2018-02-20 16:40:00

आध्यात्मिक साधना : आलस्य के विरूद्ध, येसु के समान प्रेम


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 20 फरवरी (रेई): "जीवन की चाह एवं उसकी प्यास के विपरीत है आलस्य", यह है संत पापा फ्राँसिस एवं परमधर्माध्यक्षीय रोमी कार्यालय के सदस्यों की आध्यात्मिक साधना के चौथे चिंतन की विषयवस्तु।

संत पापा फ्राँसिस वाटिकन के अपने सभी सहयोगियों के साथ, इस सप्ताह आध्यात्मिक साधना हेतु रोम के बाहर अरिच्चा आध्यात्मिक साधना केंद्र में हैं।

आध्यात्मिक साधना के तीसरे दिन संचालक फादर होसे तोलेनतिनो दी मेनडोनका ने आलस्य एवं जीवन के उत्साह को खो देने पर चिंतन किया। उन्होंने गौर किया कि कभी-कभी आलस्य हमपर आक्रमण करता और हमें बीमार बना देता है। जिसका प्रभाव प्यास (चाह) की कमी में प्रकट होता है।

उन्होंने कहा, "जब हममें प्यास नहीं रह जाती, तब हम सूखने लगते हैं। हम चाह रखने, मुलाकात, वार्तालाप, आदान-प्रदान, काम एवं प्रार्थना करने के उत्साह को खो देते हैं। दूसरों के प्रति हमारी उत्सुकता समाप्त हो जाती है और हमारे लिए सब कुछ नीरस प्रतीत होने लगता है।"      

ऐसा लगता है कि मैं जो जीवन जी रहा हूँ वह दूसरे व्यक्ति का है। प्रेरितिक पत्र ‘एवंजेली गौदियुम’ सचेत करता है कि "कब्र की मानसिकता" हमें मीठी उदासी से चिपके रहने हेतु प्रेरित करती है। उन्होंने कहा, "यह स्पष्ट है कि आलस्य या नीरसता एक ऐसी स्थिति है जो केवल गोली दवाई से ठीक नहीं हो सकती बल्कि इसकी देखभाल के लिए पूरे व्यक्तित्व को सक्रिय होना है। हमारे जीवन में कई छिपी पीड़ाएँ हैं जिनके कारणों को खोजना है और जिनका मूल मानव एकाकी के रहस्य में है।

फादर होशे ने कहा कि एक दूसरी समस्या है, मानसिक शिथिलता। मानसिक शिथिलता भी एक याजक को बुरी तरह प्रभावित करता है। यह सामान्यतः तब होता है जब व्यक्ति परित्यक्त महसूस करता और उसमें केवल खालीपन रह जाता है जिसको वह चिंता, शराब, सामाजिक संचार माध्यमों, खाने-पीने या अति सक्रियता आदि द्वारा भरने का प्रयास करता है। यह खालीपन उन लोगों में बालावस्था में दुःख, तिरस्कार, शोषण, आर्थिक अभाव एवं युद्ध आदि के कारण से हो सकता है।

उदासी जो आलस्य से जुड़ी होती है हमें धनी युवक की याद दिलाती है जिसने सभी आज्ञाओं का पालन किया किन्तु निश्चित समय पर ईश्वर पर भरोसा रखने की अपेक्षा अपने धन का चुनाव किया। फादर ने कहा कि हमारी उदासी कई बार हमारी निर्णय लेने की असमर्थता से आती है।

अतः उन्होंने सलाह दी कि हम अपनी चाह की शिथिलता की जाँच करें क्योंकि समस्या हमेशा कामों से नहीं बल्कि सही प्रेरणा को ग्रहण नहीं करने से आती है।








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