साल के अन्त में भारत और पड़ोस के देशों पर एक दृष्टि
श्रोताओ, हर साल एक नई उमंग, एक नया उत्साह औरे एक नया आनन्द लेकर आता है किन्तु यह बीते
हुए वर्ष पर चिन्तन का भी एक सुअवसर होता है ताकि अपनी सफलता-असफलता, उपलब्धियों एवं
नाकामियों पर विचार किया जा तके तथा प्राप्त अनुभवों का लाभ उठाकर भावी जीवन को बेहतर
बनाने का प्रयास किया जा सके। इसी विचार के साथ आइये एक नज़र अपने प्रिय देश भारत तथा
पड़ोसी देशों पर डालें - ................... भारतः भारत पर यदि एक नज़र डालें तो
इस साल देश के कई हिस्सों में चरमपंथियों ने आतंकवादी हमले किये। मुम्बई, नई दिल्ली,
अहमदाबाद, जयपुर, और बैंगलोर सहित अनेक अन्य जगहों पर विस्फोट किये गये तथा दहशत फैलाने
का प्रयास किया गया।
विनाशकारी विस्फोटः दिल्ली शहर के कनॉट प्लेस, बाराखंभा
रोड, गफ़्फ़ार मार्केट, ग्रेटर कैलाश तथा करोल बाग़ इलाक़े में हुए पाँच बम धमाकों में
21 लोग मारे गए जबकि 97 घायल हुए।
असम में हुए 12 सिलसिलेवार धमाकों में 60 से
अधिक लोग मारे गए। गुवाहाटी सहित राज्य के दो अन्य इलाकों में एक घंटे के भीतर सिलसिलेवार
कई धमाके हुए। हालाँकि असम की खुफिया सेवा ने अलगाववादी युनाइटेड लिबरेशन फ़्रंट ऑफ़
असम (अल्फ़ा) को धमाकों के लिए ज़िम्मेदार बताया था लेकिन अल्फ़ा ने इस बात से साफ इनकार
कर दिया था।
13 मई, 2008 को राजस्थान की राजधानी जयपुर विस्फोटों का निशाना बनी।
जनसंकुल जौहरी बाज़ार, त्रिपोलिया बाज़ार, बड़ी चौपाल, छोटी चौपाल, मानस चौक, चाँद पोल
और कोतवाली के पास हुए सात सिलसिलेवार बम धमाकों में 63 लोगों की मौत हो गई और दो सौ
से अधिक लोग घायल हुए।
25 जुलाई सन् 2008 को टेलेविज़न पर भारत के आई.टी. गढ़
बैंगलोर में धमाकों की खबर छाई रही। एक के बाद एक सात विस्फोट हुए। इन धमाकों में दो
लोग मारे गए और सात अन्य लोग घायल हुए। अधिकतर धमाके भीड़ भरे इलाक़ों में हुए जहाँ कई
आईटी कंपनियों के कार्यालय हैं।
26 जुलाई, 2008 को गुजरात के अहमदाबाद शहर में
डेढ़ घण्टे के अन्तर्गत एक के बाद एक 16 बम धमाके हुए जिनमें 49 लोग मारे गए और 150 से
अधिक घायल हुए।
मुम्बई में दहशतः आतंकवाद का सबसे ख़ौफनाक रूप 26 नवंबर,
2008 को मुम्बई में सामने आया जब चरमपंथियों ने ताज और ओबरॉय पाँच सितारा होटेल के साथ
साथ नरीमन हाऊस, कैफ़े लियोपॉल्ड तथा छत्रपति शिवाजी सेन्ट्रल रेल्वे स्टेशन को निशाना
बनाया तथा निर्दोष लोगों पर, अन्धाधुन्ध गोलियाँ चलाकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया।
इन हमलों में 26 विदेशियों सहित 179 लोग मारे गए। लगभग 300 व्यक्ति घायल भी हुए। पुलिसकर्मियों,
अधिकारियों और आम नागरिकों की मौत और बड़ी संख्या में घायलों की ख़बर ने मुंबई को हिलाकर
रख दिया। सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में नौ चरमपंथी मारे गए और एक चरमपंथी मोहम्मद अजमल
आमिर कसाब को जिंदा पकड़ लिया गया। भारत तथा अमरीका एवं ब्रिटेन की खुफिया संस्थाओं
ने इस खौफ़नाक हमले को पाकिस्तानी खुफ़िया आई.एस.आई. की मदद से लश्कर-ए-तायबा चरमपंथी
दल का घिनौना कृत्य बताया है किन्तु सबूतों के बावजूद पाकिस्तान की सरकार यह मानने को
राज़ी नहीं कि आतंकवादी पाकिस्तान के ही नागरिक थे। मुम्बई हमलों के बाद से भारत तथा
पाकिस्तान के बीच तनाव सघन हो गये हैं।
उड़ीसा में ख्रीस्तीयों का उत्पीड़न आतंकवादी
हमलों के साथ साथ इस वर्ष भारत को अनेक अन्य चुनौतियों का सामना करना पडा जैसे एशिया
के महान धर्मों के बीच वार्ता, सम्वाद, सहिष्णुता और मैत्री का प्रयास करनेवाले भारत
में धर्मान्ध एवं अतिवादी हिन्दुओं ने सहअस्तित्व को भंग किया। अगस्त माह में विहिप के
नेता स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या का आरोप उन्होंने कँधामाल के शांतिप्रिय ख्रीस्तीय
समुदाय पर लगाया तथा उन पर अत्याचारों का सिलसिला आरम्भ कर दिया, जो आज भी जारी है। इस
हिंसा में कम से कम 100 ख्रीस्तीय मारे गए। ख्रीस्तीयों के गिरजाघरों एवं आवासों को
आग के हवाले कर दिया गया, उनकी संस्थाओं में तोड़ फोड़ मचाई गई, धर्मबहनों को उत्पीड़ित
किया गया जिनमें एक धर्मबहन को आततायियों के हाथों बलात्कार का भी शिकार बनाया गया। कई
ख्रीस्तीयों की खुलेआम हत्या कर दी गई और कई को आग के हवाले कर दिया गया। उड़ीसा के कंधमाल
ज़िले तथा इसके आसपास के क्षेत्रों में कई माहों तक हिंसा और मृत्यु का ताण्डव मचता रहा
जबकि पुलिस इसे रोकने में असमर्थ रही। हिन्दु अतिवादियों द्वारा फैलाई दहशत के कारण उड़ीसा
के ख्रीस्तीय अन्यत्र पलायन को बाध्य हुए तथा हज़ारों ने शरणार्थी शिविरों का रुख किया
जहाँ वे अभी भी अभावग्रस्त जीवन की मार को सह रहे हैं।
विहिप के नेता स्वामी
लक्ष्मणानंद की हत्या अज्ञात बंदूकधारियों ने कर दी थी और बाद में माओवादी लड़ाका दल
ने इसकी ज़िम्मेदारी भी ली थी।
सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के जगतगुरु और परमाध्यक्ष
सन्त पापा बेनेडिक्ट 16वें ने उड़ीसा में ख्रीस्तीयों के विरुद्ध हिंसा की भर्त्सना की
तथा विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच आपसी सम्मान एवं भारतीय संविधान के अनुकूल प्रत्येक
नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करने का आव्हान किया। यूरोपीय संघ ने भी एक बयाँ
जारी कर हिंसा को न रोक पाने के लिये उड़ीसा एवं भारतीय सरकार की कड़ी निन्दा की थी।
अमरनाथ विवाद और हिंसा भारत प्रशासित जम्मू कश्मीर राज्य में भी हिंसा का
बोलबाला रहा। सर्वाधिक हिंसा अमरनाथ मन्दिर को लेकर हुई। हिमालय की गुफ़ा में स्थित अमरनाथ
मंदिर में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु सदियों से दर्शन के लिए आते रहे हैं किन्तु
सन् 2008 में यह गहन विवाद का विषय रहा तथा इससे जुड़े झगड़ों में कई लोग मौत के शिकार
हो गये। वस्तुतः, जम्मू कश्मीर सरकार ने पहले अमरनाथ मंदिर बोर्ड को 40 हेक्टेयर ज़मीन
देने की घोषणा की थी जिस पर अमरनाथ यात्रियों के लिए अस्थायी सुविधाओं का निर्माण किया
जाना था लेकिन बाद में कश्मीर घाटी के कई संगठनों के विरोध के बाद जम्मू-कश्मीर की सरकार
ने यह फ़ैसला वापस ले लिया।
चुनाव प्रक्रियाः राजनीति पर यदि एक दृष्टि डालें
तो इस वर्ष भारत में विधान सभा चुनाव भी हुए जिनमें राजस्थान, दिल्ली और मिज़ोरम को छोड़कर
अन्य राज्यों में पराजय ही काँग्रेस के हाथ लगी। आगामी वर्ष लोक सभा चुनावों की दृष्टि
से दिल्ली में काँग्रेस की जीत को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। मध्यप्रदेश, गुजरात एवं
कर्नाटक जैसे राज्यों में जीत हासिल कर भारतीय जनता पार्टी काफ़ी उत्साहित है।
अंतरिक्ष
में एक कदम और आगे भारत का पहला मानवरहित अभियान चंद्रयान-1, 22 अक्तूबर की सुबह
सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इसके साथ ही भारत अंतरिक्ष अनुसंधान की नई पीढ़ी में
प्रवेश कर गया है। इसरो का कहना है कि चंद्रयान चांद की आख़िरी कक्षा में पहुँच गया
है जो चंद्रमा से मात्र 102 किलोमीटर दूर है। चंद्रयान अपनी यात्रा शुरू करने के सप्ताह
भर बाद से ही पृथ्वी की तस्वीरें नियंत्रण कक्ष को भेज रहा है। इसे अंतरिक्ष अनुसंधान
के क्षेत्र में भारत की एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।
असैन्य परमाणु समझौता
इसी वर्ष भारत एवं अमरीका के बीच असैन्य परमाणु समझौता हुआ। आठ अक्तूबर, 2008
अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने समझौते पर हस्ताक्षर कर औपचारिकता पूरी की। इस समझौते
के साथ ही भारत के साथ परमाणु ईंधन और तकनीक के व्यापार करने पर तीन दशकों से लगा हुआ
प्रतिबंध ख़त्म हो जाएगा। कई लोगों का मानना है कि बुश प्रशासन की विदेश नीति की गिनी
चुनी उपलब्धियों में इस समझौते का अहम स्थान होगा। इसी तरह भारत की यूपीए सरकार भी इसे
एक बड़ी उपलब्धि की तरह देख रही है। भारत सरकार का मानना है कि इस समझौते से उसे देश
और अर्थव्यवस्था की बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी। हालांकि भारत
में अनेक विपक्षी दल इस तर्क से सहमत नहीं हैं।
पाकिस्तानः सन् 2008 में पाकिस्तान
की राजनीति में अभूतपूर्व परिवर्तन देखे गये। सन् 2007 के अंत में बेनज़ीर भुट्टो की
हत्या के बाद देश में चुनाव हुए जिसके बाद बेनज़ीर के पति आसिफ़ अली ज़रदारी राष्ट्रपति
बने। राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपना पद त्यागा किन्तु इसके बाद से तालिबान का प्रभाव
सम्पूर्ण पाकिस्तान में बढ़ता दिखाई दे रहा है जहाँ आये दिन चरमपंथी हमले हो रहे हैं।
नवम्बर 26 को मुम्बई हमलों के बाद भारत के साथ भी पाकिस्तान के सम्बन्ध कड़ुवे हो चले
हैं तथा पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा है। यहां तक कि अमरीका और ब्रिटेन ने भी
पाकिस्तान से चरमपंथियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
अफ़गानिस्तानः
अफ़गानिस्तान में हालात पहले से ख़राब हुए और हाल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार देश
के लगभग सत्तर प्रतिशत इलाक़ों में तालिबान का प्रभाव बढ़ गया है। जुलाई के महीने में
काबुल में भारतीय दूतावास पर आक्रमण हुआ तथा इसके बाद से परिस्थितियां बदतर होने लगीं।
तालिबान के बढ़ते प्रभाव के मद्देनज़र राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने तालिबान के समक्ष
वार्ता का प्रस्ताव रखा जिसे तालिबान ने यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि जबतक विदेशी सैनिक
देश नहीं छोड़ते वह वार्ताएं नहीं करेगा। बांग्लादेशः बांग्लादेश के लिये सन् 2008
अस्थायी सैन्य शासन तथा 2007 में आये प्राकृतिक प्रकोपों के प्रभाव से जूझने का काल रहा।
मई माह में आम चुनावों की घोषणा की गई तथा शेख हसीना और ख़ालिदा ज़िया पर लगे कुछेक प्रतिबन्धों
को हटाया गया। साल के अंत में देश में चुनाव संपन्न हुए तथा शेख हसीना की अवामी लीग बहुमत
प्राप्त कर विजयी हुई।
नेपालः नेपाल के लिए सन् 2008 ऐतिहासिक वर्ष माना जा रहा
है। राजशाही के अंत के बाद इस वर्ष नेपाल में लोकतांत्रिक चुनाव हुए और मई के महीने में
नेपाल आधिकारिक रुप से गणतंत्र घोषित हुआ। अप्रैल माह के चुनावों में माओवादियों ने भी
हिस्सा लिया और सबसे बड़े दल के रुप में उभर कर अगस्त माह में नई प्रजातांत्रिक सरकार
का गठन किया। माओवादी नेता पुष्प कमल प्रचंड देश के प्रधानमंत्री बने और रामबरन यादव
देश के राष्ट्रपति।
श्री लंकाः श्री लंका में तमिल विद्रोहियों और सरकारी सेना
के बीच दशकों से चल रही लड़ाई और अधिक तनाव ग्रस्त हो गई इसलिये कि सन् 2008 के आरम्भ
में सरकार ने 2002 के युद्ध विराम को भंग कर दिया। तमिलों के ख़िलाफ मानवाधिकार हनन की
घटनाओं की जांच के लिए गये अंतरराष्ट्रीय दल ने वापस लौटकर आरोप लगाया कि श्रीलंका सरकार
उसे समर्थन नहीं दे रही थी। जुलाई माह में सरकारी सेनाओं ने तमिल विद्रोहियों के कब्ज़े
वाले क्षेत्रों पर ज़ोरदार हमला किया तथा बातचीत की संभावना को पूरी तरह ख़ारिज़ कर दिया।
बर्माः बर्मा इस वर्ष नरगिस तूफ़ान और उसके दुष्परिणामों के साथ जूझता रहा जिसमें
मरने वालों की संख्या एक लाख तीस हज़ार बताई गई। तूफ़ान पीड़ितों को अन्तरराष्ट्रीय स्तर
पर राहत सामग्री भेजी गई किन्तु बर्मा की सरकार ने इसका दुरुपयोग किया। नरगिस तूफान के
चलते ही देश में होने वाले जनमत संग्रह को टाल दिया गया। देश में प्रजातंत्र लाने के
लिए संघर्षरत आऊन सान सूकी पर बर्मा की सरकार ने और कड़े प्रतिबन्ध लगा दिये तथा उनकी
नज़रबन्दी को भी बढ़ा दिया।