2018-05-04 12:06:00

भारत के सातवें राज्य ने किया धर्मान्तरण विरोधी कानून लागू


भोपाल, शुक्रवार, 4 मई 2018 (ऊका समाचार): उत्तराखण्ड भारत का सातवाँ राज्य है जिसने धर्मान्तरण विरोधी कानून लागू कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली उत्तराखंड राज्य सरकार ने 20 मार्च को विधेयक पारित किया था जिसपर राज्यपाल कृष्ण कांत पॉल ने 18 अप्रैल को हस्ताक्षर कर दिये।

राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी दर्शन सिंह रावत ने 2 मई को ऊकान्यूज़ डॉट कॉम को बताया कि बिल अब राजपत्र में प्रकाशित होने की प्रक्रिया में है जिसके बाद यह प्रभावी हो जायेगा।

नया कानून किसी नाबालिग अथवा महिला या फिर दलित लोगों एवं आदिवासी समूहों से संबंधित व्यक्ति के बलात धर्मान्तरण के लिये दो साल के कारावास की अवधि निर्धारित करता है।

जिन राज्यों में धर्मान्तरण विरोधी कानून लागू है वहाँ धर्मान्तरण विधि से एक महीने पहले राज्य के अधिकारियों को सूचित करना अनिवार्य है। धोखाधड़ी से, बलपूर्वक अथवा लालच देकर धर्मान्तरण भी अपराध निर्धारित किया गया है जिसके लिये जेल हो सकती है या फिर ज़ुर्माना भरना पड़ सकता है।

उत्तराखण्ड  भारत का सातवाँ राज्य है जिसने धर्मान्तरण विरोधी कानून लागू किया है। उड़ीसा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश एवं झारखण्ड में पहले से ही धर्मान्तरण विरोधी कानून लागू है।

नए कानून में यह भी कहा गया है कि एक धर्म के व्यक्ति द्वारा दूसरे धर्म की महिला के साथ केवल धर्मान्तरण के एकमात्र उद्देश्य से किया गया औपचारिक विवाह पारिवारिक अदालत द्वारा शून्य और रद्द किया जा सकता है।

उत्तराखण्ड स्थित बरेली के काथलिक धर्माध्यक्ष इग्नेशियस डिसूज़ा ने ऊका समाचार से कहा कि कलीसियाई अधिकारी नये कानून से वाकिफ़ हैं तथापि उनका विश्वास है कि यह उनके मिशन में बाधा नहीं बनेगा।

उन्होंने कहा, "हम दशकों से लोगों के बीच कल्याणकारी कार्यों एवं प्रचार मिशन में संलग्न हैं और हमारे समक्ष कभी भी कोई गंभीर समस्या नहीं आई है"। उन्होंने कहा, "नया कानून बलात अथवा लालच देकर धर्मान्तरण के खिलाफ़ है किन्तु काथलिक कलीसिया में इस प्रकार का कोई धर्मान्तरण न तो हुआ है और न कभी होगा। हमारा लक्ष्य केवल प्रभु येसु मसीह के शांति सन्देश का प्रचार करना है ताकि लोग बेहतर जीवन यापन कर सकें, धर्मान्तरण में हमारी कोई अभिरुचि नहीं है।"

इसी बीच, मेरठ के काथलिक धर्माध्यक्ष फ्राँसिस कालिस्ट ने कहा कि नये कानून पर वे इस समय  कुछ नहीं कह सकते इसलिये कि किस प्रकार कानून लागू किया जायेगा इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है।

सन् 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के दो दशक बाद धर्मान्तरण विरोधी कानून अस्तित्व में आया था किन्तु तब से अब तक किसी भी ख्रीस्तीय धर्मानुयायी को अपराधी करारा नहीं गया है। हालांकि, विगत दशक में कई चरमपंथी हिन्दू दलों ने ख्रीस्तीयों पर धर्मान्तरण का आरोप लगाकर पुलिस में शिकायत दर्ज़ की है।  

उत्तराखण्ड की एक करोड़ की कुल आबादी में अधिकाँश जनता हिन्दू धर्मानुयायी है। ख्रीस्तीय केवल एक प्रतिशत तथा मुसलमान 14 प्रतिशत हैं। 








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