संत पापा ने प्रेरित संत पौलुस के चालीसाकालीन उदाहरणों पर बल दिया
सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने बुधवार को रोम के सन्त आन्सेलमो गिरजाघर में प्रार्थना
सभा का नेतृत्व किया। उन्होंने प्रार्थना सभा के बाद निकटवर्ती सन्त सबिना गिरजाघर में
राख की धर्म विधि सहित ख्रीस्तयाग अर्पित कर ख्रीस्त के दुखभोग एवं क्रूस मरण की याद
में चालीसाकाल का शुभारम्भ किया। संत पापा ने काथलिक विश्वासियों को उत्साहित किया कि
वे प्रेरित संत पौलुस का अनुसरण करते हुए इस चालीसाकाल में प्रार्थना, भिक्षादान और उपवास
का अभ्यास करें। उन्होंने कहा आज की पूजन धर्मविधि दर्शाती है कि आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ
करते समय हमारा आंतरिक मनोभाव कैसा हो। मनपरिर्वतन के लिए बुलावा आज की पूजन धर्मविधि
के प्रत्येक भाग का प्रभावी शीर्षक है। प्रवेश भजन कहता है कि ईश्वर मन परिवर्तन करने
वालों के पाप क्षमा करते हैं। ईश्वर की प्रतिज्ञा स्पष्ट है कि लोग यदि मन परिवर्तन के
लिए दिये गये निमंत्रण को स्वीकार करेंगे तो ईश्वर की उदारता की जीत होगी और उसके मित्रों
को अनेक कृपाएँ प्राप्त होंगी। सुसमाचार के द्वारा येसु दिखावा से बचने के लिए सतर्क
करते हैं जो हमें सतही और आत्म प्रदर्शन करेवाला बनाती है जबकि पिता ईश्वर के साथ अंतरंगता
में बढ़ते हुए हमें मंतव्यों की शुद्धता में बढ़ने का मार्ग दिखाते हैं। प्रेरित संत
पौलुस ने ईश्वरीय कृपा की शक्ति को बहुत ही असाधारण रूप से अनुभव किया, पास्काई रहस्य
की कृपा जिसे चालीसाकाल अर्पित करता है। संत पौलुस के प्रवचन, और मिशनरी जीवन से पूर्व
उनका जीवन ईश्वरीय कृपा की बुनियादी अनुभवों के आधार पर आंतरिक बल पर आधारित रहे। वे
स्वीकार करते हैं कि उनमें जो है वह ईश्वरीय कृपा का कार्य है लेकिन यह भी नहीं भूलते
हैं कि एक व्यक्ति बपतिस्मा के समय प्राप्त नये जीवन को अपने कार्यों में स्वतंत्रतापूर्वक
शामिल करे। संत पौलुस दिखाते हैं कि येसु की विजय को उनका अनुयायी अपना बनाये और यह सबसे
पहले बपतिसमा के समय होता है। इसके द्वारा व्यक्ति येसु से संयुक्त होता है लेकिन बपतिस्मा
संस्कार प्राप्त व्यक्ति में ख्रीस्त पूरी तरह राज्य करें इसके लिए व्यक्ति को पूरी निष्ठा
से उनकी शिक्षा का पालन करना चाहिए। संत पापा ने कहा कि भलाई और बुराई के मध्य जारी सतत
संघर्ष में प्रार्थना, भिक्षादान देने और उपवास बपतिस्मा संस्कार से मिली बुलाहट को पूरा
करने के साधन हैं।