2009-04-11 10:40:46

रोमः ख्रीस्त की पीड़ा कठोर हृदयों को भी नर्म कर देती है, बेनेडिक्ट 16 वें


रोम के ऐतिहासिक स्मारक कोलोसेऊम में गुड फ्रायडे के उपलक्ष्य में शुक्रवार रात्रि पवित्र क्रूस मार्ग की विनती का नेतृत्व करने के बाद प्रवचन करते हुए सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कहा कि क्रूसित प्रभु ख्रीस्त की पीड़ा कठोर से कठोर हृदय में दया उत्पन्न कर देती है। उन्होंने कहा कि ख्रीस्त का दुखभोग एवं क्रूसमरण इसलिये मानवीय हृदय का स्पर्श कर सकने में समर्थ है कि उनमें मानवजाति के प्रति ईश्वर के असीम प्रेम की प्रकाशना हुई है।

सन्त मारकुस रचित सुसमाचार में निहित रोमी सैनिक के शब्द कि "वास्तव में यह मनुष्य ईश्वर का पुत्र था" की याद कर सन्त पापा ने कहा कि "हम इस रोमी सैनिक के विश्वास पर आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहते, जो क्रूसीकरण के विभिन्न चरणों में उपस्थित रहा था।" उन्होंने कहा कि "सामान्य से भिन्न, जब शुक्रवार की उस रात को अंधकार का छा गया, जब क्रूस पर येसु बलिदान अर्पित कर चुके थे तथा उनके इर्द गिर्द खड़े लोग, प्रति वर्ष की तरह, यहूदियों के पास्का पर्व की तैयारी हेतु जल्दी में थे, एक अनाम रोमी सैनिक के अधरों से प्रस्फुटित इन कुछ शब्दों ने उस अद्वितीय मृत्यु को घेरे रखने वाले महामौन को चीर कर रख दिया। यह रोमी अधिकारी इससे पहले असंख्य कैदियों के क्रूसीकरण का गवाह बना था किन्तु इस बार वह क्रूसित व्यक्ति में ईश्वर के पुत्र को पहचानने में सक्षम बना।"

सन्त पापा ने कहा कि "ख्रीस्त की शर्मनाक मौत से घृणा और मृत्यु की निश्चयात्मक विजय चिह्नित होनी थी किन्तु ऐसा नहीं हुआ। गोलगाथा पर आरोपित क्रूस पर लटका व्यक्ति मर चुका था किन्तु रोमी सैनिक ने उसमें ईश्वर के पुत्र को पहचान लिया था।" सन्त पापा ने कहा कि पवित्र क्रूस मार्ग की विनती के बाद, रोमी सैनिक के सदृश ही, हम भी क्रूसित प्रभु के जीवन विहीन चेहरे पर अपनी दृष्टि लगाते हैं।

सन्त पापा ने कहा सहस्राब्दियों से स्त्री पुरुषों का विशाल समूह इस रहस्य पर मनन करता हुआ अपने जीवन को अन्यों की सेवा में समर्पित करता रहा है। इनमें, सन्त एवं शहीद शामिल हैं जिनमें से अनेक अज्ञात हैं। उन्होंने कहा कि हमारे अपने युग में भी ऐसे अनेक लोग हैं जो मौन रहते हुए अपनी पीड़ाओं को ख्रीस्त की पीड़ा के साथ एकीकृत करते तथा यथार्थ आध्यात्मिक एवं सामाजिक नवीनीकरण के प्रेरित बनते हैं।

सबसे सन्त पापा ने आग्रह किया कि वे ख्रीस्त के विकृत चेहरे पर मनन करें क्योंकि यह दुःख से भरे उस मनुष्य का चेहरा है जिसने स्वतः पर हमारी सभी नश्वर उत्कंठाओं के बोझ को ढोया। उन्होंने कहा कि "उनका चेहरा उन सबमें प्रतिबिम्बित होता है जो अपमानित हैं, रोग से पीड़ित हैं, अकेले हैं, तिरस्कृत हैं और परित्यक्त हैं। अपना रक्त बहाकर ख्रीस्त ने हमें मृत्यु की दासता से मुक्त किया, उन्होंने हमारे आँसू पोछ डाले, वे हमारे हर दुःख एवं हर उत्कंठा में प्रवेश कर गये हैं।"












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