नई दिल्लीः भाजपा द्वारा धर्म और राजनीति को मिलाया जाना ख़तरनाक कहना अखिल भारतीय ख्रीस्तीय
समिति का
अखिल भारतीय ख्रीस्तीय समिति ए.आय.सी.सी. ने अब तक आम चुनाव 2009, पर टिप्पणी से परहेज
किया था किन्तु अब पूर्व उप प्रधानमंत्री और भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा विभिन्न
हिन्दु मठों, हिंदू संप्रदायों के नेताओं एवं विश्व हिंदू परिषद के सांप्रदायिक सलाहकारों
को प्रेषित पत्र के बाद उसने अपनी चुप्पी तोड़ दी है क्योंकि इस पत्र में ख़तरनाक तरीके
से राजनीति में धर्म को लिप्त किया गया है।
ए.आय.सी.सी. के अनुसार धर्मनिरपेक्ष
भारत में शांति और सदभाव के लिए इस दुहरे कृत्य के खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। ख्रीस्तीय
समिति ने लिखा कि घृणा से भरे भाषणों और साम्प्रदायिक प्रचार द्वारा पहले से चुनावी माहौल
को बिगाड़ दिया गया है।
कहा गया कि आडवाणी ने एक चुनावी रणनीति के तहत उक्त पत्र
लिखा होगा किन्तु एक महत्वपूर्ण पार्टी के नेता तथा देश के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार
को यह शोभा नहीं देता कि वह अपने शब्दों द्वारा अल्पसंख्यकों के विरुद्ध वैमनस्यता अथवा
घृणा को प्रश्रय दे।
अखिल भारतीय ख्रीस्तीय समिति के अनुसार अडवानी का पत्र दर्शाता
है कि भाजपा पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा एवं अन्य राज्यों में उन लोगों
को प्रसन्न करने का प्रयास कर रही है जो अतीत में या हाल में ख्रीस्तीयों एवं अन्य अल्पसंख्यकों
के विरुद्ध हिंसा में लिप्त थे।
समिति के अनुसार इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं
कि न तो आडवाणी के पत्र में और न ही उनकी पार्टी के घोषणापत्र में विगत माहों में कँधामाल
में ख्रीस्तीयों के विरुद्ध हुई जघन्य हिंसा का ज़िक्र किया गया है। दलित ख्रीस्तीयों
के न्यायसंगत अधिकारों के लिये ख्रीस्तीयों के संघर्ष को भी अडवानी ने कोई जगह नहीं दी।
भारतीय जनता पार्टी द्वारा ख्रीस्तीयों को वार्ता के लिये दिये गये निमंत्रण
के प्रत्युत्तर में अखिल भारतीय ख्रीस्तीय समिति ने स्मरण दिलाया कि भारतीय संविधान के
अनुसार धार्मिक स्वतंत्रता, धर्म पालन एवं धर्म की अभिव्यक्ति एवं प्रचार देश के हर नागरिक
का परम अधिकार है और इस पर कोई वादविवाद सम्भव नहीं।