2018-07-03 10:36:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय- स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 101


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें।

"मैं दया और न्याय का गीत गाऊँगा। प्रभु मैं तेरे आदर में भजन सुनाऊँगा। मैंने सन्मार्ग पर चलने की ठानी है। तू कब मेरे पास आयेगा? मैं अपने घर के आँगन में शुद्ध हृदय से जीवन बिताऊँगा। मैं अपनी आँखों के सामने कोई भी बुराई सहन नहीं करूँगा। मैं पथभ्रष्टों के आचरण से घृणा करता हूँ, वह मुझे आकर्षित नहीं कर सकता। मैं अपने को कुटिलता से दूर रखूँगा। मैं बुराई की उपेक्षा करूँगा।" 

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 101 वें भजन के प्रथम चार पद। इन्हीं पदों की व्याख्या से विगत सप्ताह हमने पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। इस बात का हम सिंहावलोकन कर चुके हैं कि स्तोत्र ग्रन्थ का 101 वाँ भजन दाऊद का गीत है। यह एक आदर्श राजा का संकल्प है जो ईश्वर में अपने विश्वास की अभिव्यक्ति करता तथा प्राप्त वरदानों के लिये उनकी स्तुति करता है। यह भजन एक राजा की प्रार्थना है जो युगयुगान्तर के लिये हम मनुष्यों की प्रार्थना बन गई है, ईश्वर के आदर में प्रशस्ति गान बन गया है। राजा इसराएली जाति का प्रमुख था जिससे अपेक्षा की जाती थी कि वह अपने लोगों के लिये आदर्श सिद्ध हो और अपने आचरण द्वारा लोगों को सच्चाई के मार्ग पर ले जाये तथा ईश्वर के प्रति अभिमुख रखे। प्राचीन व्यवस्थान के राजा दाऊद ने वही किया था और स्तोत्र ग्रन्थ का 101 वाँ उसका ही उदाहरण है।

श्रोताओ, 101 वें भजन का राजा एक विनीत और विनम्र व्यक्ति है वह उस मार्ग पर चलने का संकल्प करता है जो प्रभु ईश्वर ने मूसा द्वारा मानवजाति को दर्शाया है। उन नियमों का वह पालन करना चाहता है जो नियम मूसा द्वारा प्रभु ईश्वर ने स्वयं मानवजाति पर प्रकट किये हैं। ईश्वर के समक्ष वह यह प्रण करता है कि वह शुद्ध जीवन यापन करेगा तथा किसी प्रकार बुराई में लिप्त नहीं रहेगा। पथभ्रष्टों के आचरण उसे आकर्षित नहीं कर सकेंगे, कुटिलता उससे दूर रहेगी और बुराई उससे कोसों दूर रहेगी। भजन के दूसरे पद में राजा कहता है, "मैं अपने घर के आँगन में शुद्ध हृदय से जीवन बिताऊँगा।" इन शब्दों में राजा की नेक भावना और ज़िम्मेदारी को अभिव्यक्ति मिली है। वह प्रण करता है कि वह कुटिलता से दूर रहकर बुराई की उपेक्षा करेगा और अपने लोगों को भी ऐसी ही शिक्षा देगा। श्रोताओ, 101 वाँ भजन वस्तुतः विश्व के समस्त राष्ट्राध्यक्षों, राजनेताओं एवं ज़िम्मेदार व्यक्तियों को इस तथ्य के प्रति सचेत कराता है कि उन्हें उन्हीं बातों में लगना चाहिये जो सत्य पर आधारित हैं। उन्हें ऐसा ही आचरण करना चाहिये जो आदरणीय है; जो न्यायसंगत है, निर्दोष है; जो प्रीतिकर है, मनोहर है; जो उत्तम है और प्रशंसनीय हैः ऐसी ही बातों में वे लगें तथा अपने लोगों को भी मार्गदर्शन दें। 

आगे के पदों में राजा बताता है कि वह किस प्रकार लोगों को ईश नियमों पर चलना सिखायेगा। भजन के पांचवे पद में कहता है, "जो छिप कर अपने पड़ोसी की निन्दा करता है, मैं उसे चुप रहने के लिये विवश करूँगा। जो इठलाता और घमण्ड करता है, मैं उसे अपने पास नहीं रहने दूँगा।" सर्वप्रथम तो इन शब्दों द्वारा राजा यह घोषित करता है कि वह अपने लोगों से उसी प्रकार के आचरण की अपेक्षा रखेगा जैसा आचरण वह ख़ुद करता है। जिस प्रकार उसने प्रण किया है कि वह ईश नियमों पर चलेगा उसी प्रकार उसकी अपेक्षा रहेगी कि उसके अधीन रहनेवाले लोग भी वैसा ही करें। छिप कर पड़ोसी की निन्दा करनेवालों को वह चुप कर देगा और घमण्ड से चूर लोगों को अपने पास फटकने भी नहीं देगा।

आगे भजन के छः से लेकर आठ तक के पदों में कहता है, "मेरी कृपा दृष्टि देशभक्तों पर बनी रहती है, वे मेरे आस-पास निवास करें। जो सन्मार्ग पर चलता है वही मेरा सेवक हो सकता है। जो छल कपट करता है, वह मेरे यहाँ नहीं रह पायेगा। जो झूठ बोलता है, वह मेरी आँखों के सामने नहीं टिकेगा। मैं प्रतिदिन प्रातः देश के सब दुष्टों को चुप करूँगा। मैं प्रभु के नगर से सब कुकर्मियों को निकाल दूँगा।"

श्रोताओ, यह तो स्वाभाविक ही है कि राज दरबार में कई लोग ऐसे होते हैं जो अन्यों की बुराई में लगे रहते हैं और ऐसा राजा दाऊद के युग भी अवश्य हुआ होगा। कई लोग ऐसे ही षड़यंत्र रचा करते हैं कि आगे निकलने के लिये वे क्या करें? किसे दबायें और किसे उठायें। अपने ऐतिहासिक उपन्यासों में विख्यात लेखक शेक्सपियर ने ऐसे कई लोगों के कृतित्व हमारे समक्ष प्रस्तुत किये हैं। आज भले ही राज दरबारों का ज़माना नहीं रहा। राजतन्त्र ख़त्म हो गया है और लोकतंत्रवाद और बहुत से देशों में तो तानाशाही अस्तित्व में है। शासन करनेवालों के बीच भी ऐसा ही होता है जो राज दरबारों में हुआ करता है। एक राजनैतिक पार्टी को गिराने के लिये दूसरी राजनैतिक क्या-क्या नहीं कर डालती। राजनीति के गन्दे खेल से हम सब परिचित हैं। समाज में भी ऐसा ही है। आधुनिक क्लबों में, दफ्तरों में, फैक्टरियों में देखा जा सकता है कि अपना पद सम्भालने के लिये लोग क्या-क्या नहीं करते। इन सब षड़यन्त्रों के बीच 101 वें भजन के राजा की ही तरह कुछ ऐसे भी धर्मपरायण लोग होते हैं जो शांति बनाये रखना चाहते हैं और उसी को आगे बढ़ाने का संकल्प करते हैं जो इसके योग्य है। 101 वें भजन का राजा अपने राजदरबार में और अपनी प्रजा के बीच सच्चाई, न्याय, मैत्री और शांति की कामना करता था और उसी के अनुकूल शासन करता था। वह किसी प्रकार की कानाफूसी, असभ्यता, घमण्ड अथवा भेदभाव नहीं चाहता था। कहता है, "मेरी कृपा दृष्टि देशभक्तों पर बनी रहती है, वे मेरे आस-पास निवास करें।" वह अपनी प्रजा के बीच से उन लोगों की खोज करता है जो देश भक्त हैं, जो नियमों का पालन करते हैं और अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए सत्य एवं न्याय पर आधारित जीवन यापन करते हैं ताकि ऐसे लोग सबके कल्याण के लिये राजा के साथ सहयोग कर सकें। वह कहता है कि छल-कपट करने वाले और झूठ बोलने वाले उसके राज्य में सहयोग देने काबिल नहीं हैं अर्थात् नबी मूसा द्वारा मनुष्यों को ईश्वर से मिले नियमों का पालन करनेवाले लोग ही इस धरती पर सेवा करने के योग्य हैं। 101 वें भजन का राजा कहता है, "मैं प्रतिदिन प्रातः देश के सब दुष्टों को चुप करूँगा। मैं प्रभु के नगर से सब कुकर्मियों को निकाल दूँगा।" दुष्टों और कुकर्मियों के लिये राजा दाऊद के राज्य में जगह नहीं थी उसी प्रकार आज भी दुष्टों और कुकर्मियों के लिये हमारे जीवन में कोई जगह नहीं होनी चाहिये।








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