2018-05-10 16:39:00

फोकोलारे आंदोलन के सदस्यों से मुलाकात करते संत पापा


लोप्पियानो, बृहस्पतिवार, 10 मई 2018 (रेई)˸ संत पापा फ्राँसिस ने नोमादेलफिया एवं लोप्पियानो की एक दिवसीय प्रेरितिक यात्रा पर बृहस्पतिवार को लोप्पियानो में फोकोलारे आंदोलन के सदस्यों से मुलाकात की तथा उनके सवालों का उत्तर दिया।

संत पापा ने कहा, मैं आप लोगों के बीच यहाँ छोटे शहर लोप्पियानो में अत्यन्त खुश हूँ जो दुनियाभर में जाना जाता है क्योंकि इसका जन्म सुसमाचार द्वारा हुआ है एवं यह सुसमाचार के द्वारा पोषित किया जाना चाहता है। यही कारण है कि येसु के अनेक शिष्य यहाँ तक कि दूसरे धर्मों के लोग भी इससे प्रेरित हैं। लोप्पियानो में सभी अपने घर के समान महसूस करते हैं।  
संत पापा ने अपनी यात्रा का कारण बतलाते हुए कहा मैं यहाँ आना एवं इसका दर्शन करना चाहता था क्योंकि इसने प्रभु सेवक कियारा लुबिक को प्रेरित किया था जो द्वितीय वाटिकन महासभा के निर्देश के अनुसार आज की कलीसिया के मिशन के आदर्श हैं।
संत पापा ने इस मुलाकात में लोगों के कई सवालों का उत्तर दिया। 

ईश्वर की नई आज्ञा को जीना ख्रीस्तीय जीवन का आरम्भिक बिन्दु है जहाँ हमें पहुँचना है आज के इस बदलते परिवेश में हम उसे किस तरह जी सकते हैं? 
इसके उत्तर में संत पापा ने ख्रीस्तीय समुदाय को सम्बोधित इब्रानियों को लिखे पत्र का उदाहरण देते हुए कहा कि उन बीते दिनों की याद करें जब आप ज्योति मिलने के तुरन्त बाद दुःखों के घोर संघर्ष का सामना करते हुए दृढ़ बने रहे, क्योंकि आप जानते थे कि इससे कहीं अधिक उत्तम एवं चिरस्थायी सम्पति आपके पास विद्यामान है। इसलिए आपलोग अपना भरोसा न छोड़ें क्योंकि आपका पुरस्कार महान है। आप लोगों को धैर्य की आवश्यकता है जिससे ईश्वर की इच्छा पूरी करने के बाद आपको वह मिल जाए जिसकी प्रतिज्ञा ईश्वर कर चुके हैं।"(ईब्रा.10: 32-36).
संत पापा ने कहा कि यहाँ हम ख्रीस्तीय समुदाय की यात्रा के दो महत्वपूर्ण शब्दों को पाते हैं भरोसा एवं धैर्य।
उन्होंने कहा कि भरोसा ख्रीस्तीय जीवन का आधार है ताकि हमारा हृदय ईश्वर की ओर लगा रहे और उनके प्रेम पर विश्वास कर सके, क्योंकि उनका प्रेम हर प्रकार के भय, प्रलोभन, गुप्त जीवन एवं अडम्बर को दूर कर देता है। संत पापा ने कहा कि उन्हें पवित्र आत्मा से खुलेपन की मांग करने की आवश्यकता है ताकि वे ईश्वर के महान कार्यों का साक्ष्य देने में सम्मान एवं कोमलता के साथ हमेशा एक बने रह सकें तथा कलाह एवं कुड़कुड़ाहट को बोने की हर प्रकार की बुराइयों को दूर करते हुए, प्रेम एवं सच्चाई में साहसी एवं ईमानदार शिष्य की तरह जी सकें। 
संत पापा ने उन्हें भरोसा में दृढ़ रहने की सलाह देते हुए प्रार्थना करने पर बल दिया तथा अब्राहम एवं मूसा का उदाहरण दिया जिन्हें ईश्वर के सामने बात करने का साहस था। 
धैय शब्द पर प्रकाश डालते हुए संत पापा ने कहा कि प्रेरित संत पौलुस ईश्वर एवं ख्रीस्तमय जीवन का चुनाव करने में धैर्य एवं दृढ़ता का परिचय देते हैं। उन्होंने कहा हमें अपने चुनाव में दृढ़ रहना है यहाँ तक कि उसके लिए कठिनाई और विरोध का ही सामना करना क्यों न पड़े, यह जानते हुए कि धीरज एवं दृढ़ता द्वारा आशा उत्पन्न होती है और आशा हमें कभी निराश नहीं करती। (रोम. 5: 3-5) संत पापा ने कहा कि संत पौलुस के लिए धीरज का आधार ईश्वर का प्रेम था जो पवित्र आत्मा के वरदानों के साथ हमारे हृदयों में डाला गया है एक ऐसा प्रेम जो हमें शक्ति प्रदान करता है ताकि हम दृढ़ता, शांति, सकारात्मक मनोभाव और कल्पना के साथ जी सकें, साथ ही साथ, कठिनाई के क्षणों को भी सहर्ष झेल सकें। यह मनोभाव ईश्वर की कृपा द्वारा आता है।

लोप्पियानो में शिक्षण केंद्रों, खासकर, सोफिया विश्वविद्यालय की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए संत पापा ने कहा कि "ये महान विरासत हैं जहाँ उन सभी मूल्यों की शिक्षा दी जा सकती है। मैं सलाह देता हूँ कि उनमें नई प्रेरणा जागृत की जाए, बृहद क्षितिज के लिए खोला जाए तथा सीमाओं के लिए प्रस्तुत किया जाए। यह महत्वपूर्ण है कि प्रशिक्षण योजना जो ठोस रूप से, खासकर, बच्चों, युवाओं, परिवारों एवं विभिन्न कार्यों से जुड़े लोगों को प्रभावित करता है। सभी चीजों का आधार एवं कुँजी प्रशिक्षणात्मक समझौता है जिसका महत्वपूर्ण तरीका है वार्ता।  
संत पापा ने कहा कि हमें अपने आप को प्रशिक्षित करने के लिए तीन भाषाओं का प्रयोग अत्यन्त महत्वपूर्ण है, मन, दिल एवं हाथ। हमें अच्छी तरह सोचने, महसूस करने एवं काम करने के लिए सीखने की जरूरत है। फादर पास्क्वाले फोरेसी जिन्होंने लोप्पियानो के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाई है, लिखते हैं, "काम केवल जीने का एक जरिया नहीं है बल्कि हमारे मानव व्यक्ति होने में अंतर्निहित है अतः जीवन को समझने के लिए वास्तविकता को जानने का एक माध्यम भी है। यह सच्चाई एवं प्रभावशाली मानव विकास का एक साधन है।" 

 








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