बुधवारीय - आमदर्शन समारोह के अवसर पर 26 नवम्बर, 2008 को दिया गया संत पापा
बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश
बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के
प्रांगण में एकत्रित हजारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया। उन्होंने
कहा-
प्रिय भाइयो एवं बहनों, आज की धर्मशिक्षा में हम पुनः संत पौल के जीवन पर
विचार करें। आज हम संत पौल की उस शिक्षा पर गौर करें जिसमें उन्होंने विश्वास के बारे
मे बताया है।
संत पौल का मानना है कि हम इसलिये धार्मिक और पवित्र माने जाते
हैं क्योंकि हमने येसु पर विश्वास किया है।
उन्होंने विश्वास को पवित्र आत्मा
के वरदानों से भी जोड़ा है। उनका मानना है कि पवित्र आत्मा का पहला काम है हमारे दिलों
में ईश्वर के प्रति प्रेम उत्पन्न करना ताकि हम येसु को प्यार करें।
जब हम प्रभु
येसु को प्यार करते हैं तो हम एक ऐसा जीवन जीने लगते हैं जो न केवल अपने लाभ के लिये
होता है पर हमारे जीवन से दूसरों का भी कल्याण होता है। और इस प्रकार से हम ईश्वर की
नयी सृष्टि बन जाते हैं।
हम पवित्र आत्मा के द्वारा कलीसिया के अभिन्न अंग बन
जाते हैं। इस प्रकार हम पाते हैं कि संत पौल और संत जेम्स की शिक्षा में कोई भी विरोधाभास
नहीं है। दोनों का मानना है कि येसु में विश्वास के कारण ही हम लोगों के लिये भला कार्य
करने में सक्ष्म हैं।
अगर कुछ अन्तर है तो वह अन्तर सिर्फ इस बात के लिये है
कि एक व्यक्ति विश्वास पर बल देता है तो दुसरों उसके वरदानों पर। आज प्रभु हमें बुला
रहे हैं ताकि हम अपने आप को प्रभु के लिये समर्पित करें और उसी ईश्वर की महिमा गाते हुए
जिसने हमें पवित्र आत्मा के वरदान दिये हैं लोंगो के बीच प्रभु के प्यार को बाँटें।
पवित्र
आत्मा को बाँटने का दायित्व व्यक्तिगत तो है ही सामूदायिक भी है ताकि अधिक से अधिक लोग
पवित्र आत्मा के वरदानों से परिपू्र्ण हो जायें।
इतना कहकर संत पापा ने अपना
संदेश समाप्त किया।
उन्होंने इंगलैंड, अमेरिका, उपस्थित लोगों और तीर्थयात्रियों
पर प्रभु की कृपा और शांति की कामना की और उनके परिवारों को खुशी और शाति का अपना प्रेरितिक
आशीर्वाद दिया।