नई दिल्लीः भारत के धर्माध्यक्षों द्वारा "अछूतों" का बचाव
भारत के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन तथा भारत स्थित कलीसियाओं की राष्ट्रीय समिति ने
सात दिसम्बर को, अछूत अथवा दलित समुदाय के लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए,
"दलित मुक्ति दिवस" की घोषणा की है। "न्याय की खोज करो तथा दमन के शिकार लोगों को मुक्ति
दिलाओ" इस दिवस का शीर्षक चुना गया है। ग़ौरतलब है कि भारत में कई वर्षों पूर्व
जातिवाद प्रथा का उन्मूलन कर दिया गया था किन्तु अभी भी अछूत समुदाय के सदस्य हाशिये
पर रखे जा रहे हैं तथा अत्यचारों के शिकार बनाये जा रहे हैं विशेषकर इसलिये कि उन्होंने
ख्रीस्तीय अथवा इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया है। उड़ीसा तथा अन्य राज्यों में, हाल
के माहों में हुई, ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा की पृष्टभूमि में उक्त दिवस की घोषणा की गई
है। इस हिंसा में 60 से अधिक ख्रीस्तीय मारे गये तथा हज़ारों बेघर हो गये हैं। हिंसा
के शिकार लगभग सभी व्यक्ति ख्रीस्तीय दलित हैं। एक सार्वजनिक वकतव्य जारी कर काथलिक
धर्माध्यक्षीय सम्मेलन ने कहा कि ख्रीस्तीय दलितों पर इसलिये आक्रमण किया जाता है क्योंकि
वे दलित हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि जाति नाम पर उनका दमन किया जाता तथा ख्रीस्तीय धर्मानुयायी
होने के नाते धर्म के नाम पर उनके विरुद्ध भेदभाव किया जाता है। कहा गया कि ख्रीस्तीय
दलितों के विरुद्ध हिंसा मानवाधिकारों के अतिक्रमण का स्पष्ट प्रमाण है। दस दिसम्बर
को मानवाधिकार सम्बन्धी सार्वभौम घोषणा पत्र की वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में धर्माध्यक्षों
ने रविवार सात दिसम्बर को दलित दिवस की घोषणा की है। उक्त वकतव्य में कहा गया कि इस दिवस
का उद्देश्य भारत के ख्रीस्तीय समुदाय में दलितों की व्यथा के प्रति चेतना जाग्रत करना
और साथ ही दलितों की रक्षा एवं उनके अधिकारों के सम्मान हेतु संकल्पबद्ध कदम उठाये जाने
हेतु सरकार का आव्हान करना है।