2008-11-17 12:07:32

देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देश


श्रोताओ, रविवार 16 नवम्बर को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने रोम स्थित सन्त पेत्रुस महामन्दिर के प्राँगण में एकत्र हज़ारों तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। इससे पूर्व भक्त समुदाय को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहाः

“अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,

धर्मविधिक वर्ष के उपान्तिम रविवार के लिये निर्धारित धर्मग्रन्थ पाठ हमें समय के अन्त में प्रकट होनेवाले स्वामी, प्रभु येसु, के पुनरागमन की प्रतीक्षा में जागरुक एवं क्रियाशील रहने का आमंत्रण देते हैं। इस रविवार के लिये प्रस्तावित, सन्त मत्ती द्वारा रचित सुसमाचार पाठ अशर्फ़ियों के दृष्टान्त का विवरण प्रस्तुत करता है। वस्तुतः, अशर्फ़ी प्राचीन रोमी काल का एक बहुमूल्य सिक्का था और इसीलिये इसे व्यक्ति की दक्षता एवं उसकी योग्यता का पर्याय मान लिया गया जिसे फलप्रद बनाने के लिये हम सब बुलाये गये हैं।"

सन्त पापा ने आगे कहाः "वास्तव में, अशर्फ़ियों के दृष्टान्त का मूलपाठ उस एक व्यक्ति की बात करता है जिसने विदेश जाते समय अपने सेवकों को बुलाया और उन्हें अपनी सम्पत्ति सौंप दी। दृष्टान्त का व्यक्ति स्वयं ख्रीस्त का प्रतिनिधित्व करता है, सेवक येसु के शिष्य हैं और अशर्फ़ियाँ वे वरदान हैं जिन्हें येसु ने अपने शिष्यों के सिपुर्द कर दिया है। अस्तु, ये वरदान, इनकी प्राकृतिक गुणवत्ता के अतिरिक्त, उन सम्पत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें येसु ने हमारे दायभाग रूप में हमारे लिये रख छोड़ा है ताकि हम इन्हें फलप्रद बनायें, ये वरदान हैं: सुसमाचार में निहित येसु के परम वचन; पवित्रआत्मा में हमें नवीकृत करनेवाला, बपतिस्मा; "हे पिता हमारे" -प्रार्थना- जिसके द्वारा हम ईशपुत्र के साथ मिलकर पिता ईश्वर से याचना करते हैं; उनकी क्षमा, जिसे सब तक पहुँचाने का उन्होंने आदेश दिया है; तथा बलि रूप में अर्पित उनके देह एवं बहाये गये रक्त का संस्कार। एक शब्द में: ईश्वर का राज्य, जो वे स्वयं हैं, हमारे बीच विद्यमान एवं जीवित है।"

उन्होंने कहाः............ "यही है वह अनमोल सम्पत्ति जिसे येसु ने, इस धरती पर अपनी लघु अस्तित्व के बाद, अपने मित्रों के सिपुर्द किया है। आज का सुसमाचारी दृष्टान्त अन्तर मन से येसु के वरदानों का स्वागत करने तथा गहराई से उनका मूल्यांकन करने पर बल देता है। इन वरदानों के प्रति भय का व्यवहार ग़लत है: जो सेवक अपने मालिक से डरता है और उसके आने से घबराता है, अशर्फ़ी को ज़मीन में गाड़ देता है और वह कोई फल उत्पन्न नहीं करता। उदाहरण के लिये, ऐसा उस व्यक्ति को साथ होता है जो बपतिस्मा, यूखारिस्तीय परमप्रसाद एवं दृढ़ीकरण संस्कारों को प्राप्त कर लेने के बावजूद इन संस्कारों से मिले वरदानों को पूर्वाग्रहों तथा विश्वास एवं उदार कार्यों को अवरुद्ध करनेवाली ईश्वर की मिथ्या छवि के नीचे दफ़ना देता और प्रभु के पुनरागमन की प्रतीक्षा के साथ छल करता है। परन्तु सुसमाचारी दृष्टान्त उन शिष्यों द्वारा उत्पन्न अच्छे फलों पर अधिक ध्यान आकर्षित कराता है जो प्रभु के वरदान पाकर प्रसन्न थे तथा जिन्होंने न तो भय के कारण इन्हें छिपाया और न ही ईष्या के कारण इन्हें अपने पास रखा बल्कि इन्हें अन्यों में बाँटकर फलप्रद बनाया। जी हाँ, जो कुछ प्रभु ख्रीस्त ने हमें दिया वह अन्यों में बाँटने से और अधिक बढ़ जाता है। ये ऐसे वरदान हैं जिन्हें खर्च करने, निवेश करने तथा सबके साथ बाँटने के लिये संजोये रखा जाना चाहिये जैसा कि येसु के अशर्फ़ियों के महान संचालक प्रेरितवर सन्त पौल हमें सिखाते हैं।"

तदोपरान्त सन्त पापा ने कहाः .......... “आज की धर्मविधि द्वारा प्रस्तावित सुसमाचारी शिक्षा ने, ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों में क्रियाशील एवं रचनात्मक मानसिकता को प्रोत्साहित कर, ऐतिहासिक एवं सामाजिक स्तर पर भी अपनी छाप छोड़ी है। किन्तु इसका केन्द्रीय संदेश उस ज़िम्मेदारी की भावना से सम्बन्धित है जिसके साथ ईश राज्य का स्वागत किया जाना चाहिये, और वह हैः ईश्वर के प्रति ज़िम्मेदारी तथा मानव जाति के प्रति ज़िम्मेदारी। पवित्र कुँवारी मरियम का हृदय पूर्णतः इस ज़िम्मेदारी की भावना से अनुप्राणित था, जिन्होंने सब वरदानों में श्रेष्ठ अर्थात् स्वयं येसु को प्राप्त कर, असीम प्रेम के कारण उन्हें विश्व को अर्पित कर दिया। अच्छे और विश्वसनीय सेवक बनने के लिये हम उन्हीं से सहायता की याचना करें ताकि एक दिन प्रभु के आनन्द में भागीदार बन सकें।"

इस प्रकार, सबसे प्रार्थना का अनुरोध करने के बाद, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने उपस्थित तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सब पर प्रभु की शांति का आव्हान कर सबको अपना प्रेरितिक आर्शीवाद प्रदान किया ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

देवदूत प्रार्थना के बाद सन्त पापा ने विभिन्न भाषाओं में तीर्थयात्रियों का अभिवादन किया। अँग्रेज़ी भाषा भाषियों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहाः .........................
"नवम्बर माह के तीसरे रविवार को हम विशेष रूप से उन मृतकों की याद करते हैं जिन्होंने सड़क दुर्घटना में अपने प्राण खोयें हैं। हम उनकी आत्माओं की शान्ति के लिये प्रार्थना करते तथा उनके शोकाकुल परिजनों के लिये दैवीय सान्तवना की मंगलकामना करते हैं। प्रिय भाइयों एवं बहनों, वाहन चालकों, यात्रियों एवं पैदलगामियों से मैं विनम्र अनुरोध करता हूँ कि आप सभी आज की धर्मविधि में निहित सन्त पौल के शब्दों पर कान दें और सौम्य, संयत एवं जागरूक रहें। सड़कों पर हमारा व्यवहार ज़िम्मेदारी, एकाग्रता तथा अन्यों के प्रति सम्मान का होना चाहिये। इस जग के मार्गों एवं राजमार्गों पर सुरक्षापूर्वक यात्रा करने हेतु, पवित्र कुँवारी मरियम, हमारा मार्गदर्शन करें।" ...........................









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