2008-04-02 13:42:44

संत पापा जोन पौल द्वितीय की तृतीय पुण्य तिथि के पुनीत अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में सम्पन्न यूखरिस्तीय समारोह में दिया गया
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का प्रवचन
2 अप्रैल, 2008


संत पापा जोन पौल द्वितीय की तृतीय पुण्य तिथि के पुनीत अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में सम्पन्न यूखरिस्तीय समारोह में एकत्रित हजारों तीर्थयात्रियों के सम्बोधित करते हुए संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने अपने प्रवचन में कहा-

प्यारे भाईयो एवं बहनों, कलीसिया के इतिहास में दो अप्रैल का दिन सदा ही याद किया जायेगा जब तीन साल पहले संत पापा जोन पौल द्वितीय को ईश्वर ने अपने यहाँ बुला लिया था। आइये हम उस भावुक पल को फिर से याद करें जब संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में हजारों की संख्या में एकत्रित लोगों को ईश्वर के सेवक संत पापा जोन पौल द्वितीय की मृत्यु की खबर सुनायी गया थी। आईये हम उन पलों को भी याद करें जब संत पेत्रुस महागिरजाघर का प्रांगण, विश्व के लोगों की आँखों का केन्द्र विन्दु बन गया था। और लाखों लोग अपने भले चरवाहे के पार्थिव शरीर के अन्तिम दर्शन के लिये घंटों तक कतारों में खड़े थे। यह संत पापा जोन पौल के प्रति एक ऐसे अद्वितीय प्रेम का चिह्न था जो अतुलनीय था। ठीक तीन साल पहले की ही तरह आज भी हम पास्का पर्व काल में हैं और पुनर्जीवित येसु के रह्स्यमय विजय का घोषणा कर रहे हैं।

भाईयो एवं बहनों, अगर हम आज हमारे पूर्व संत पापा जोन पौल के जीवन पर गौर करें तो हम पायेंगे कि उनका जीवन, जीवित एवं महिमान्वित येसु का जीवन्त चिह्न था। उनका येसु पर गहरा विश्वास था और उनकी येसु के साथ जो संबंध था वो अवर्णनीय है। वे मानवीय गुणों के साथ-साथ आध्यात्मिक गुणों के भी धनी थे। वे जब प्रार्थना करते थे तो लगता था कि बस ईश्वर में लीन हो गये हैं। यूखरिस्तीय बलिदान उनके जीवन का केन्द्र था और इसी से शक्ति पाकर वे कलीसिया का मार्गदर्शन करते थे और लोगों को ईश्वर की ओर अभिमुख होने की प्रेरणायें देते थे।
संत पापा जोन पौल द्वितीय ने इस बात का हरदम ख्याल रखा कि उन्हें येसु मसीह के मिशन को सदा आगे बढ़ाना है।

उनका परमधर्माध्यक्षीय काल को विश्वासियों ने कई दृष्टिकोणों से पुनर्जीवित येसु के रहस्य के साक्ष्य के रूप में देखा ।संत पापा जो कुछ भी बोलते थे उसकी प्रेरणा उससे यह स्पष्ट आभास होता था कि उन्हें येसु के दुःख और मृत्यु का गहरा आन्तरिक अनुभव था। उनके जीवन और ईश्वर के प्रति उसकी आस्था को देखने से लगता है कि उनके जीवन में संत पौल के उन कथनों का व्यापक प्रभाव था जिसे संत पौल ने तिमथी को लिखा था। ‘‘अगर हम येसु के साथ मरते हैं तो हम उन्हीं के साथ जीवन भी प्राप्त करेंगे । यदि हम उनके प्रेम में दृढ़ बने रहे हम उन्हीं के साथ राज्य करेंगे’’ । संत पापा जोन पौल के मन-दिल पर इन शब्दों का बचपन से ही बहूत असर पड़ा था और इसीलिये उन्होंने अपने जीवन को एक पुरोहित के रूप में समर्पित किया और ईश्वर की सेवा के लिये अपने जीवन का सर्वोत्तम उपहार चढ़ाया।

भाईयो एवं बहनों आज हम सुसमाचार के उन बातों से भी प्रेरणा ग्रहण करें जिसे येसु ने धर्मी महिलाओं को पुनरुत्थान के बाद कहा था। जीवित येसु ने कहा था ‘‘डरो नहीं’’। ऐसा लगता है कि विजयी येसु की ये बातें संत पापा जोन पौल के जीवन का आदर्श वाक्य ही बन गया था। उनके प्रवचनों में हमने कई बार पाया कि वे इस वाक्य को दुहराते रहे विशेष करके जब पूरी दनिया तीसरी सहस्त्राब्दि में प्रवेश करने वाली थी तब उन्होंने कई बार कहा डरिये नहीं । उनका ‘डरिये नहीं’ के शब्द सिर्फ उनके मुख के शब्द नहीं थे पर उन्हे इसे बोलने की शक्ति पुनर्जीवित येसु से ही मिलती थी। हम आज यह भी याद करते हैं कि संत पापा जो सदा येसु के करीब रहे, उन्हीं से आध्यात्मिक शक्ति ग्रहण की और जब उनके इस दुनिया से जाने की बारी आयी तो उन्होंने कहा आईये हम पिता के पास चलें ।

भाईयो एवं बहनों, संत पापा जोन पौल चाहते थे कि ईश्वर की दया और प्रेम का प्रचार दुनिया के कोने-कोने में फैल जाये। वे जानते थे कि इस दुनिया के दुःखों समझने के पहले यह समझना उचित है कि ईश्वर की दया और उसका प्रेम मानव जाति के लिये कितना गहरा है। इसी बात को पूरी दुनिया को बताते हुए उन्होंने पोलैंड की अपनी अंतिम प्रेरितिक यात्रा में कहा था ईश्वर की महती दया से बढ़कर मानवता के लिये और कोई दूसरी आशा नहीं है।

इसके बाद संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने ईश्वर को धन्यवाद देते हुए कहा कि वे पूरी कलीसिया के नाम पर ईश्वर को धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने कलीसिया के लिये एक ईमानदार और उत्साही धर्म गुरू को प्रदान किया था।

और अन्त में संत पापा ने लोगों से प्रार्थना की अपील करते हुए कहा कि हम एक दूसरे के लिये प्रार्थना करें ताकि हम भी संत पापा जोन पौल द्वितीय के समान ही जीवित येसु की शिक्षा के अनुसार जी सकें, अपने ख्रीस्तीय बुलाहट में मजबुत रह सकें और दुनिया की किसी भी ताकत के सामने झुके नहीं, सुसमाचार का प्रचार करें और ईश्वर की महती दया और येसु के असीम प्रेम का प्रचार करें क्योंकि येसु के प्रेम में ही दुनिया की सच्ची शांति है।









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