संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने अंगोला की राजधानी लुआंडा स्थित संत पौलुस गिरजाघर में
शनिवार को ख्रीस्तयाग अर्पित किया। इस अवसर पर प्रवचन करते हुए उन्होंने कहा कि इस्राएली
लोग एक दूसरे से कहते हैं कि आओ हम प्रभु के पास लौटें। अनेक विपत्तियों के बीच वे इन
शब्दों से एक दूसरे को प्रोत्साहन देते थे। नबी होशेया व्याख्या करते हैं कि वे दुर्भाग्य
के मारे थे क्योंकि वे ईश्वर के ज्ञान के बिना जीवन जीते थे। उनके दिलों में प्रेम की
कमी थी। उन्हें चंगा करनेवाले एकमात्र चिकित्सक ईश्वर थे। लुआंडा शहर के संरक्षक और
50 वर्षों पूर्व बनाये गये इस सुन्दर गिरजाघर के संरक्षक संत, संत पौलुस इस परम दयालु
ईश्वर के बारे में अपने अनुभव के आधार पर हमसे कहते हैं। मैंने संत पौलुस के जन्म के
दो हजारवीं वर्षगांठ को पौलिन वर्ष के रूप में मनाते हुए विशेष रूप से व्यक्त करना चाहा
ताकि हम उनसे सीखें कि कैसे ख्रीस्त को और अधिक पूरी तरह से जान सकें। संत पौलुस के
जीवन में निर्णायक घटना थी दमिश्क के रास्ते में येसु के साथ साक्षात्कार। इसके परिणामस्वरूप
उनके जीवन और दृष्टिकोण में परिवर्तन आया।
सन 1506 में जब इस भूमि में पुर्तगालियों
ने अपने कदम रखे तो सब सहारा ईसाई राज्य की स्थापना हुई। राजा डोम अल्फोंसियुस मबेमबा
अ नजिंगा के विश्वास और दृढ़ता के लिए धन्यवाद जिन्होंने 1506 से 1543 तक शासन किया।
यह राज्य आधिकारिक रूप से सोलहवीं से लेकर अट्ठारहवीं सदी तक काथलिक रहा। दो भिन्न जातीय
समूहों बान्तु और पुर्तगाली, ने ख्रीस्तीय धर्म में समझदारी के लिए सामान्य आधार पाया
और इसके प्रति समर्पित रहे कि यह समझदारी दीर्घकालीन हो एवं भिन्नताएँ दो राज्यों को
विभाजित न कर सके।
बपतिस्मा संस्कार सब विश्वासियों को ख्रीस्त में एक करता है।
आज यह आप पर है कि उन निर्भीक और पवित्र लोगों के पदचिह्नों पर चलें और पुर्नजीवित येसु
को अपने सह नागरिकों के लिए अर्पित करें। अनेक लोग आत्माओं के भय, जादू टोना और विनाश
करनेवाली ताकतों के डर में जीवन जी रहे हैं। वे स्ट्रीट चिल्ड्रन और बुजुर्गों को जादू
टोना करनेवाले मान उनकी निन्दा कर रहे हैं। कौन उनको ख्रीस्त के बारे में बतायेगा। कुछ
लोगों को आपत्ति हो सकती है और कहेंगे क्यों उन्हें शांति से नहीं रहने देना चाहिए, उनके
पास उनका अपना सत्य है और हमारे पास अपना सत्य। हम सब शांतिपूर्वक जीवन जीएँ, प्रत्येक
व्यक्ति को वह जैसा है वैसे ही रहने दें ताकि वह अपने ही तरीके से सर्वोत्तम बन सके।
लेकिन यदि हम दृढ़मत हैं और यह अनुभव करते हैं कि ख्रीस्त के बिना जीवन में कुछ कमी है
तो हममें यह दृढ़ता होनी चाहिए कि हम अन्याय न करें जब किसी दूसरे के पास ख्रीस्त को
प्रस्तुत करें, इसके साथ ही हमारा कर्तव्य है कि प्रत्येक व्यक्ति को अनन्त जीवन पाने
की यह संभावना अर्पित करें। हम मानवीय निर्धनता को दिव्य उदारता का साक्षात्कार करने
में समर्थ बनायें। ईश्वर हमें अपना मित्र बनाते हैं, वे स्वयं को हमें देते हैं, यूखरिस्त
में वे हमें अपना शरीर देते हैं, हमें अपनी कलीसिया को सौंपते हैं। इसलिए हम भी येसु
के सच्चे मित्र बनें। संत पौलुस के समान ही येसु की इच्छा को अपनायें। संत पौलुस कहते
हैं- मुझे सुसमाचार प्रचार करने का आदेश दिया गया है, धिक्कार मुझे यदि मैं सुसमाचार
का प्रचार न करूँ।