2008-08-18 13:10:41

देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देश


श्रोताओ, रविवार 17 अगस्त को, रोम शहर के परिसर में कास्तेल गोन्दोल्फो स्थित प्रेरितिक प्रासाद के झरोखे से, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने, प्राँगण में एकत्र तीर्थयात्रियों को दर्शन दिये तथा उनके साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। इस प्रार्थना से पूर्व अपने सम्बोधन में सन्त पापा ने, पूजन विधि पंचांग के 20 वें रविवार के लिये निर्धारित धर्मग्रन्थ पाठों पर चिन्तन करते हुए कहाः

“अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,
20 वें रविवार की धर्मविधि नबी इसायस के शब्दों को हमारे चिन्तन हेतु प्रस्तुत करती है। इसायस के ग्रन्थ के 56 वें अध्याय के छठवें एवं सातवें पदों में लिखा हैः "जो विदेशी प्रभु के अनुयायी बन गये हैं, जिससे वे उसकी सेवा करें, वे उसका नाम लेते रहें और उसके भक्त बन जायें और वे सब, जो विश्राम दिवस मनाते हैं और उसे अपवित्र नहीं करते – मैं उन लोगों को अपने पवित्र पर्वत तक ले जाऊँगा। मैं उन्हें अपने पवित्र गृह में आनन्द प्रदान करूँगा। मैं अपनी वेदी पर उनके होम और बलिदान स्वीकार करूँगा; क्योंकि मेरा घर सब राष्ट्रों का प्रार्थनागृह कहलायेगा।" मुक्ति की सार्वभौमिकता का सन्दर्भ सन्त पौल के पत्र में भी तथा इस रविवार के लिये निर्धारित सुसमाचार पाठ में भी मिलता है जो कनानी स्त्री की दृष्टान्त को हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है। इस दृष्टान्त में, यहूदियों की तुलना में, येसु कनानी स्त्री को, उसके विश्वास के कारण, श्रेष्ठ बताते हैं। इस प्रकार, ईश वचन हमें, विभिन्न जातियों एवं संस्कृतियों के लोगों से बनी, कलीसिया के मिशन की सार्वभौमिकता पर चिन्तन का अवसर प्रदान करते हैं। यही कलीसियाई समुदाय की महान ज़िम्मेदारी का मूल है, जो सबको आतिथेय प्रदान करनेवाला घर तथा सम्पूर्ण मानव परिवार के लिये सहभागिता का चिन्ह एवं अस्त्र के लिये बुलाई गई है।"

सन्त पापा ने आगे कहाः............"हमारे इस युग में यह कितना महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक ख्रीस्तीय समुदाय अधिकाधिक इस चेतना की गहराई में उतरे ताकि नागर समाजों की मदद की जा सके तथा वे जातिवाद, असहिष्णुता एवं अन्यों के बहिष्कार की नीति अपनाने के प्रलोभन में न पड़े अपितु प्रत्येक मानव प्राणी की प्रतिष्ठा का ख्याल करते हुए सम्मानजनक निर्णय लें। वस्तुतः, मानवजाति की महान उपलब्धियों में से एक हैं जातिवाद एवं नस्लगत भेदभाव पर विजय। दुर्भाग्यवश, इस दिशा में अनेक राष्ट्रों में, चिन्ताजनक स्थितियाँ देखने को मिल रही हैं। प्रायः ये सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं से संलग्न रहती हैं तथापि अपमान एवं नस्लगत भेदभाव का कोई औचित्य नहीं हो सकता। हम प्रार्थना करें कि, सर्वत्र, प्रत्येक व्यक्ति के प्रति सम्मान की वृद्धि हो तथा इस ज़िम्मेदारी के प्रति चेतना जाग्रत हो कि सभी के आपसी स्वागत से ही यथार्थ न्याय एवं सच्ची शांति से चिह्नित विश्व का निर्माण सम्भव है।"

तदोपरान्त सन्त पापा ने विगत दिनों हुई सड़क दुर्घटनाओं के सन्दर्भ में कहा ........."इन दिनों, विशेष रूप से इटली में हुई सड़क दुर्घटनाओं के मद्देनज़र आज, प्रार्थना हेतु मैं एक और मनोरथ को जोड़ना चाहता हूँ। हमें इस दुखद वास्तविकता के आदी नहीं बनना चाहिये। मानव जीवन बहुत मूल्यवान है तथा मनुष्य के लिये उन कारणों से मरना या विकलांग हो जाना कतई उचित नहीं जिन्हें टाला जा सकता है। निश्चित्त रूप से, ज़िम्मेदारी के भाव को जगाने की आवश्यकता है विशेष रूप से, वाहन चालकों को अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी क्योंकि सर्वाधिक दुर्घटनाएँ तेज़ गति और अविवेकी व्यवहार का परिणाम होती हैं। सार्वजिनक मार्ग पर गाड़ी चलाने के लिये नैतिक एवं नागर दोनों भावनाओं का होना अनिवार्य है। नागर भाव को पोषित करने के लिये अधिकारियों द्वारा चौकसी एवं निवारक उपाय अपरिहार्य हैं। कलीसिया होने के नाते, सचमुच में, हम, नैतिक स्तर पर, स्वतः को इसमें प्रत्यक्ष रूप से संलग्न पाते हैं। सर्वप्रथम ख्रीस्तीय वाहन चालकों को, वैयक्तिक ढंग से, अपने अन्तःकरण की जाँच करनी चाहिये; इसके अतिरिक्त, समुदायों को अपने लोगों को शिक्षा देना चाहिये कि गाड़ी चलाना एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें जीवन की रक्षा करना तथा सजग रूप से पड़ोसी प्रेम का निर्वाह करना अनिवार्य है।"

अन्त में सन्त पापा ने कहाः............ "अभी अभी मैंने जिन सामाजिक समस्याओं का ज़िक्र किया उन्हें हम मरियम की ममतामयी मध्यस्थता के सिपुर्द करते हुए देवदूत प्रार्थना का पाठ करें।"
....................

इतना कहकर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने उपस्थित तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सब पर प्रभु की शांति का आह्वान कर सबको अपना प्रेरितिक आर्शीवाद प्रदान किया --------------------------------------










All the contents on this site are copyrighted ©.