2008-09-14 16:52:23

फ्राँस में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें की प्रेरितिक यात्रा पर एक रिपोर्ट 14 सितम्बर


रिपोर्ट- जुलयट क्रिस्टफर, कमल बड़ा और फादर जस्टिन तिर्की


श्रोताओ, विश्वव्यापी काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें फ्राँस में अपनी चार दिवसीय प्रेरितिक यात्रा के अन्तिम चरण में पहुँच चुके हैं। शनिवार को पेरिस में लगभग ढाई लाख लोगों के लिये ख्रीस्तयाग अर्पित करने के उपरान्त सन्त पापा ने पेरिस से तारबेस के लिये प्रस्थान किया। लोकभक्ति एवं विश्वास से चिह्नित फ्राँस का लूर्द नगर 1858 ई. से मरियम दर्शनों के कारण विश्व विख्यात काथलिक तीर्थ स्थल बन गया है। मरियम दर्शन की 150 वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में आयोजित समारोहों का नेतृत्व करने के लिये ही सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें की फ्राँस यात्रा आयोजित की गई थी।

फ्राँस के दक्षिण पश्चिमी भाग में स्थित लूर्द में विश्व के अति लोकप्रिय तीर्थ पर शनिवार को सन्त पापा का स्वागत करने हज़ारों तीर्थयात्री उपस्थित हुए। उस पल्ली गिरजाघर से जहाँ बेरनाडेट को बपतिस्मा संस्कार प्रदान किया गया था उस अंधकारपूर्ण और ठण्डे छोटे से मकान तक जहाँ वह अपने माता पिता के साथ रहती थी और फिर उस चट्टानी गुफा से जहाँ मरियम ने बेरनाडेट को दर्शन दिये थे उस आराधनालय तक जहाँ बेरनाडेट ने पवित्र परमप्रसाद ग्रहण किया था। लूर्द नगर में ये वे चार पुण्य चरण हैं जो सन्त बेरनाडेट के जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों को समेटते हैं तथा सम्पूर्ण विश्व से यहाँ एकत्र तीर्थयात्रियों के लिये प्रार्थना का लक्ष्य बनते हैं। मरियम दर्शन की 150 वीं वर्षगाँठ के लिये लूर्द पहुँचे सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने भी शनिवार को "आशा के दुर्ग" लूर्द में इन्हीं प्रमुख स्थलों की तीर्थयात्रा की तथा वहाँ उपस्थित हज़ारों तीर्थयात्रियों को उनके विश्वास में सुदृढ़ किया।

फ्राँस का लूर्द नगर काथलिक विश्वास एवं लोकभक्ति का गढ़ क्यों बना इसे जानने के लिये 150 वर्ष पूर्व चक्की चलानेवाले एक निर्धन मज़दूर की बेटी बेरनाडेट को मिले मरियम के दिव्य दर्शनों के बारे में जानकारी प्राप्त करें ........
लूर्द फ्रांस के दक्षिण-पश्चिम में पइरेनीस पर्वत-श्रृंखला के निचले भाग में बसा एक छोटा-सा शहर है। फ्रांस की राजधानी से पारिस से 497 किलीमीटर की दूरी पर बसे इस छोटे शहर की आबादी करीब 17 हज़ार है।
लूर्द, आज ईसाई जगत का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है और इसमें प्रत्येक वर्ष दुनिया के करीब 70 देशों के 80 लाख तीर्थयात्री इसके दर्शन करते है। इस तीर्थस्थल के प्रसिद्ध होने के पीछे एक जिस 14 बर्षीय गरीब लड़की का हाथ रहा है उसका नाम था बेर्नादेत, जिसे माता मरियम ने 11 फरवरी से 16 जुलाई सन् 1858 ई के पाँच महीने के अन्तराल में 18 बार दर्शन दिये।
बेर्नादेत के अनुसार जब वह जलावन की लकड़ी चुन रही थी तब कुँवारी माँ मरिया ने उसे दर्शन दिये और कहा कि बह पल्ली पुरोहित से कहे कि वह वहाँ पर एक गिरजाघर वनवाये।
चार साल बाद सन् 1862 पल्ली पुरोहित ने एक गिरजाघर का निर्माण किया गया और बाद में सन् 1873 ईस्वी में बसिलिका ऑफ दि इम्माकुलेट कोन्सेप्शन के नाम से एक महामंदिर का निर्माण किया गया जहाँ आज भी लाखों श्रद्धालु तीर्थयात्रा के लिये जाते हैं।
संत पापा लेओ 13वें ने काथलिक कलीसिया को लूर्द की माता मरिया के दर्शन की यादगारी में विशेष मिस्सा पूजा समारोह करने के लिये प्रोत्साहित किया और सन् 1907 ईस्वी में संत पापा पीयुस दसवें ने इसे कलीसिया का एक मह्त्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाने की घोषणा की। तब 11 फरवरी को लूर्द की माता मरिया का पर्व दिवस मनाया जाता है।
बेर्नादेत ने सन् 1866 में ' सिस्टर्स ऑफ चरिटि ऑफ नेभेर्स ' नामक धर्मसमाज में प्रवेश किया। और लम्बी बीमारी के बाद उसकी मृत्यु सन् 1879 में हो गयी और पीयुस 11वें ने 8 दिसंबर सन् 1933 ईस्वी में उन्हें संत घोषित किया गया। आज भी उसके मृत शरीर को सुरक्षित रखा गया जो लूर्द में तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।
इस तीर्थस्थल में आने वाले हज़ारों लोगों से चंगाई प्राप्त करने के समाचार मिलते रहें है पर काथलिक कलीसिया ने 67 चंगाइयों को सत्यपित किया है। प्रति वर्ष इस तीर्थ स्थल के रख-रखाव मे करीब 1 करोड़ 80 लाख यूरो खर्च होते हैं जो तीर्थयात्रियों के दान से प्राप्त हो जाते हैं।

मौसम के ठण्डे और आर्द्र रहने के बावजूद शनिवार को लूर्द नगर तीर्थयात्रियों से खचाखच भरा रहा जिन्होंने, मरियम दर्शन वाली विख्यात चट्टानी गुफा तक, नगर की सड़कों से निकलती पारदर्शी पोपोमोबिल में विराजमान सन्त पापा के स्वागत के लिये कोई कसर नहीं छोड़ी। सड़कों के किनारे पंक्तिबद्ध वे ध्वजों को फहराते, गीत गाते, जयनारे लगाते तथा करतल ध्वनि से अपने हर्ष को अभिव्यक्ति प्रदान करते रहे। ...............

150 वर्षों से चली आ रही तीर्थयात्रियों की परम्परा को बरकरार रखते हुए शनिवार को सन्त पापा ने तीर्थयात्रा के चारों पड़ाव पूरे किये। सर्वप्रथम वे येसु के पवित्रतम हृदय को समर्पित उस गिरजाघर गये जहाँ बेरनाडेट ने बपतिस्मा संस्कार प्राप्त किया था। यहाँ सन्त पापा ने घुटनों के बल गिरकर मौन चिन्तन किया तथा 150 वीं जयन्ती के लिये तैयार पहली प्रार्थना का पाठ किया। यद्यपि मूल गिरजाघर आग के हवाले कर दिया था तथापि सफेद पत्थरों की मेहराबों एवं रंगीन काँच की खिड़कियों से सुसज्जित नये गिरजाघर की दीवारें बेरनाडेट के जीवन की अनेक घटनाओं को चित्रित करती हैं। इसी गिरजाघर में भूरे रंग के गोलाकार पत्थर से बना वह जलकुण्ड भी है जिसके जल से बपतिस्मा दिया गया था। गिरजाघर की दीवार पर बपतिस्मा संस्कार का प्रमाण पत्र भी मौजूद है। गिरजाघर में प्रार्थना करने के बाद सन्त पापा कुछ दूर स्थित उस छोटे से मकान में पहुँचे जहाँ बेरनाडेट अपने निर्धन माता पिता के साथ रहा करती थी। यह नमी से भरा तथा बड़ा ही अस्वस्थ मकान था जिसे पहले सैनिक जेल के रूप में प्रयुक्त किया गया था किन्तु क़ैदियों के लिये भी इसे अनुपयुक्त समझा गया। यहीं पर बेरनाडेट अपने माता पिता के साथ रहा करती थी जहाँ अब भी उनकी तथा परिवार की सफेद और काली तस्वीरें दीवारों पर देखी जा सकती हैं। अन्ततः सन्त पापा लूर्द नगर के केन्द्रबिन्दु अर्थात् मासाबिले की गुफा पहुँचे जहाँ सन् 1858 ई. में मरियम ने बेरनाडेट को 18 बार दर्शन दिये थे तथा इस रहस्य का उदघाटन किया था कि वे निष्कलंक गर्भागमन हैं। यहाँ सन्त पापा ने विश्वासपूर्वक उस झरने से पानी पिया जिसमें, तीर्थयात्रियों के दावे के अनुसार, रोगमु्क्त करने की चमत्कारी शक्ति विद्यमान है। विगत 150 वर्षों में काथलिक कलीसिया ने उन 67 उपचारों को मान्यता प्रदान कर चमत्कार घोषित किया है जिनकी चिकित्सीय रूप से व्याख्या करना असम्भव है।

मासाबिले की गुफा से शनिवार को सन्त पापा के नेतृत्व में हज़ारों तीर्थयात्रियों ने सन्त योसफ को समर्पित आश्रम तक मशालयुक्त जुलूस में भाग लिया। यहीं पर स्थित लूर्द के महागिरजाघर के प्राँगण में रोज़री विनती के पाठ के बाद सन्त पापा ने प्रवचन करते हुए हिंसा, आतेकवाद, युद्ध तथा अकाल से पीड़ित लोगों, प्राकृतिक आपदाओं एवं हर प्रकार के अन्याय को सहनेवालों को न भुलाने का विश्व से आग्रह किया।

सन्त पापा के प्रवचन के कुछ अंश .......


माता मरियम प्रेम की विजय का, भलाई और ईश्वर का प्रतीक हैं। वे संसार को वह आशा प्रदान करती हैं जिसकी इसे आवश्यकता है।


लूर्द की तीर्थयात्रा करते हुए हम बेरनाडेट के पदचिह्नों पर चलते हुए स्वर्ग और पृथ्वी के मध्य विद्यमान समीपता में प्रवेश करना चाहते हैं। यह गौर करने की बात है कि दिव्य दर्शनों के समय बेरनाडेट माता मरियम के सामने रोज़री माला प्रार्थना करती है। यह तथ्य रोज़री माला प्रार्थना को ईश्वर केन्द्रित होने की पुष्टि करता है। जब हम रोज़री माला प्रार्थना करते हैं तो मरियम हमें अपना दिल, अपनी दृष्टि प्रदान करती है ताकि हम उनके पुत्र येसु ख्रीस्त के जीवन पर मनन चिंतन करें।


मरियम हमें प्रार्थना करना, हमारी प्रार्थना को ईश्वर के प्रति प्रेम का तथा भ्रातृत्वमय उदारता का कृत्य बनाना सिखाती हैं। मरियम के साथ प्रार्थना करते हुए हमारा दिल उनलोगों को आमंत्रित करता है जो दुःख भोग रहे हैं, पीड़ित हैं।

लूर्द प्रकाश की जगह है। यह सामुदायिकता, आशा और मन परिवर्तन का स्थान है। बेरनाडेट और माता मरियम के साथ मौन साक्षात्कार व्यक्ति के जीवन को बदल सकता है क्योंकि वे यहाँ हैं मासाबिले में ताकि ख्रीस्त जो हमारा जीवन है की ओर ले चलें जो हमारी ताकत, हमारी ज्योति हैं।

कुँवारी मरियम और संत बेरनाडेट आपको ज्योति की संतान रूप में जीवन जीने के लिए सहायता करें ताकि आप प्रतिदिन अपने दैनिक जीवन में साक्ष्य दें कि ख्रीस्त हमारी ज्योति, हमारी आशा, हमारा जीवन हैं।

रविवार को सन्त पापा ने लूर्द के मरियम तीर्थ पर ख्रीस्तयाग अर्पित किया। तीर्थ के इर्द गिर्द विस्तृत लूर्द प्रायरी नाम से विख्यात मैदान में उपस्थित लगभग डेढ़ लाख श्रद्धालुओं ने ख्रीस्तयाग में भाग लेकर सन्त पापा का प्रवचन सुना। 14 सितम्बर को काथलिक कलीसिया पवित्र क्रूस का पर्व मनाती है, इसी पर सन्त पापा ने अपने चिन्तन को केन्द्रित रखा।

सन्त पापा के प्रवचन के कुछ अंश .....

क्रूस धारण करना कितना महान है, जो इसे धारण करता है उसके पास खजा़ना है। आज के दिन जब कलीसिया की पूजन धर्मविधि में पवित्र क्रूस की विजय का समारोह मनाया जा रहा है। सुसमाचार हमें इस महान रहस्य के बारे में स्मरण कराता है ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि अपने एकलौते पुत्र को दे दिया ताकि संसार को मुक्ति प्राप्त हो। हम येसु के क्रूस द्वारा बचाये गये हैं। क्रूसित प्रभु की और अपनी नज़र उठाकर हम उनकी आराधना करते हैं जिन्होंने संसार के पाप को अपने ऊपर ले लिया ताकि हमें अनन्त जीवन दे सकें।

लूर्द तीर्थालय का प्राथमिक उद्देश्य है कि यह प्रार्थना में ईश्वर के साथ साक्षात्कार की जगह हो और अपने भाई बहनों की सेवा का स्थल, विशेष ऱूप से उनकी जो बीमार, गरीब और पीड़ित हैं। लूर्द में मरियम दर्शन का जुबिली समारोह हमसे आग्रह करता है कि अपने जीवन में विजयी क्रूस का स्वागत कर विश्वास और मन परिवर्तन की यात्रा में शामिल हों।

आइये, हम क्रूस की आराधना करें। क्रूस का चिह्न विश्वास के रहस्यों में प्रवेश करने की शुरूआत है जिसे बेरनाडेट ने माता मरियम से प्राप्त किया। क्रूस का चिह्न हमारे विश्वास का संश्लेषण है कि ईश्वर ने हमें कितना प्यार किया। यह बताता है कि इस संसार में ऐसा प्रेम है जो मृत्यु तथा हमारी कमजोरियों और पाप से कहीं अधिक मजबूत है। प्रेम की शक्ति बुराई से कहीं अधिक शक्तिशाली है। मानव के लिए ईश्वरीय प्रेम की सार्वभौमिकता का यही रहस्य है जिसे यहाँ लूर्द में प्रकट करने के लिए मरिया आईं। सद्इच्छा वाले सबलोग, जो दिल या शरीर में कष्ट सह रहे हैं उन्हें येसु के क्रूस की और अपनी आँख उठाने के लिए आमंत्रित करती है ताकि वहाँ जीवन के स्रोत, मुक्ति के स्रोत की पुर्नखोज कर सकें। येसु ख्रीस्त में प्रदर्शित ईश्वर के प्रिय मुखमंडल को सब लोगों को दिखाने का मिशन कलीसिया को मिला है।


ख्रीस्तयाग के बाद अपनी रविवारीय परम्परा को कायम रखते हुए सन्त पापा ने उपस्थित तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। इस प्रार्थना से पूर्व अपने प्रवचन में सन्त पापा ने कहा कि पाप रहित होने का विशेष अधिकार प्राप्त करने से मरियम हम मनुष्यों से दूर नहीं हो जाती बल्कि हर क्षण हमारे लिये ईश्वर से मध्यस्थता करती रहती हैं। उन्होंने कहा कि मरियम को मिली कृपा सम्पूर्ण मानव जाति को मिली कृपा है इसलिये विश्वासपूर्वक हम मरियम को पुकारें, वे ही हमें ख्रीस्त की आशा, सान्तवना एवं शांति का आनन्द दिला सकती हैं। इन शब्दों के बाद सन्त पापा ने सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया ................








All the contents on this site are copyrighted ©.