2009-05-05 12:02:13

वाटिकन सिटीः बेनेडिक्ट 16 वें ने सार्वभौमिक मानवाधिकारों को प्रोत्साहन देने का आह्वान किया


वाटिकन में अपनी पूर्णकालिक सभा के लिये एकत्र विज्ञान सम्बन्धी परमधर्मपीठीय अकादमी के सदस्यों का सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने आह्वान किया कि वे ईश्वरीय विधान पर आधारित मानवाधिकारों की रक्षा करें तथा उन्हें प्रोत्साहन प्रदान करें।

सन्त पापा ने यह बात सोमवार को वाटिकन में एकत्र उक्त अकादमी के विद्धानों से कही जो इस समय अपनी पूर्णकालिक सभा में "काथलिक कलीसिया की सामाजिक शिक्षा एवं मानवाधिकार" विषय पर विचार विमर्श कर रहे हैं। इस सन्दर्भ में काथलिक कलीसिया के दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए सन्त पापा ने कहा कि " मूलभूत अधिकारों की, चाहे किसी भी प्रकार उनकी रचना की गई हो अथवा विभिन्न सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्यों में उनका महत्व कम अथवा अधिक होता हो, मर्यादा को कायम रखा जाना चाहिये तथा उन्हें सार्वभौमिक मान्यता दी जानी चाहिये क्योंकि वे मानव स्वभाव में अन्तर्निहित हैं, जो ईश प्रतिरूप में सृजित प्राणी है।"

उन्होंने आगे कहा, "आधुनिक काल ने इस विचार को आकार देने में मदद दी है कि ख्रीस्त का संदेश -- क्योंकि वह उदघोषित करता है कि ईश्वर प्रत्येक स्त्री एवं प्रत्येक पुरुष से प्यार करते हैं तथा यह कि प्रत्येक मनुष्य ईश्वर से प्रेम करने के लिये बुलाया गया है -- दर्शाता है कि प्रत्येक व्यक्ति, अपनी सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति से परे, अपने स्वभाव के कारण स्वतंत्रता के योग्य है।"

सन्त पापा ने जीवन के अधिकार तथा अन्तःकरण एवं धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार को उन अधिकारों का केन्द्र निरूपित किया जो मानव के स्वभाव से प्रस्फुटित होते हैं। इस बात की ओर उन्होंने ध्यान आकर्षित कराया कि मानव के ये अधिकार सही मायनों में "विश्वास के तथ्य", नहीं हैं तथापि विश्वास से ये पुष्ट होते हैं।

सन्त पापा ने कहा कि सत्य और असत्य, भले और बुरे, बेहतर और बदत्तर तथा न्याय और अन्याय में अन्तर पहचानने की मानव क्षमता प्रत्येक व्यक्ति को प्राकृतिक विधान को समझने में सक्षम बनाती है जो अनन्त विधान में भागीदारी के सिवाय और कुछ नहीं है।

सन्त पापा ने स्पष्ट किया, "अस्तु, मानवाधिकार, अन्ततः, ईश्वर के साथ भागीदारी में अन्तर्निहित हैं, जिन्होंने प्रत्येक मानव व्यक्ति को विवेक एवं स्वतंत्रता का वरदान दिया है।" उन्होंने कहा, "यदि इस मज़बूत नैतिक एवं राजनैतिक आधार की उपेक्षा कर दी जायेगी तो मानवाधिकार अपनी दुरुस्त नींव से वंचित होकर दुर्बल एवं कमज़ोर पड़ जायेंगे।"







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