2008-10-25 15:17:05

प्रभु के दिव्य वचन से विश्व शांति की स्थापना संभव


रोम में चल रही धर्माध्यक्षों की 21 वीं महासभा में शुक्रवार 24 अक्तूबर को उन बातों के लिये वोट किया गया जिन्हें धर्माध्यक्षों की ओर से अंतिम संदेश के रूप में लोगों को उपलब्ध कराया जायेगा।
इस अंतिम संदेश में धर्माध्यक्षों ने कहा है कि ईश्वर का दिव्य वचन सृष्टि क आरंभ से है और इसकी आवाज़ से सुन्दर दुनिया की रचना हुई और यह आवाज़ पूरी दुनिया में ब्याप्त है। यह वही आवाज़ है जो पवित्र धर्मग्रंथ में अंकित है और हम इसे पढ़ते हैं और पवित्र आत्मा की कृपा से नवजीवन प्राप्त करते हैं।
इसमें इस बात को भी बताया गया है कि येसु मसीह ईश्वर के पुत्र हैं और साथ ही वे एक ऐतिहासिक मनुष्य भी हैं और दुनिया के लोगों के लिये हैं।
ईसाई धर्म के बारे मे बोलते हुए उन्होंने कहा कि ईसाई धर्म येसु मसीह पर आधारित है जिन्होंने पिता ईश्वर को हमारे लिये प्रकट किया है और जिनके द्वारा हम सुसमाचार को अच्छी तरह से समझने की शक्ति मिलती है।


संत लूकस की बातों को दुहराते हुए धर्माध्यक्ष महासभा के धर्माध्यक्षों ने कहा कि कलीसिया चार बातों के लिये प्रयत्नशील रहती है धर्मशिक्षा परमप्रसाद प्रार्थना औऱ आपसी भाईचारा।
धर्माध्यक्षों ने इस बात पर भी बल दिया कि ईसाइयों के लिये सिर्फ आवश्यक नहीं है कि वे धर्मग्रंथ ग्रंथ का पाठ करें पर उन्हें चाहिये कि वे प्रभु के वचन के अनुसार कार्य करें। धर्माध्यक्षों ने यह भी कहा कि प्रभु के वचन को दुनिया के कोने-कोने तक पहूँचाया जाना चाहिये।
इस समय मे इस बात पर भी बल दिया गया कि धर्ममाजियों, पुरोहितों, धर्मबहनों और लोकधर्मियों के द्वारा प्रभु के वचन का प्रचार रहा उसे जारी रखा जाना चाहिये ताकि विश्व में शांति राज्य स्थापित होगा जिससे सारा जग आलोकित होगा।












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