शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माणय़ और शांतिपूर्ण भविष्यः पोप
जेनेवा, 3 दिसंबर, 2008। संत पापा ने आह्वान किया है कि यदि हम सबों को लेकर आगे बढ़ने
की शिक्षा देना चाहते हैं तो हमें चाहिये कि हम मानव का सम्मान देने से भी आगे की बात
सोचना चाहिये।
उक्त बातें संयुक्त राष्ट्र संघ मे संत पापा के स्थायी पर्यवेक्षक
धर्माध्यक्ष सिलभानो तोमासी ने उस समय कहीं जब वे युएन में शिक्षा पर आयोजित 48वें अंतरराष्ट्रीय
सम्मेलन में सभा को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने आगे कहा कि संत पापा चाहते हैं
कि शिक्षा का अंतिम उद्देश्य है कि सब लोगों को यह शिक्षा मिले कि वे आपसी प्रेम भाव
के साथ रहना सींखे और ऐसे विश्व के निर्माण में अपना योगदान दें जहाँ लोग शांतिपू्र्ण
जीवन जी सकें।
साथ ही एक राष्ट्र के लोग दूसरे राष्ट्र के लोगों के साथ अपनी
संस्कृति की अच्छी बातों को बाँट सकें। महाधर्माध्यक्ष तोमासी ने इस बात पर भी बल दिया
कि शिक्षित लोगों को चाहिये के वे बिना भेदभाव के उन लोगों की विशेष चिन्ता करें जो गरीब,
लाचार हैं और ज़रुरतमंद हैं।
महाधर्माध्यक्ष तोमासी ने इस अवसर पर लोगों को अन्तरराष्ट्रीय
मानवाधिकारों की भी याद दिलायी जिसकी घोषणा का यह 60वाँ वर्ष है।
उन्होंने कहा
कहा कि माता पिता का परम दायित्व है कि वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दें।
महाधर्माध्यक्ष
तोमासी ने कहा कि शैक्षणिक संस्थाओं को चाहिये कि वे बच्चों के लिये एक ऐसा माहौल तैयार
करें ताकि वे बच्चों के मन को सूचनाओं से भर दिया जाये पर उनके चरित्र का निर्माण हो
सके।
उनका मानना है कि ऐसा होने से ही बच्चे अच्छे नागरिक बनेंगे और समाज कल्याण
के कार्यों में सक्रिय सहयोग कर पायेंगे ताकि लोग सत्य के मार्ग पर चल सकें।