2009-01-06 12:09:00

प्रभु प्रकाश महापर्व के उपलक्ष्य में अर्पित ख्रीस्तयाग के अवसर पर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें के प्रवचन के कुछ अंश एवं देवदूत प्रार्थना के अवसर पर दिया सन्त पापा का सन्देश


श्रोताओ, 25 दिसम्बर को प्रभु ख्रीस्त की जयन्ती मना लेने के 12 दिन बाद ख्रीस्तीय धर्मानुयायी छः जनवरी को ऐपिफनी, प्रभु प्रकाश का महापर्व अथवा तीन राजाओं का महापर्व मनाते हैं। वस्तुतः ऐपिफनी का अर्थ है किसी चीज़ को दर्शनीय बनाना, किसी को प्रकाशित करना या किसी के विषय में लोगों को ज्ञान कराना। यह महापर्व सुदूर पूर्व से, तारे के इशारे पर बेथलेहेम पहुँचे तीन विद्धानों द्वारा शिशु येसु के दर्शन के स्मरणार्थ मनाया जाता है। ------------------------

प्रभु प्रकाश महापर्व के उपलक्ष्य में सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महामन्दिर में महायाग अर्पित किया तथा बाद में महामन्दिर के प्राँगण में एकत्र तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। इन अवसरों पर किये उनके प्रवचनों के कतिपय अंशों को ही आज हम श्रोताओं की सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं। ख्रीस्तयाग प्रवचन में सन्त पापा ने प्रभु प्रकाश अर्थात विश्व के समक्ष प्रभु के प्रकटीकरण के रहस्य पर प्रकाश डाला, उन्होंने कहाः

"अति प्रिय भाइयों एवं बहनों,
प्रभु प्रकाश अर्थात् हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त की प्रकाशना एक बहुप्रकारीय रहस्य है। लातीनी परम्परा इसे बेथलेहेम में जन्में शिशु येसु के दर्शन हेतु पहुँचे तीन विद्धानों की भेंट में पहचानती तथा इसे ग़ैरविश्वासियों के बीच इसराएल के मसीहा की प्रकाशना बताती है। जबकि पूर्वी परम्परा के अनुकूल प्रभु की प्रकाशना यर्दन नदी में येसु के बपतिस्मा के क्षण हुई जब उन्होंने स्वतः को पवित्रआत्मा से अभिषिक्त, पिता ईश्वर के एकलौते पुत्र रूप में प्रकट किया। इसके अतिरिक्त सन्त योहन का सुसमाचार हमें काना के विवाह में येसु की प्रकाशना को देखने के लिये आमंत्रित करता है जब उन्होंने पानी को अँगूरी में बदल कर अपनी महिमा प्रकट की थी तथा उनके शिष्यों ने उनमें विश्वास किया था।"

पवित्र यूखारिस्त की भक्ति का आग्रह करते हुए सन्त पापा ने कहा कि पवित्र यूखारिस्त में हम प्रतिदिन येसु ख्रीस्त के दर्शन पाते हैं। इस संस्कार में कलीसिया येसु ख्रीस्त के समस्त रहस्यों का समारोह मनाती है जिसमें वे, सन्त थॉमस अक्वाईनुस के अनुसार, एक ही साथ अपनी महिमा को प्रकट करते तथा इसे छिपाये भी रखते हैं।

आगे सन्त पापा ने कहाः "सन् 2009, जिसमें हम, दूरबीन पर गलीलेओ गलीलेई के पहले पहल अवलोकनों की चौथी शताब्दी मना रहे हैं, विशेष रूप से, खगोल विज्ञान को समर्पित है तथा इसके दौरान तारे के प्रतीक पर विशेष ध्यान देने से हम नहीं चूक सकते जिसका, तीन विद्धानों के सुसमाचारी वृत्तान्त में, महत्वपूर्ण स्थान है। सम्भवतः ये तीन विद्धान खलोल शास्त्री थे। फिलीस्तीन से पूर्व की ओर सम्भवतः मेसोपोटामिया में, उन्होंने एक नये तारे को उदित होता देखा था जिसकी व्याख्या उन्होंने, पवित्र धर्मग्रन्थों के अनुसार, एक राजा और यथातथ्य यहूदियों के राजा के जन्म लेने की घोषणा रूप में की थी। सन्त मत्ती द्वारा लिखे इस वृत्तान्त में कलीसिया के आचार्यों ने ईशपुत्र के इस धरती पर प्रवेश के परिणामस्वरूप उत्पन्न एक प्रकार की ब्रहमाण्डीय क्रान्ति को देखा। उदाहरणार्थ, सन्त जॉन क्रिसोसतम लिखते हैं – "जब तारा शिशु के ऊपर आया तब वह रुक गया और ऐसा वही कर सकता था जिसके पास वह शक्ति है जो तारों में नहीं होती अर्थात् पहले वह छिपा और फिर दिखाई देने के बाद सब समय के लिये रुक गया।" नात्ज़ियानो के सन्त ग्रेगोरी इस बात की पुष्टि करते हैं कि ख्रीस्त के जन्म ने तारों पर नये ग्रहपथ अंकित किये। इसे प्रतीकात्मक एवं ईशशास्त्रीय अर्थ में समझा जाना चाहिये। वस्तुतः, ग़ैरविश्वासी विचार ब्रहमाण्ड के तत्वों एवं उनकी शक्ति को ईश्वरीय बना देता है जबकि ख्रीस्तीय विश्वास, बाईबिल सम्बन्धी प्रकाशना को पूर्ण करते हुए, एक ईश्वर, सृष्टिकर्त्ता तथा सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड के स्वामी पर मनन चिन्तन करता है।"

अन्त में सन्त पापा ने कहाः "अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सन्त पौल को समर्पित वर्ष में कलीसिया सभी विश्वासियों को सन्त पौल का आदर्श ग्रहण करने के लिये आमंत्रित करती है। उनके मन परिवर्तन के बाद ईश्वर ने सन्त पौल को ग़ैरविश्वासियों के बीच एक तारा बना दिया। उनकी प्रेरिताई सुसमाचार प्रचार हेतु कलीसिया के लिये एक उदाहरण एवं प्रेरक है, विशेष रूप से, उन लोगों के बीच जो अब तक सुसमाचारी सन्देश से अनभिज्ञ हैं। सन्त पौल की प्रेरिताई पवित्रधर्मग्रन्थों से पोषित थी इसलिये यदि कलीसिया तथा उसके विश्वासियों को ख्रीस्त तक ले जानेवाला तारा बनना है तो ईश वचन से पोषित होना अनिवार्य है। हम नहीं अपितु ईशवचन ही आलोक प्रदान करता, वही हृदयों को निर्मल करता तथा मनपरिवर्तन को सम्भव बनाता है।"

ख्रीस्तयाग के उपरान्त सन्त पापा ने सन्त पेत्रुस महामन्दिर के प्राँगण में एकत्र तीर्थयात्रियों को अपना सन्देश दिया .........................

"अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,
आज हम प्रभु प्रकाश का महापर्व मना रहे हैं। सुसमाचार बताते हैं कि किस प्रकार येसु सादगी और विनम्रता में इस धरा पर आये। सन्त मत्ति तीन विद्धानों का वृत्तान्त सुनाते हैं जो तारे का संकेत पाकर सुदूर पूर्व से यहूदियों के राजा के प्रति श्रद्धा अर्पित करने पहुँचे थे। सुसमाचार के अनुसार, तीन विद्धानों की बात सुनकर राजा हेरोद बड़ा घबरा गया था क्योंकि उसने येसु में अपने प्रतिद्वन्दी को देखा था तथा उन्हें अपने और अपनी सन्तानों के लिये ख़तरा माना था जबकि जैरूसालेम के लोग इस घटना से आश्चर्यचकित रह गये थे जिसपर मनन करना आवश्यक था। यहाँ ऐसा प्रतीत होता है कि सुसमाचार लेखक ने पहले से ही बताना चाहा कि येसु को अपनी सार्वजनिक प्रेरिताई के समय महायाजकों आदि के विरोध का सामना करना पड़ेगा। येसु के मसीहा होने की भविष्यवाणी धर्म ग्रन्थों में सदियों पूर्व कर दी गई थी किन्तु इसके बावजूद जब येसु इस धरा पर आये लोगों ने उन्हें नहीं पहचाना और इसलिये अपने दुखभोग से पूर्व येसु जैरूसालेम को देखकर विलाप करते हैं। इस स्थल पर हम इतिहास के धर्मतत्व विज्ञान सम्बन्धी निर्णायक बिन्दु का स्पर्श करते हैं और वह यह कि ईश्वर का प्रेम येसु के रूप में प्रकट हुआ किन्तु उसे हमने नहीं पहचाना। वह हमारे बीच आया लेकिन हमने उसका स्वागत नहीं किया। बाईबिल के प्रकाश में, यह वैमनस्यता और यह सतहीपन ईश्वर के रहस्य के प्रति अपने मन के द्वार को बन्द करनेवाले मनुष्य एवं विश्व का प्रतिनिधित्व करता है। वे सत्य एवं प्रेम के राजा हैं तथा हमसे आग्रह करते हैं कि हम दुष्टता का परित्याग कर मनपरिवर्तन करें तथा भलाई के मार्ग पर चलें। इस अर्थ में हम सब जैरूसालेम हैं। माँ मरियम हमारी मदद करें ताकि हम शांति एवं प्रेम का वरदान देने आये ईश्वर का अपने बीच स्वागत करें।"

इतना कहकर सन्त पापा ने देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

देवदूत प्रार्थना के बाद एक बार फिर सन्त पापा ने इसराएलियों एवं फिलिस्तीनीयों के बीच शांति की अपील कीः ........."गहन दुःख के साथ मैं गज़ा पट्टी में जारी हिंसक और सशस्त्र संघर्ष की खबरें सुन रहा हूँ। इस बात की पुनरावृत्ति करते हुए कि घृणा एवं वार्ताओं का बहिष्कार केवल युद्ध की ओर ले जाता है मैं उन लोगों के प्रयासों को समर्थन देता हूँ जो शांति की चाह मन में रखते हुए इसराएली एवं फिलीस्तीनी लोगों को वार्ताओं के लिये तैयार करने में मदद प्रदान कर रहे हैं। मेरी याचना है कि प्रभु ईश्वर इन शांति निर्माताओं के साहसी प्रयासों को समर्थन प्रदान करें।"











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