केरल सरकार ईसाई और मुस्लिमों के विरोध के सामने झुका
थिरुवान्थापुरम: केरल सरकार ने निर्णय लिया है कि वह स्कूलों के लिये प्रस्तावित विवादास्पद
किताब जिसमें नास्तिकतावाद और उपभोक्तावाद को बढ़ावा दिया गया था को बदल देगा। केरल की
साम्यवादी सरकार ने यह निर्णय उस समय लिया जब राज्य की ईसाई और मुस्लिम जनता ने इस स्कूली
किताब का जोरदार विरोध किया।
सरकारी सूत्रों के अनुसार सातवी कक्षा सामाजिक विज्ञान
किताब के उस अध्याय को हटा दिया जायेगा जिसमें आरोप है कि इसमें नास्तिक विचार को बढ़ावा
दिया गया है।
दक्षिण भारत के स्कूली पुस्तकों के प्रकाशन संबंधी कार्यो के निदेशक
मोहम्मद हनीश ने यूकान को बताया कि सरकार इस पुस्तिका की पाँच लाख प्रतियाँ लोगों के
स्कूलों के लिये उपलब्ध कराया है और शिक्षकों को निर्देश दिया गया है कि वे उस विवादाग्रस्त
अध्याय को न पढ़ायें। उस अध्याय में इस बात की चर्चा की गयी है कि जवाहलाल नेहरु भारत
के प्रथम प्रधानमंत्री थे और वे किसी भी धर्म के अनुयायी नहीं थे। इतना ही नहीं उन्होंने
कहा था कि उनकी मृत्यु के बाद किसी भी धार्मिक रीति रिवाज़ सम्पन्न न किया जाये। उन्होंने
ये भी कहा था कि धर्म और विश्वास से समाजिक वैमनस्यता बढ़ती है। इस अध्याय में कई धर्मग्रंथों
से उद्धृत कर यह साबित करने का प्रयास किया गया है कि धर्म हिंसा को बढ़ावा देता है। ज्ञात
हो कि इस किताब के छापने के बाद केरल धर्माध्यक्षीय समिति ने निर्णय किया था कि वे इसका
विरोध करेंगे औऱ इस किताब के बदले में एक अन्य किताब को स्कूलों में पढ़ाएँगे। केरल
धर्माध्यक्षीय समिति के सह सचिव फादर स्तीफन अलनथरा ने कहा है कि चुँकि सरकार ने किताब
पर अभी तक पूर्ण रोक नहीं लगायी है इसलिये वे इसका विरोध जारी रखेंगे। इसके साथ ही चर्च
ने दो धर्मशिक्षा की किताब छापी है इसे ही राज्य के 29 धर्मप्रांतों में पढ़ाया करेंगे। उधर
चंगनाचेरी के महाधर्माध्यक्ष परुमथोट्टम ने ईसाइयों से अपील की है कि लोग नास्तिकतावाद
और उपभोक्तावाद की बुराइय़ों से बचें। और सरकार से अपील की है कि इस विवादास्पद किताब
पर पूर्ण से रोक लगायें।