दादा - दादी और परिवार के बुजूर्ग अपने परिवार में ही रहें
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने दादा-दादियों और परिवार के बुजूर्गों से अपील की है कि
वे अपने परिवार में ही रहें और अपनी सक्रिय उपस्थिति और प्रज्ञा से पारिवारिक समस्याओं
के समाधान में अपना बहुमूल्य योगदान दें। संत पापा 3 और 4 अप्रैल को रोम में ‘दादा-दादियों
की भूमिका’ बिषय पर आयोजित सम्मेलन में आये प्रतिनिधियों को संबोधित कर रहे थे। इस सम्मेलन
का आयोजन परिवारों की देखरेख के लिये बनी परमधर्मपीठीय आयोग ने किया था। इस सम्मेलन
में इस बात पर विचार किया गया कि किस प्रकार से हमारे बुजूर्ग और माता-पिता या हमारे
दादा-दादी पारिवारिक एकता को मजबूत करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं और किस प्रकार से
उनकी उपस्थिति से माता –पिता और बाल-बच्चों का संबंध सुदृढ़ हो सकता है।
सम्मेलन
में भाग ले रहे प्रतिनिधियों की ओर से बोलते हुए फिलीपींस के सेबु के कार्डिनल रिकार्दों
विदाल ने कहा कि आम तौर पर परिवार में बुजूर्गों के प्रति कृतज्ञकता की भावना है क्योंकि
उन्हीं के द्वारा घर के सदस्य धार्मिक और नैतिक मूल्यों को सीखते हैं।
इस अवसर
पर संत पापा ने कहा कि अगर हम सोचते हैं कि भविष्य की योजना अपने पुराने अनुभवों के
बगैर संभव है तब हम गलती कर रहे हैं। जौभि कि आज की परिस्थिति में बुजूर्गों के अनुभवों
और प्रज्ञा को नज़रअंदाज़ करने खतरा दिखाई देता है फिर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिये
कि पुराने अनुभवों के उपयोग के बिना हमारी योजनाएँ सफल नहीं हो पायेंगी।
संत
पापा ने इस अवसर पर पल्ली पुरोहितों और धर्माध्यक्षों से भी अपील की कि वे इस संबंध
में उचित कदम उठायें ताकि बुजूर्गों की देखभाल भली-भाँति हो सके।