2018-06-26 15:50:00

विश्व के प्रति सम्मान, मानव शरीर के प्रति सम्मान की भावना से उत्पन्न होती है


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 26 जून 2018 (वाटिकन न्यूज़)˸ संत पापा फ्राँसिस ने सोमवार 25 जून को आमसभा में भाग लेने वाले, जीवन के लिए परमधर्मपीठीय अकादमी के 300 प्रतिभागियों से वाटिकन के क्लेमेंटीन सभागार में मुलाकात की।  

जीवन के लिए परमधर्मपीठीय अकादमी की सभा 25 से 26 जून तक आयोजित थी। उनसे मुलाकात कर संत पापा ने मानव जीवन के प्रति एक वैश्विक उत्तरदायित्व पर चर्चा की।

जीवन की सेवा में विज्ञान

संत पापा ने कहा कि "मानव पारिस्थितिकी" को प्रोत्साहन दिये जाने की आवश्यकता है ताकि हर चरण में जीवन के नैतिक एवं आध्यात्मिक गुणवत्ता को महत्व दिया जा सके। मानव व्यक्ति पर वैज्ञानिक अध्ययन किया जाना महत्वपूर्ण है किन्तु इसे व्यक्ति की उत्पत्ति के व्यापक अहसास के भीतर किया जाना चाहिए।

मृत्यु के लिए कार्य

उन्होंने कहा कि जब बच्चों को युद्ध एवं कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और वयोवृद्धों को त्याग दिया जाता है तब हम भी मृत्यु के कारणों में शामिल होते हैं। उन्होंने कहा कि ख्रीस्तीयों को अपने विश्वास में दृढ़ होना चाहिए और उन पापमय कार्यों का विरोध करने के लिए अधिक उत्साह के साथ अपने को समर्पित करना चाहिए।

मानव व्यक्ति की प्रतिष्ठा

संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय जैवनैतिकता, व्यक्ति के मूल्य को उसकी बीमारी से परिभाषित न करे। उसे हर चरण और जीवन की हर स्थिति में "मानव व्यक्ति की अपरिवर्तनीय गरिमा के दृढ़ विश्वास के साथ शुरू होना चाहिए, जैसा कि ईश्वर प्रत्येक व्यक्ति को प्यार करते हैं।"

समग्र दृष्टिकोण

एक समग्र दृष्टिकोण व्यक्ति को सम्पर्क और भिन्नता की उस पृष्टभूमि पर रखता है जहाँ हम जीते हैं, जो मानव शरीर से शुरू होता है। यह मानव शरीर ही है जिसके द्वारा वह पर्यावरण एवं अन्य जीवन जन्तुओं से जुड़ता है। संत पापा ने कहा कि जो लोग विश्व को ईश्वर का वरदान समझते हैं उन्होंने पहले अपने शरीर को ईश्वर का वरदान समझा है।

वैश्विक जैवनैतिकता

यदि हम पूरी तरह नैतिक व्यवस्था एवं तकनीकी सहायताओं पर निर्भर करते हैं तब जैवनैतिकता क्षेत्र हमें मानव व्यक्ति की प्रतिष्ठा की गारंटी कभी नहीं दे सकती। यह केवल "जिम्मेदार मानव सामीप्य के पर्याप्त समर्थन" से आ सकती है।

जीवन का अंतिम लक्ष्य

जीवन की संस्कृति हमेशा जीवन के अंतिम लक्ष्य की ओर देखती है। संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय प्रज्ञा उस विचार का पूर्ण समर्थन करे कि मरने के बाद "मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य ईश्वर के जीवन में सहभागी होना है" जहाँ हम सृजनहार के गर्भ में दृश्य और अदृश्य सभी चीजों के सामने अनन्त आश्चर्य में होंगे।  








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