती है। भजनकार कहता हैः "प्रभु हमारे ईश्वर, तेरा
नाम समस्त पृथ्वी पर कितना महान है। तेरी महिमा आकाश से भी ऊँची है" (स्तोत्र ग्रन्थ
8, 2)। नाम का ज़िक्र कर बाईबिल धर्मग्रन्थ ईश्वर की यथार्थ पहचान का सन्दर्भ देते हैं-
ऐसी पहचान जो सम्पूर्ण सृष्टि पर चमकती है, जहाँ प्रत्येक सृजित प्राणी, अपने अस्तित्व
के कारण तथा जिन कोशिकाओं के कारण वह अस्तित्व में आया उनके कारण पारलौकिक सिद्धान्त
अर्थात वरदान स्वरूप मिले अनन्त एवं असीम जीवन का सन्दर्भ देता है, एक शब्द में वह प्रेम
से जुड़ा होता है। आथेन्स के आरोपागुस में सन्त पौल ने कहा था – "क्योंकि उसी में हमारा
जीवन, हमारी गति तथा हमारा अस्तित्व निहित है।" ( प्रेरित चरित 17, 28) हम सब पवित्र
तृत्व या त्रियेक ईश्वर के प्रतिरूप में सृजित किये गये हैं इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह
है कि केवल प्रेम हमें आनन्दित करता है क्योंकि हम प्रेम करने के लिये तथा प्रेम पाने
के लिये जीते हैं। जीव विज्ञान के साथ यदि सादृश्य देखने का प्रयास करें तो हम यह कह
सकते हैं कि मानव "जीन" प्रेम रूपी त्रियेक ईश्वर में गहनतम ढंग से समाहित है।
अन्त में सन्त पापा ने इस तरह प्रार्थना कीः ........... "अपनी विनम्रता में पवित्र
कुँवारी मरियम ने स्वतः को ईश्वरीय प्रेम की दासी बना डालाः उन्होंने पिता ईश्वर की इच्छा
का स्वागत किया तथा पवित्रआत्मा के सामर्थ्य से पुत्र को अपने गर्भ में धारण किया। उनके
अन्तर में सर्वशक्तिमान् नें अपने योग्य एक मन्दिर बनाया तथा उन्हें कलीसिया का आदर्श
एवं रूप बनाया, कलीसिया अर्थात् मनुष्यों की सहभागिता का घर। त्रियेक ईश्वर के दर्पण,
मरियम हमारी मदद करें ताकि हम पवित्र तृत्व के रहस्य में अपने विश्वास को सुदृढ़ कर सकें।"
इस प्रकार, सबसे प्रार्थना का अनुरोध करने के बाद, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें
ने उपस्थित तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सब पर प्रभु की शांति
का आव्हान कर सबको अपना प्रेरितिक आर्शीवाद प्रदान किया