2009-01-20 12:55:52

नई दिल्लीः विश्व मंच पर आदिवासियों के अधिकारों के उल्लंघन की निन्दा का संकल्प


ब्राज़ील में 27 जनवरी से पहली मार्च तक होने जा रहे आठवें विश्व मंच में भारत के काथलिक पुरोहितों तथा आदिवासियों के प्रतिनिधि सरकार द्वारा आदिवासियों के अधिकारों के हनन की शिकायत करेंगे। और अधिक प्रजातांत्रिक, न्यायिक एवं संयुक्त विश्व के निर्माण हेतु विश्व की विभिन्न गैरसरकारी संस्थाएं विचारों के आदान प्रदान के लिये ब्राज़ील के बेलेम नगर में एकत्र हो रही हैं। भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की न्याय एवं शांति सम्बन्धी समिति के प्रतिनिधि तथा भारत के आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधियों का एक शिष्ठमडल भी उक्त विश्व मंच में भाग लेने ब्राज़ील पहुँच रहा है।

एशिया समाचार से बातचीत में उक्त काथलिक धर्माध्यक्षीय समिति के महासचिव कैपुचिन धर्मसमाजी पुरोहित फादर नित्या ने कहा कि सम्पूर्ण विश्व में आदिवासियों को अपनी भूमि पर स्वामित्व का अधिकार है किन्तु भारतीय सरकार उन्हें वनवासी का नाम देकर उनसे यह अधिकार छीन रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि आदिवासियों से उनकी भूसम्पत्ति छीन कर उद्योगपतियों एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को दी जा रही हैं तथा प्राकृतिक संसाधनों का शोषण किया जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भूमि छिन जाने से आदिवासी लोग उनके अपने इतिहास, निजी परम्पराओं, निजी धर्म एवं अस्मिता से ही वंचित हो जाते तथा और जंगलों में छिप कर जीवन यापन के लिये बाध्य होते हैं।

फादर नित्या ने बताया कि भारत के झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा एवं मध्यप्रदेश के कुछेक क्षेत्रों में आदिवासियों के विशाल भूक्षेत्र हैं किन्तु सरकार इन्हें वनवासी का नाम देकर आदिवासियों से उनके पूर्वजों की भूमि हड़प रही है तथा उनकी पहचान को मिटाने का प्रयास कर रही है। इसके अतिरिक्त उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत के आदिवासी जीववादी हैं वे हिन्दु धर्मानुयायी नहीं हैं किन्तु बलपूर्वक उन्हें हिन्दु धर्म अपनाने के लिये बाध्य किया जा रहा है।

भारत से 29 सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल ब्राज़ील में आयोजित विश्व मंच के लिये रवाना हो रहा है जिसमें येसु धर्मसमाज के सामाजिक कार्यों के अध्यक्ष फादर ज़ेवियर जयराज भी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि, विश्व मंच में, भारतीय आदिवासियों के अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों में सम्मिलित हैं: विकास के नाम पर आदिवासियों के प्राकृतिक संसाधनों, भूमि, वन, जल आदि का शोषण एवं आदिवासायों का विस्थापन; आर्थिक एवं राजनैतिक चरमपंथ जो लोगों में फूट डालने के लिये धर्म का दुरुपयोग करता जैसे उड़ीसा में ख्रीस्तीय अल्पसंख्यकों पर हिंसक आक्रमण जबकि प्रशासन चुप्पी साधे रहता है तथा दलितों के विरुद्ध हिंसा एवं हाशिये पर जीवन यापन करनेवालों के अधिकारों का अतिक्रमण।








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