भारत की प्रथम संत सि. आल्फोन्सा की संत घोषणा पर एक रिपोर्ट
रविवार 12 अक्टूबर को, रोम के सन्त पेत्रुस महामन्दिर के प्राँगण में एकत्र हज़ारों तीर्थयात्रियों
की उपस्थिति में, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने इटली के पुरोहित गायतानो एरिको, स्विटज़रलैण्ड
की मरिया बेरनारदा बटलर, स्पेन की लोकधर्मी महिला नारचिसा मोरान के साथ साथ केरल स्थित
कोट्टायम ज़िले के पालाय धर्मप्रान्त की धर्मबहन सि. आल्फोनसा को सन्त घोषित कर भारत
को प्रथम काथलिक महिला सन्त का वरदान प्रदान किया।
रविवार के इस समारोह में भाग
लेने केरल मात्र से लगभग 500 तार्थयात्री रोम पहुँचे। भारत सरकार की ओर से केन्द्रीय
श्रम संगठन मंत्री ऑस्कर फरनानडेज़ के नेतृत्व में 12 सदस्यीय शिष्ठमण्डल भी सन्त घोषणा
समारोह में उपस्थित हुआ। इनके अतिरिक्त यूरोप के विभिन्न देशों में जीवन यापन करनेवाले
केरल के कुछ दस हज़ार आप्रवासियों ने फ्राँसिसकन क्लेरिस्ट धर्मसंघ की सदस्या सि. आल्फोनसा
के सन्त घोषणा समारोह में भाग लिया।
फ्राँसिसकन क्लेरिस्ट धर्मसंघ की सदस्या
सि. आल्फोन्सा को स्व. सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने नौ जुलाई सन् 1986 ई. को धन्य घोषित
कर वेदी का सम्मान प्रदान किया था तभी से उनकी समाधि पर प्रार्थियों की भीड़ लगना आरम्भ
हो गई थी। सन् 1999 में सि. आल्फोन्सा की मध्यस्थता से विकलांग जन्मे जिनिल नामक बालक
की चमत्कारी चंगाई की खबर सम्पूर्ण विश्व में छा गई तथा रोम स्थित सन्त प्रकरण परिषद
में जाँच पड़ताल के लिये पेश की गई। चश्मदीद गवाहों के बयाँ के अनुसार जिनिल के दोनों
पाँव घुटनों के नीचे से मुड़े हुए थे तथा वह चलने में असमर्थ था। जिनिल के जन्म के अवसर
पर उपस्थित डॉ. एलियाम्मा कोराह ने जिनिल की बीमारी को "तालिपेस एकवीनियो वारुस" नाम
से रिकॉर्ड किया था और यहाँ तक कह दिया था कि उसके लिये कुछ किया नहीं जा सकता था। अपने
पल्ली पुरोहित की सलाह पर जिनिल के माता पिता ने सि. आल्फोन्सा से प्रार्थना की तथा अपने
बेटे के लिये चमत्कारी चंगाई का वरदान प्राप्त किया। वर्षों तक जाँचपड़ताल के बाद पहली
जून सन् 2007 को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने सि. आल्फोन्सा की मध्यस्थता से सम्पन्न
चमत्कारी चंगाई को अनुमोदन दिया तथा 12 अक्तूबर सन् 2008 को उनके सन्त घोषित किये जाने
की पुष्टि की।
12 अक्तूबर को सि. आल्फोन्सा की सन्त घोषणा केरल तथा सम्पूर्ण
भारत के काथलिक धर्मानुयायियों के लिये गौरव का विषय है। धर्माध्यक्ष कल्लंगनाट के अनुसार
सि. आल्फोन्सा की सन्त घोषणा आशा और अनन्त जीवन का प्रतीक है। उनके अनुसार इससे हिन्दु
चरमपंथियों द्वारा सताये जा रहे काथलिकों को संबल प्राप्त होगा तथा पीड़ा के मर्म को
समझने की शक्ति प्राप्त होगी। उल्लेखनीय है कि विगत कई वर्षों से कुछेक हिन्दु चरमपंथी
दल राजनैतिक स्वार्थ के कारण ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों पर धर्मान्तरण का झूठा आरोप लगाकर
उनपर अत्याचार करते रहे हैं। इस वर्ष अगस्त माह से इन अत्याचारों ने भयावह रूप ले लिया
है। उड़ीसा से लेकर मध्यप्रदेश, कर्नाटक, तमिल नाड तथा केरल तक हिन्दु चरमपंथियों ने
ख्रीस्तीयों में आतंक मचाया। फ्राँसिसकन क्लेरिस्ट धर्मसंघ की अध्यक्षा सि. सेलिया ने
वाटिकन रेडियो को बताया कि उनके धर्मसंघ की सात हज़ार से अधिक सिस्टरें भारत तथा अफ्रीका
के अनेक देशों में मानव उत्थान के कार्यों में संलग्न हैं। उड़ीसा तथा मध्यप्रदेश में
भी वे शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा प्रेरिताई में लगीं हैं। उन्होंने बताया कि हाल
में उड़ीसा के कंधमाल ज़िले में ख्रीस्तीयों के विरुद्ध हिन्दु अतिवादियों की हिंसा के
परिणामस्वरूप उनके धर्मसंघ की सि. मेबल के प्राण गये तथा कुछ वर्षों पूर्व इन्दौर धर्मप्रान्त
में सेवारत सि. रानी मरिया की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी,
सन्त घोषणा समारोह
के दौरान प्रवचन करते हुए सन्त पापा ने सन्त घोषित चारों महान आत्माओं के जीवन एवं कृतित्व
पर प्रकाश डाला। सि. आल्फोन्सा के विषय में उन्होंने कहा कि यह असाधारण नारी जिसे आज
भारत के लोगों के लिए प्रथम संत के रूप में अर्पित किया जा रहा है उनका यह विश्वास दृढ़
था कि क्रूस और उसकी पीड़ा को सहकर ही मानव अनन्त जीवन का सुख प्राप्त कर सकता था।
रोम
में आयोजित सन्त घोषणा समारोह का सीधा प्रसारण भारत के कई टेलेविज़न चैनलों द्वारा किया
गया। इस अवसर पर कोट्टायम ज़िले के सभी गिरजाघरों के घण्टे बजाये गये तथा भारानंगनम में,
सि. आल्फोन्सा की समाधि पर निर्मित तीर्थस्थल के इर्द गिर्द एकत्र एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं
ने विशाल टेलेविज़न के पर्दों पर अपनी दृष्टि लगाकर सन्त घोषणा समारोह में भाग लिया।