2008-10-06 13:08:57

ईश्वर के दिव्य वचन से ही विश्व को एक नया जीवन- संत पापा


ईश्वर के दिव्य वचन से ही विश्व को एक नया जीवन- संत पापा
संत पापा ने धर्माध्यक्षों की 12वीं महासभा का उद्घाटन करते हुए आशा व्यक्त की कि ईश्वर के दिव्य वचन से ही विश्व को एक नया जीवन मिल सकता है और लोग ईश्वर को फिर से अपने जीवन में उचित स्थान दे पायेंगे।

संत पापा ने उक्त बातें उस समय कहीं जब वे रविवार 5 अक्तुबर को धर्माध्यक्षों की महासभा के उद्घाटन के यूखरिस्तीय समारोह में लोगों को प्रवचन दे रहे थे। मिस्सा पूजा सेंट पौल आउटसाइज द वोल महागिरजाघर में सम्पन्न हुआ।

धर्माध्यक्षों की 12वी महासभा की विषय वस्तु है " कलीसियाई जीवन और मिशन में ईशवचन ।"

इस अवसर पर संत पापा ने इस बात की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया कि वे देश जो किसी समय में ईशवचन के प्रचार-प्रसार में बहुत योगदान दिया करते थे अब आधुनिक युग की नयी संस्कृति के कारण अपना प्रभाव खो रहे हैं।

आज के समाज की स्थिति यह है कि लोग समझने लगे हैं कि ईश्वर नहीं है। वे ऐसा सोचकर अपने मन के अऩुसार जीवन व्यतीत कर रहे हैं और इसी लिये वे ईश्वर के द्वारा दिये गये मुक्ति पर विश्वास नहीं करने लगे हैं। वे सोचने लगे हैं कि उसका जीवन अपना है और वे ऐसा करके स्वतंत्र हैं। संत पापा ने कहा कि ईश्वर से मुक्त होना सच्ची स्वतंत्रता नहीं है।

ईश्वर की शक्ति को बिना स्वीकार किये हम एक स्वतंत्र सभ्य, न्याय और शांति के समाज का निर्माण नहीं कर सकते हैं। अपने जीवन में ईश्वर को स्थान नहीं देने से समाज टूटता है और व्यक्ति भ्रमित हो जाता है।

संत पापा ने आगे कहा कि ऐसी परिस्थिति में धर्माध्यक्षों की महासभा सोचती है कि बुराई से मानवता को बचाया जाये और ईश्वर का वचन सदा ही लोगों को जीने की प्रेरणा देती रहे।

संत पापा ने बल देते हुए कहा इस विशेष कार्य को पूरा करने के लिये कलीसिया को चाहिये कि ईश वचन से अपने आप को परिपूर्ण कर ले तब ही वह अन्य लोगों को ईश्वर के बारे में सटीक तरीके से बता पायेगी।

ईशवचन को जानने उसके अनुसार जीने और उसका साक्ष्य देने से ही विश्व का कल्याण संभव है। संत पापा ने संत जेरोम का उदाहरण देते हुए कहा कि जो प्रभु के वचन को नहीं जानते हैं वे ईश्वर की शक्ति को भी नहीं जानते हैं और न ही वे ईश्वर के प्रज्ञा से परिचित हैं।

जो बाईबल को नहीं जानते हैं वे येसु मसीह को भी नहीं जानते हैं। अतः लोगों को चाहिये कि वे प्रभु के वचन को जानें और उसके अऩुसार जीवन बितायें।








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