जेरूसालेमः जेरूसालेम के पुण्य स्थलों पर पुनर्मिलन प्रयास
जेरूसालेम में मुसलमानों के पुण्य स्थल एवं प्रधान मस्जिद अल-हारेम अश-शरीफ़ की भेंट
कर मंगलवार को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने विश्व के इस्लाम धर्मानुयायियों के साथ
एक बार फिर मैत्री का हाथ बढ़ाया तथा अपने यहूदियों एवं ख्रीस्तीय भाइयों के साथ क्षमा
एवं पुनर्मिलन की भावना में जीवन यापन का सन्देश दिया।
मंगलवार को सन्त पापा
जेरूसालेम की उस पहाड़ी पर पहुँचे जो यहूदियों द्वारा टेम्पल माऊन्ट के नाम से तथा मुसलमानों
द्वारा नोबेल सेन्कच्यूरी के नाम से जानी जाती है।
जेरूसालेम में मुसलमानों के
अति पावन मस्जिद में प्रवेश से पहले, सम्मान के चिन्ह रूप में, सन्त पापा ने अपने लाल
रंग के जूते बाहर ही उतार दिये। मुसलमानों का विश्वास है कि हज़रत मुहम्मद इसी स्थल से
एक रहस्यमय रात्रि को स्वर्ग में आरोहित हो गये थे।
जेरूसालेम की यही पहाड़ी
पश्चिमी दीवाल, बाईबिल युगीन दो मन्दिरों के अवशेषों तथा यहूदियों का पवित्रतम स्थल भी
है।
मस्जिद में प्रधान मुफ्ति तथा इस्लाम धर्म के नेताओं को सम्बेधित कर सन्त
पापा ने एक ईश्वर में विश्वास को सुदृढ़ किये जाने पर बल दिया........ "विभाजन के कारण
दुखद रूप से बिखरे हुए विश्व में यह पवित्र स्थल सदभावना से प्रेरित स्त्री पुरुषों के
लिये, ग़ैरसमझदारियों एवं अतीत के झगड़ों को मिटाने तथा भावी पीढ़ियों की ख़ातिर न्याय
एवं शांति पर आधारित नवीन विश्व के निर्माण हेतु निष्कपट वार्ताओं के मार्ग को तैयार
करने की चुनौती प्रस्तुत करता है। चूँकि हमारी धार्मिक परम्पराओं की शिक्षाएँ ईश्वर के
यथार्थ से, जीवन के अर्थ से तथा मानव की सामान्य नियति से सम्बन्धित हैं इस प्रकार की
वार्ताओं को किनारे कर देने का प्रलोभन बना रहता है। तथापि, हम एक ईश्वर में अपने सामान्य
विश्वास से वार्ताओं को आरम्भ कर सकते हैं। ईश्वर, जो न्याय एवं दया के अपरिमित स्रोत
हैं। जो व्यक्ति उनके नाम में विश्वास करते हैं उन्हें सदाचार के लिये अथक परिश्रम करने
का कार्य सौंपा गया है ताकि वे ईश्वर की दयालुता का अनुसरण करते हुए मानव परिवार में
मैत्री एवं शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का अनवरत प्रयास करते रहे।"