धर्माध्यक्षों की महासभा ने संत पापा को ईश्वर के दिव्य वचन के संबंध में 55 प्रस्ताव
प्रस्तुत किये हैं। संत पापा ने उन सबको स्वीकार कर लिये हैं। प्रस्ताव को दो तिहाई
मत से पास होना था। सभा में 244 सदस्य मौजूद थे और सभी प्रस्तावों को दो तिहाई मतों से
पारित कर दिया गया।
प्रस्ताव के पहले भाग में कलीसियाई विश्ववास में ईशवचन का
महत्व विषय को पारित किया गया है।
इसमें चर्चा की गयी है कि किस प्रकार से काथलिक
समुदाय का संबंध येसु से होना है और किस तरह से ख्रीस्तीय येसु को बाईबल के अध्ययन और
उस पर मनन ध्यान करने से प्राप्त कर सकते हैं।
इसमें पवित्र आत्मा के भूमिका
के और पवित्र आत्मा का कलीसिया औऱ यूखरिस्त के साथ संबंध बारे में चर्चा की गयी है।
प्रस्तावना
के दूसरे भाग में ईशवचन और कलीसियाई जीवन की चर्चा है जिसमें इस बात पर भी बल दिया गया
है कि किस तरह से ख्रीस्तीय जीवन को अर्थपूर्ण बनाया जा सकता है। प्रवचन किस प्रकार प्रभावपूर्ण
हो इसके बारे में भी बताया गया है।
प्रस्तावना के तीसरे भाग में इस बात की चर्चा
की गयी है कि प्रभु का वचन किस प्रकार हर ख्रीस्तीय का एक मिशन है। इसी भाग में अन्तरधार्मिक
वार्ता के बारे में चर्चा की गयी है और इस संबंध मे मार्गनिर्देशन दिया गया है।
सब
ही प्रस्तावों को एक समिति ने तैयार किया जिसके अध्यक्ष थे क्यूबेक के कार्डिनल मार्क
क्वेलेत।