2008-09-17 13:23:08

बुधवारीय-आमदर्शन समारोह के अवसर पर
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश


बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने पौल षष्टम् सभागार में एकत्रित हजारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया।

प्रिय भाइयो एवं बहनों, आज मैं आप लोगों को मेरी फ्रांस की प्रेरितिक यात्रा के विषय में बताना चाहूँगा। फ्रांस की यात्रा के दरमियान मैंने फ्रांस की राजधानी पेरिस में ' वर्ल्ड ऑफ कल्चर ' के लोगों से मुलाकात की।

मैंने उन्हें मठवासी तरीकों से ईश्वर को खोजने के बारे में बताया। यह न केवल फ्रांसिसियों का तरीका रहा है पर पूरे यूरोप के लोगों ने इसी तरह से ईश्वर को पाने का प्रयास किया था।



आज मैं इस बात पर बल देना चाहता हूँ ईश वचन पर मनन-चिन्तन करने से हमारे मन दिल ईश्वर की कृपा पाने के लिये खुल जाते हैं और हम ईश्वर को अच्छी तरह से समझने लगते हैं।

जब मैं नोतरेदेम के आलीशान महागिरजाघर में धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, धर्मसमाजियों और सेमिनेरियों के साथ के साथ मिलकर बातें की तो मैंने उन्हें पवित्र आत्मा औऱ पवित्र क्रूस के वरदानों के बारे में बताया।

मैंने अपना कुछ समय इस्तीत्युत ऑफ फ्रांस में बिताया और एस्पलान्दे देस इन्भालिदेस में यूखरिस्तीय समारोह सम्पन्न किया जहाँ हज़ारों लोगों ने हिस्सा लिया।

इसके बाद मैंने लूर्द की यात्रा की जहाँ लाखों श्रद्धालु भक्त जो लूर्द में संत बेर्नादेत को मरियम के दर्शन की 150वीं वर्षगाँठ समारोह मनाने के लिये एकत्र थे। वहाँ पर मसाबिएले के ग्रोटो के पास यूखरिस्तीय समारोह सम्पन्न हुआ जिसमें बहुत से तीर्थयात्रियों ने हिस्सा लिया।

संयोग से उसी दिन 14 सितंबर को क्रूस विजय का त्योहार भी पड़ा था जो हमें सदा ही मृत्यु और उस पर विजय के रहस्य के बारे में बताता है।

क्रूस हमें यह बताता है कि ईश्वर ने हमें इतन प्यार किया कि उसने हमारे लिये अपने एकलौते पुत्र को दे दिया। यह हमें यह भी बताता है कि अगर हम प्यार करते है और दुःख नहीं उठाते हैं तो हमारा प्यार पूर्ण नहीं है।

दुनिया में ऐसा कोई भी उपहार नहीं है जो कि बिना दर्द के प्राप्त हो जाता हो। इसलिये लूर्द हमारे लिये एक ऐसी पाठशाला है जो हमें आशा और विश्वास का पाठ सिखाता है।

यह एक ऐसा स्कूल है जो हमें प्रेम और सेवा के का निमंत्रण देता है। आज मैं उन सब लोगों के प्रति धन्यवादी हूँ जिन्होंने इस यात्रा को सफल बनाने के लिये अपना बहुमूल्य योगदान दिया।


इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया। उन्होंने इंगलैंड स्कोटलैंड, आयरलैंड डेनमार्क स्वीडेन डेनमार्क, बर्मा जापान औऱ अमेरिका से से आये तीर्थयात्रियों और उपस्थित लोगों पर प्रभु की कृपा और शांति की कामना करते हुए सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।









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