संत पियुस दसवें सोसाइटी के धर्माध्यक्षों के प्रकरण में संत पापा का विश्व के धर्माध्यक्षों
को सम्बोधित पत्र
संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने विश्व के सब धर्माध्यक्षों को सम्बोधित एक पत्र में कहा
है कि संत पियुस दसवें सोसायटी के 4 धर्माध्यक्षों के बहिष्कृत किये जाने के आदेश को
वापस लेने के बाद कुछ काथलिकों द्वारा व्यक्त आक्रोश और घृणा से उन्हें पीड़ा हुई। उन्होंने
संत पियुस दसवें समाज के परम्परावादियों के साथ कलीसियाई एकता के लिए किये गये पहल और
प्रक्रिया को सही बताया तथा इस आरोप से इंकार किया कि वे प्रगति की दिशा को पीछे मोड़
रहे हैं। उन्होंने कहा कि परमधर्मपीठ द्वारा उक्त मामले में देखने और अच्छी तरह से सार्वजनिक
करने में कुछ कमी रही है तथा समस्याओं का पूर्वाभास पाया जा सकता था यदि लोगों की पृष्ठभूमि
की जाँच करने में इंटरनेट का और अधिक उपयोग किया गया होता। संत पापा ने कहा कि भविष्य
में इंटरनेट या सूचना प्राप्त करने के स्रोतों का और अधिक उपयोग किया जायेगा। 24 जनवरी
को संत पापा ने संत पियुस दसवें सोसाइटी के चार धर्माध्यक्षों के कलीसिया से बहिष्कृत
किये जाने के 20 वर्ष पुराने आदेश को समाप्त किया था ताकि विभाजन के व्रण को चंगा किया
जा सके। नवम्बर माह में संत पियुस समाज के धर्माध्यक्ष विलियमसन द्वारा स्वीडिश टेलिविजन
चैनल को नात्सी यातना शिविरों में यहूदियों के नरसंहार के बारे में प्रचलित ऐतिहासिक
तथ्यों को कम आँकते हुए दिये गये विवादित वक्तव्य के कारण काथलिकों और यहूदियों के मध्य
संबंध अत्यंत नाजुक हो गये थे, कलीसिया के अंदर की शांति भी प्रभावित हुई थी। इस अप्रत्याशित
परिस्थिति में मेलमिलाप के लिए उठाये गये कदम के ठीक विपरीत प्रतिक्रिया हुई। उदारता
के इस एक कृत्य से लम्बे समय तक गहन वाद विवाद हो गया तथा उनके विरूद्ध भी आक्रोश और
नफरत व्यक्त किया गया। संत पापा ने इस प्रवृत्ति को दुखद बताया कि वर्तमान आधुनिक समाज
में ऐसा प्रतीत होता है कि नफरत का प्रसार करने के लिए सदैव किसी की जरूरत है। परमधर्मपीठ
का कहना है कि कलीसिया में पूर्ण रूप से शामिल होने के लिए संत पियुस दसवें समाज के परम्परावादियों
को द्वितीय वाटिकन महासभा की शिक्षा को भी स्वीकार करना होगा जिसमें अन्य धर्मों के प्रति
सम्मान प्रदर्शित करने की बात कही गयी है।