2018-03-17 15:53:00

करुणा के महान संत पाद्रे पियो


सन जोवान्नी रोतोनदो, शनिवार, 17 मार्च 2018 (वाटिकन न्यूज)˸ करुणा के महान संत पाद्रे पियो के निधन की 50वीँ बरसी एवं उनके स्तीगमता (दिव्य घाव) के 100 साल पूरा होने पर, संत पीयो के सम्मान में संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 17 मार्च को संत जोवन्नी रोतोनदो की प्रेरितिक यात्रा की।

पाद्रे पियो के नाम से प्रसिद्ध संत पियो एक आधुनिक कापुचिन संत हैं। लोग उनका अत्यधिक सम्मान करते हैं क्योंकि उनका विश्वास बहुत गहरा था और वे एक आज्ञाकारी, प्रार्थनामय व्यक्ति थे। वे प्रभु के सेवक माने जाते हैं जिन्होंने बहुत अधिक दुःख सहा जिसमें उनका दिव्य घाव भी शामिल है।

कपुचिन फादर ब्रैन शोर्टाल के अनुसार उन्होंने इसलिए बहुतों का हृदय जीत लिया था क्योंकि ̎ वे लोगों तक पहुँचते थे।̎ उन्होंने बतलाया कि 1918 में पाद्रे पियो ने पवित्र घाव का पहली बार अनुभव किया था जो पचास सालों तक बना रहा। प्रथम विश्व युद्ध के एक साल बाद उनके पवित्र घाव की बात इटली में एवं दूसरी जगहों में फैलने लगी किन्तु अपनी प्रसिद्धि बढ़ने पर भी वे साधारण एवं प्रार्थनामय व्यक्ति बने रहे। उन्हें कई बार पूछा गया कि वे कौन हैं तब उनका जवाब होता था कि वे एक गरीब धर्मबंधु हैं जो प्रार्थना करता है किन्तु प्रभु की योजना अलग थी।

फादर शोर्टाल ने बतलाया कि ̎वे हर दिन प्रभु के क्रूस पर चढ़ते थे तथा प्रत्येक दिन शारीरिक पीड़ा एवं अकेलापन महसूस करते थे जैसा कि ख्रीस्त ने क्रूसित किये जाने पर महसूस किया था। इस प्रकार उनके विश्वास की परीक्षा ली गयी एवं अपने विश्वास के लिए उन्हें बहुत अधिक दुःख उठाना पड़ा किन्तु वे धीर बने रहे। उन्होंने प्रार्थना कभी नहीं त्यागा।

पाद्रे पियो के पदचिन्हों पर चलते हुए संत पापा फ्राँसिस पेत्रेलचिना गये जहाँ पाद्रे पियो बढ़े, उसके बाद वे सन जोवन्नी रोतोन्दो की ओर रवाना हुए जहाँ उन्होंने ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

दो साल पहले संत पापा फ्राँसिस ने करुणा के असाधरण जयन्ती वर्ष में उनके पवित्र अवशेष का संत पेत्रुस महागिरजाघर में स्वागत किया था। कपुचिन फादर के अनुसार ये दोनों ही अवसर संत पियो को करुणा के मिशनरी के रूप में प्रचार करना है, उन्हें ख्रीस्त के सच्चे सेवक तथा उनके लिए दुःख सहने वाले पुरोहित के रूप में प्रकट करना है।

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सन जोवन्नी रोतोन्दो एवं पेत्रोलचिना की यात्रा के द्वारा संत पापा पाद्रे पियो के महान प्रेम को स्वीकार करना चाहते हैं।

पाद्रे पियो का निधन सन् 1958 में 81 वर्ष की आयु में हुआ जो अब पच्चास साल हो चुका है फिर भी हम उनसे क्या सीख सकते हैं, इस पर फादर शोर्टाल ने कहा कि उनकी विरासत है कि पीड़ा बेकार नहीं जाती। येसु उन लोगों को अनदेखा नहीं करते जो दुःख सहते हैं। ईश्वर पीड़ितों की ओर से आँखें बंद नहीं कर लेते बल्कि उनके साथ रहते हैं क्योंकि उन्होंने स्वयं क्रूस पर दुःख सहा है। वे हमें प्रोत्साहन देते हैं कि हम दुःखों से न डरें किन्तु अपनी आस्था प्रभु पर बनाये रखें।

ख्रीस्तयाग के उपरांत अपनी एक दिवसीय प्रेरितिक यात्रा समाप्त कर संत पापा फ्राँसिस वाटिकन लौटेंगे।

कपुचिन धर्मसमाज में प्रवेश करने के बाद जब पाद्रे पियो 16 साल के थे उन्होंने बीमारी के साथ संघर्ष किया। एक युवा पुरोहित के रूप में उन्हें दूसरो के लिए उन्हें शारीरिक एवं नैतिक पीड़ा का सामना करना पड़ा। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सैनिकों के लिए एक चैपलिन के रूप में उन्हें अपने हाथ में पीड़ा का साक्ष्य देना पड़ा।

1918 में उन्होंने शारीरिक चिन्ह स्टिगमटा प्राप्त किया जो उनकी प्रार्थना के प्रत्युत्तर के रूप में था। पाद्रे पियो स्वयं कहते हैं कि इसेक लिए उन्हें लगातार दर्द होता था।  

पाद्रे पियो पाप-स्वीकार संस्कार के द्वारा ईश्वर की करुणा एवं दया को पश्चतापी लोगों के लिए प्रदान करने हेतु घंटो व्यतीत करते थे।

पाद्रे पियो ने कहा था, ̎ मैंने प्रभु से एक समझौता किया है कि जब मेरी आत्मा शोधकाग्नि की ज्वाला से शुद्ध हो जाएगी और स्वर्ग में प्रवेश करने के योग्य हो जाएगी, मैं स्वर्ग के द्वारा पर तब तक खड़ा रहूँगा जब तक कि मैं अपने अंतिम बेटे, बेटियों को प्रवेश करते न दे लूं।̎

पाद्रे पीयो लोगों को आध्यात्मिक के साथ-साथ शारीरिक सहायता प्रदान करना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने एक अस्पताल की स्थापना करने का स्वप्न देखा था। उनका स्वप्न 1956 में साकार हो गया जब सन जोवन्नी रोतोन्दो में ̎कासा सोल्लियेवो देल्ला सोफ्रेंत्सा ̎ नामक एक अस्पताल की स्थापना की गयी।

पाद्रे पियो ने अस्पताल के संबंध में अपनी कल्पना को बतलाया था कि यह उस स्तर तक बढ़ेगा जहाँ तकनीकी रूप से उत्तम चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध की जा सकेंगी।

उनकी सोच थी कि यह प्रार्थना एवं विज्ञान का स्थल होगा जहाँ मानवजाति क्रूसित ख्रीस्त में ही अपना एक मात्र चरवाहा प्राप्त करेगी।

आज अस्पताल में 1000 पलंग की सुविधा उपलब्ध है और जहाँ देश और विदेश के लोग भी चंगाई पाने के लिए आते हैं।








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