पवित्र धर्मशास्त्र की व्याख्या कलीसिया समुदाय के अंदर की जानी चाहिए
संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने बाइबिल संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के सदस्यों को 23 अप्रैल
को सम्बोधित करते हुए कहा कि पवित्र धर्मशास्त्र की व्याख्या व्यक्तिनिष्ठ तरीके से
नहीं की जा सकती है लेकिन इसकी व्याख्या कलीसिया समुदाय के अंदर की जानी चाहिए। केवल
कलीसियाई संदर्भ के अंदर ही पवित्र धर्मग्रंथ को यथार्थ ईशवचन के रूप में समझा जा सकता
है जोकि कलीसिया के जीवन के लिए नियम के रूप में तथा विश्वासियों के आध्यात्मिक विकास
के लिए गाईड और नियमन के रूप में कार्य करता है। इसका अर्थ है कि हर उस व्याख्या से परहेज
किया जाये जो व्यक्तिनिष्ठ है या सिर्फ विश्लेषण तक सीमित है और इस तरह से सम्पूर्ण अर्थ
के प्रति खुला होने में असमर्थ है जिसने अनेक सदियों से सम्पूर्ण ईशप्रजा की परम्परा
को मार्गदर्शन प्रदान किया है। ज्ञात हो कि 20 से 24 अप्रैल तक सम्पन्न पूर्णकालिक बैठक
के समय सदस्यों ने इंस्पीरेशन एंड ट्रूथ इन द बाइबिल शीर्षक पर विचार विमर्श किया। बाइबिल
विशेषज्ञों की समिति, विश्वास और धर्मसिद्धान्त संबंधी परमधर्मपीठीय परिषद् की परामर्शदात्री
निकाय है।