2008-08-18 09:58:49

सुप्रीम न्यायिक अधिकारी ने मध्य प्रदेश सरकार से अल्पसंख्यक का दर्जा के मामले में स्पष्टीकरण माँगा


मध्य प्रदेश के सुप्रीम न्यायिक अधिकारी ने सरकार से इस बात का स्पष्टीकरण माँगा है कि उसने ख्रीस्तीय शैक्षणिक संस्थाओं को अल्पसंख्यक का दर्जा का प्रमाणपत्र क्यों निर्गत नही किया है। ज्ञात हो चर्च के प्रवक्ता फादर आऩन्द मुतुंगल ने इस संबंध में एक लिखित शिकायत की थी कि सरकार चर्च की अल्पसंख्य का दर्जा संबंधी आवेदनों पर ध्यान नहीं दे रही है।
यह भी ज्ञात हो कि सन् 2006 ईस्वी के बाद सब अल्पसंख्यक संस्थाओं के पास अल्पसंख्यक होने का प्रमाणपत्र होना आवश्यक है और इसे उस संस्था की राज्य सरकार को निर्गत करना है।
फादर मुत्तुंगल ने इस संबंध में यूकान समाचार एजेंसी को बताया कि उन्हें सरकार के निष्क्रियता से परेशान होकर ऐसा कदम उठाना पड़ा है। स्मरण रहे कि पूर मध्यप्रदेश में काथलिकों और प्रोटेस्टंटों के द्वारा करीब एक हज़ार संस्थायें चलायी जातीं हैं।
करीब 200 संस्थाओं ने अल्पसंख्यक का दर्जा पाने हेतु सरकार से निवेदन किया था। पर सरकार ने अभी तक एक भी संस्था को यह प्रमाणपत्र नहीं दिया है।
फादर ने यह भी बताया कि यह महत्वपूर्ण प्रमाणपत्र इसलिये भी ज़रूरी है क्योंकि इसके बगैर चर्च की संस्थाओं में ख्रीस्तीयों को आरक्षण नहीं दिया जा सकता है और इन संस्थाओं को अपने तरीके से चलाने और इसके कार्यकर्ताओं के चयन की स्वतंत्रता नहीं मिल पायेगी।
भारतीय संविधान के अनुसार धार्मिक और भाषा संबंधी अल्पसंख्यकों को अपनी संस्थायें स्थापित करने और इसका संचालन करने का अधिकार है।
सन्1950 से 2005 तक चर्च की सभी संस्थाओं को अल्पसंख्यक माना जाता रहा है पर सन् 2006 में भारत सरकार ने इस संबंध में कुछ संशोधन किये और उसके अनुसार सरकार ने इसमें बदलाव कर दिये हैं ताकि ग़रीबो को इसका लाभ मिल सके।
स्थानीय समाचार पत्रों के अनुसार न्यायाधिकरण ने सरकार को एक महीने का समय दिया है जिसमें वह इस बात का सफाया देगी कि अल्पसंख्यक का दर्जा संबंधी प्रमाणपत्र देने में विलम्ब क्यो हुआ है।

 







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