2018-05-01 10:54:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय- स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 96-3


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें।

"प्रभु ने आकाश का निर्माण किया है। वह महिमामय और ऐश्वर्यशाली है। उसका मन्दिर वैभवपूर्ण और भव्य है। पृथ्वी के सभी राष्ट्रो! प्रभु की महिमा और सामर्थ्य का बखान करो। उसके नाम की महिमा का गीत गाओ। चढ़ावा लेकर उसके प्राँगण में प्रवेश करो। पवित्र वस्त्र पहन कर प्रभु की आराधना करो। समस्त पृथ्वी! उसके सामने काँप उठे।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 96 वें भजन के छः से लेकर नौ तक के पद। इन्ही पदों की व्याख्या से हमने विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिलः एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। 96 वें भजन में भजनकार हम सबसे आग्रह करता है कि हम ईश्वर के आदर में नया गीत गायें और सभी राष्ट्रों के समक्ष उनके मुक्ति कार्यों की घोषणा करे। ईश्वर, ईश्वर हैं वे सबकुछ को नया कर देते हैं, वे सृष्टि के प्रारम्भ से अब तक सब कुछ को नया करते रहे हैं इसलिये, यह भजन केवल इसराएली प्रजा को सम्बोधित नहीं है अपितु आज भी समसामयिक है। भजनकार वर्तमान युग के लोगों को भी ईश्वर के आदर में एक नया गीत गाने के लिये आमंत्रित करता है, वह चाहता है कि भूमण्डल का प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर के अपूर्व कार्यों को जाने और उनके आदर में नया गीत गाये, "क्योंकि प्रभु महान और अत्यन्त प्रशंसनीय है। वह सब देवताओं में परम श्रद्धेय है।" 

इस बात की ओर हमने आपका ध्यान आकर्षित किया था कि बाईबिल पंडितों के अनुसार, स्तोत्र ग्रन्थ का 96 वें वाँ भजन प्राचीन व्यवस्थान से लिये गये 25 उद्धरणों से रचा गया है। भजन के अन्त में हमें इसायाह के ग्रन्थ के 66 वें अध्याय के शब्द मिलते हैं जो ईसा पूर्व 516 में यानि मन्दिर की पुनर्स्थापना के अवसर पर लिखे गये थे। बाईबिल व्याख्याकारों का मानना है कि भजनकार प्रमाणित मूल पाठों की पवित्र सरणी या सूची पाठकों के समक्ष रखता तथा ईश्वर की आराधना के प्रति मानव मन में प्रेरणा जागृत करने का प्रयास करता है। उनके अनुसार इस भजन का लक्ष्य धरती पर भी उसी प्रकार ईश्वर की स्तुति को प्रोत्साहन देना है जिस प्रकार स्वर्गदूत स्वर्ग में प्रभु ईश्वर की स्तुति किया करते हैं ताकि धरती का प्रत्येक मनुष्य ईश्वर के रहस्यमय एवं पवित्र सौन्दर्य को पहचाने तथा उनकी आराधना कर सके। भजन के दसवें पद में भजनकार कहता है, "राष्ट्रों में यह घोषित करो कि प्रभु ही राजा है। उसने पृथ्वी का आधार सुदृढ़ किया है। वह निष्पक्षता से राष्टों का न्याय करेगा।" यहाँ भजनकार स्मरण दिलाता है कि प्रभु ईश्वर ही सृष्टिकर्त्ता हैं जिन्होंने पृथ्वी का आधार सुदृढ़ किया। प्रभु ईश्वर ही परम न्यायकर्त्ता हैं जो निष्पक्षता से राष्टों का न्याय करते हैं इसलिये मानव उनके आगे नतमस्तक होवे तथा निरन्तर उनकी महिमा के गीत गाते रहे।  

अब आइये स्तोत्र ग्रन्थ के 96 वें भजन के अन्तिम तीन पदों पर चिन्तन करें। ये पद इस प्रकार हैं, "स्वर्ग में आनन्द और पृथ्वी पर उल्लास हो, सागर की लहरें गर्जन करने लगें, खेतों के पौधे खिल जायें और वन के सभी वृक्ष आनन्द का गीत गायें; क्योंकि प्रभु का आगमन निश्चित्त है, वह पृथ्वी का न्याय करने आ रहा है। वह धर्म और सच्चाई से संसार के राष्ट्रों का न्याय करेगा।"

इन पदों द्वारा भजनकार स्मरण दिलाता है कि प्रभु ईश्वर ने मानव के हित में सृष्टि की रचना की है इसलिये स्वर्ग में जिस तरह आनन्द है उसी प्रकार पृथ्वी भी उल्लसित हो। इस धरती पर निवास करनेवाला मानव उल्लसित हो और आनन्द मनाये क्योंकि सबकुछ पर ईश्वर का नियंत्रण है। वे सब कुछ को नया करते रहते हैं। हर दिन एक नया दिन होता है, हर सप्ताह एक नया सप्ताह, हर माह एक नया महीना, हर साल एक नया साल, हर मौसम एक नया मौसम और  नित्य नये होते रहते हैं वृक्षों के फूल और फल। एक नए दिन की संभावना पर आकाश में विचरनेवाली चिड़िया चहचहाने लगती है तथा उज्ज्वल हरे रंग का तोता डालियों पर झूम-झूम कर अपने उत्साह को दर्शाता है। भजनकार कहता है, "पृथ्वी पर उल्लास हो, सागर की लहरें गर्जन करने लगें, खेतों के पौधे खिल जायें और वन के सभी वृक्ष आनन्द का गीत गायें" क्योंकि सृष्टिकर्त्ता प्रभु ईश्वर ही न्यायकर्त्ता हैं और उनका आगमन अवश्यंभावी है।

पृथ्वी आनन्द मनायें क्योंकि जो कुछ इस पृथ्वी पर है वह सबकुछ मनुष्य के ख़ातिर रचा गया है। पृथ्वी इसलिये आनन्द मनायें क्योंकि ईश्वर की कृपा से वह ऐसा स्थल बनी है जहाँ मनुष्य निवास कर सकते हैं, जहाँ मनुष्य जीने के सभी साधनों का स्वयं इन्तज़ाम कर सकते हैं। जीने के लिये आवास,वस्त्र और भोजन सबकुछ मनुष्य पृथ्वी से ही पा सकता है। मनुष्य इस प्रकार नई वस्तुओं का उत्पादन कर ईश्वर से मिले वरदान की प्रकाशना कर सकता है इसीलिये भजनकार कहता है, "पृथ्वी पर उल्लास हो, सागर की लहरें गर्जन करने लगें, खेतों के पौधे खिल जायें और वन के सभी वृक्ष आनन्द का गीत गायें"। और यह सब इसलिये कि प्रभु के सामर्थ्य से कोलाहल भी शांत होकर व्यवस्थित हो जाता और जंगली झाड़ियाँ भी उर्वक खेतों में परिवर्तित हो जाती हैं। अस्तु, प्रकृति को नित्य नया कर और बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर प्रभु उसे एक शांतिपूर्ण राज्य में परिवर्तित कर देते हैं। संघर्षों से घिरे और अव्यवस्थित स्थलों पर वे कानून और व्यवस्था कायम करते क्योंकि उनके कार्य अपूर्व हैं, उनकी सभी गतिविधियाँ पूर्ण हैं, ईश्वरीय हैं और इनमें सहभागी होने के लिये वे हम सबको आमंत्रित करते हैं।

प्रभु नित्य इस पृथ्वी पर आते रहते हैं, वे पृथ्वी के कण-कण में समाये हुए हैं इसीलिये भजनकार कहता है, प्रभु का आगमन निश्चित्त है, वह पृथ्वी का न्याय करने आ रहा है। वह धर्म और सच्चाई से संसार के राष्ट्रों का न्याय करेगा।" प्रभु धर्म और सच्चाई से न्याय करेंगे और उन सब लोगों पर उनकी कृपा सदा बनी रहेगी जो ईश आदेशों पर चल अपने जीवन के दायित्वों का उचित रीति से निर्वाह करते तथा हर अवस्था में प्रभु ईश्वर की आराधना करते, उनके आदर में गीत गाते तथा उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हैं।








All the contents on this site are copyrighted ©.