भारतीय कलीसिया की प्राथमिकता हो - आदिवासियों और दलितों का सशक्तिकरण
मंगलोर 14 मार्च, 2009। काथलिक कलीसिया को चाहिये कि वह अपनी प्राथमिकताओं पर पुनः
विचार करे ताकि दलितों के कल्याण के लिये कुछ ठोस कदम उठाया जा सके। उक्त बातें उस
कहीं गयी जब 6 से 8 मार्च तक बंगलोर में दलितों और आदिवासियों के कल्याण के लिये बनी
सीबीसीआई की विशेष समिति की सभा सम्पन्न हुई। समिति ने इस बात के लिये चिंता जतायी
कि दलित और आदिवासियों ने ईसाई धर्म को इसलिये स्वीकार किया उन्हें समानता का दर्ज़ा
मिलेगा पर उनकी स्थिति में कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं दिखाई पड़ता है। उन्हें अब भी घोर
उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। सभा ने इस बात पर भी विचार किया कि दलितों के सशक्तिकरण
किया जाये। प्रतिभागियों ने यह भी कहा कि भारत की कलीसिया को ' दलित-आदिवासी कलीसिया
' कहा जाना चाहिये क्योंकि भारत की कुल दो करोड़ पाँच लाख ईसाइयों में 75 प्रतिशत लोग
इन्हीं दो समुदायों के हैं । ज्ञात हो कि इस सभा में पूरे भारत से आठ धर्माध्यक्ष
और प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस सभा का आयोजन सीबीसीआई के तहत् आदिवासियों और दलितों
के लिये बनी आयोग और न्याय और शांति के लिये बनी आयोग के संयुक्त तत्वाधान में हुआ था।
अन्य प्रस्तावों के अलावा सभा ने इस बात पर बल दिया गया कि दलित और आदिवासियों के
लिये विशेष सेमिनार और कोर्स चलायें जाये ताकि उनका सशक्तिकरण हो सके और उन्हें सम्मान
पूर्ण जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त हो सके। यह भी कहा गया कि भारतीय कलीसिया मजबूत होगी
जब दलितों और आदिवासियों के विकास के लिये लगातार कदम उठाये जायेंगे। इस अवसर पर बोलते
हुए चिंगलपेट के धर्माध्यक्ष अंतोनी नीतिनाथान ने भारत की कलीसिया को ऐसा बनाया जाये
जहाँ हर ख्रीस्तीय को यह महसूस हो कि यह उसका परिवार है। सीबीसीआई के दलित और आदिवासी
मामलों के सचिव कोसमोस आरोक्याराज ने कहा कि आज ज़रूरत है कि हम एक ऐसी योजना पर कार्य
करें जिससे आदिवासियों और दलितों का विकास हो और उनकी प्रगति के लिये काथलिक कलीसिया
समर्पित हो तब ही भारत की कलीसिया मजबूत हो पायेगी।