ग़रीबी की समस्या के समाधान का आधार धैर्य, अंतःकरण और पूर्ण सामूहिक जिम्मेदारी-संत
पापा
वाटिकन सिटी, 1 जनवरी, 2009। संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने कहा है कि विश्व के राष्ट्र
ग़रीबी की समस्या के समाधान के लिये आगे आयें।
गरीबी की समस्या से मानव की मर्यादा
को भी क्षति पहुँचती है। संत पापा ने कहा कि गरीबी की समस्या का समाधान तब ही संभव हो
सकता है जब लोग उस गरीबी को स्वीकार करेंगे जिसका प्रचार येसु ने किया था।
येसु
ने जिस ग़रीबी और नम्रता का अंगीकार किया उससे उन्होंने मानव की मर्यादा की रक्षा के
लिये कार्य किया।
उक्त बातें संत पापा ने उस समय कहीं जब वे संत पेत्रुस महागिरजाघर
में माता मरिया ईश्वर की माता और विश्व शांति दिवस के अवसर पर भक्तों को प्रवचन दे रहे
थे।
इस अवसर पर बोलते हुए संत पापा ने कहा कि ग़रीबी की समस्या के समाधान से ही
विश्व में शांति कायम की जा सकती है।
उन्होंने आगे कहा कि ईश्वर बेथलेहेम में
शिशु बन कर जन्म लिये और गरीबी को इसलिये स्वीकार किया ताकि हम उनकी ग़रीबी से धनी बन
सकें। संत पापा ने कहा कि येसु सिर्फ मनुष्य बन कर दुनिया में नहीं आये वे हमारे लिये
ग़रीब भी बन गये।
इस अवसर संत पापा उस ग़रीबी के बारे में भी इंगित किया जिसके
शिकार न केवल ग़रीब देश के लोग हैं पर इस समस्या से आर्थिक रूप से धनी लोग भी पीड़ित
हैं।
आध्यात्मिक और नैतिक ग़रीबी विश्व के लिये और ही घातक है और जब तब इसका निदान
न हो जाये तब तक विश्व में शांति की स्थापना नहीं हो सकती है। संत पापा ने कहा कि
ग़रीबी से निपटने के लिये हमें चाहिये कि हम सब एकजुट होकर कार्य करें ।
उन्होंने
यह भी कहा कि समाज की इस बीमारी का समाधान एक दिन में संभव नहीं हो सकता है इसके समाधान
के लिये हमें लगातार कार्य करते रहने की आवश्यकता है।
इस अवसर देशों के बीच अस्त्र-शस्त्रों
की होड़ के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह मानव के अधिकारों के विरुद्ध है जिसे
किसी भी हालत में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
संत पापा का यह भी मानना है कि
अगर हमारे समाज में समानता न रहे और सहयोग की भावना न रहे तो भी ग़रीबी की समस्या से
हम नहीं उबर सकते हैं।
येसु ने एक शांतिपूर्ण क्रांति लायी जो आध्यात्मिकता और
विचारों के आधार पर नहीं थी पर एक ऐसी क्रांति थी जिसका आधार था धैर्य, अंतः