प्रभु सेवक संत पापा जोन पौल द्वितीय ने 10 वर्ष पूर्व विश्वास और तर्कणा शीर्षक से एक
विश्व पत्र जारी किया था जिसमें उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि विश्वास और तर्कणा
एक दूसरे के संगत हैं लेकिन इन्हें अकेले अकेले देखा जाये तो ये एक ओर अंधविश्वास और
दूसरी तरफ सापेक्षवाद को बढ़ावा देते हैं। उक्त विश्व पत्र की 10 वीं वर्षगांठ पर इसके
संदेश पर चिंतन करने के लिए परमधर्मपीठीय लातेरन विश्वविद्यालय द्वारा एक सम्मेलन का
आयोजन किया जा रहा है। सम्मेलन के लगभग 300 प्रतिभागियों को गुरूवार को वाटिकन स्थित
क्लेमेंतीन सभागार में संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने सम्बोधित करते हुए कहा कि इस दस्तावेज
का संदेश उतना ही सार्थक है जितना कि तब जब इसे लिखा गया था। उन्होंने कहा कि आज विज्ञान
प्रकृति की विभिन्न कार्य प्रणालियों को समझने में सफल हो गयी है जो मानव जाति के हितार्थ
है तथापि इस खतरे के प्रति सचेत रहें कि सृष्टिकर्त्ता को ही अपने स्थान से हटा देने
के लिए कभी कभी विज्ञान का उपयोग करने का प्रयास किया जा सकता है। संत पापा ने कहा कि
विज्ञान इस अवस्था में नहीं है कि वह नैतिकता का निर्धारण करे। विश्वास, विज्ञान और तर्कणा
के लिए सीमा का निर्धारण नहीं करना चाहती है लेकिन एक सतर्क दृष्टि होनी चाहिए ताकि यह
सुनिश्चित किया जा सके कि विज्ञान का उपयोग मानवजाति के लाभ हेतु किया जाये। तर्कणा सत्य
का निर्धारण नहीं करती लेकिन इसे खोजती है। उन्होंने कहा कि केवल तर्कणा के बल पर ही
उच्चतम सत्य का खोज नहीं की जा सकती है लेकिन इसे उपहार के रूप में दिया जाना चाहिए।
वह सत्य एक व्यक्ति हैं येसु ख्रीस्त। येसु ख्रीस्त के इस रहस्य के इर्द गिर्द ही विश्व्स
और तर्कणा वास्तव में सामान्य पथ प्राप्त कर सकते हैं।