विकास का केन्द्र बिन्दु मनुष्य होना चाहियेः पोप विकास का केन्द्र बिन्दु मनुष्य
होना चाहिये और अन्तरराष्ट्रीय व्यापार के सिद्धांत सदभाव और एकता पर आधारित होना चाहिये।
उक्त बातें वाटिकन सेक्रेटरी ऑफ स्टेट ने उस समय कहा जब वे अक्करा में चल रहे व्यापार
एवं विकास विषय पर चल रहे संयुक्त राष्ट्र संघ की 12वी सभा में प्रतिनिधियों को संबोधित
कर रहे थे।इस अवसर पर बोलते हूए सेक्रेटरी ऑफ स्टेट ने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं
की दो तरह से आलोचनाएँ होती हैं। एक तो इसमें जिन लोगों को निर्णय करने की जिम्मेदारी
होती है उनका सही और समान प्रतिनिधित्व नहीं होता है और दूसरी कि जो लोग इस समिति में
होते हैं उन्हें समस्याओं के गंभीरता के बारे में गहराई से जानकारी नहीं होती है। उन्होंन
इस बात पर भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया कि ऐसे अन्तरराष्ट्रीय समितियाँ कई बार गरीब
लोगों के लिये अपनी योजनाएँ नहीं बनातीं हैं पर गरीब राष्ट्रों के अक्षम सरकारों के लिये
अपनी योजनायें बनाते हैं जिसके कारण गरीबों को उत्थान नहीं हो पाता है। वाटिकन सेक्रेटरी
ऑफ ने स्टेट ने दो बातों पर बल देते हुए कहा कि अंतरराषट्रीय संस्थाओं को चाहिये कि वे
गरीबों और जरुरतमंदो को मन में रखें और उनके लिये योजनायें बनायें साथ ही यह भी ध्यान
दें कि विकास का लक्ष्य हो गरीबी निवारण और सार्वजनिक हित।उन्होंने इस बात को जोर देते
हुए कहा कि विकास का लक्ष्य देश का आर्थिक विकास नहीं होना चाहिये पर होना चाहिये लोगों
का चहुँमुखी विकास जिसमें मानव अपना ऐसा विकास करे कि उसका संबंध अपने परिवार समाज राजनीतिक
और सांस्कृतिक समुदायों के साथ सौहार्दपूर्ण हो सके। उन्होंने कहा कि विकास की दिशा में
सबसे पहला कदम होना चाहिये वह यह है कि सभी देश मानव की मर्यादा को प्रथम स्थान दे और
विकास को हर मानव की प्रगति के रूप में देखे न कि कुछ लोगों के विकास के रूप में।