2018-02-13 10:37:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय- स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 92-93


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें।

"तूने मुझे जंगली भैंसे जैसा बल प्रदान किया है। मैं उत्तम तेल से नहाता हूँ। मेरी आँख ने शत्रुओं की पराजय देखी है, मेरे कान ने अपने दुष्ट बैरियों के विषय में सुना है। धर्मी खजूर की तरह फलता-फूलता है और लेबानान के देवदार की तरह बढ़ता है।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 92 वें भजन के 11 से लेकर 13 तक के पद। विगत सप्ताह इन्हीं पदों की व्याख्या से हमने पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। स्तोत्र ग्रन्थ के 92 वें भजन में इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया गया है कि विधर्मी भले ही  घास की तरह बढ़ते हों, सब दुष्ट भले ही फलते-फूलते हों किन्तु वे सदा-सर्वदा के लिये नष्ट किये जायेंगे इसलिये कि दुष्ट लोग बुराई में लगे रहते हैं। वे प्रभु के कार्यों को देखने अथवा पहचानने में असमर्थ होते हैं।

श्रोताओ, अपने विश्वास के कारण भजनकार आनन्दित होता तथा ईश्वर की क्रियाशीलता का अनुभव प्राप्त करता है। उसमें यह चेतना है कि उसके विश्वास के कारण ही5 ईश्वर ने उसे चुना और उसे उत्तम तेल से अभिमंत्रित किया। ईश्वर का कृपा पात्र बनने के कारण उसने ख़ुद अपनी आँखों से शत्रुओं की पराजय देखी है और उसके कानों ने दुष्टों के विषय में सुना है। कहता है, "धर्मी खजूर की तरह फलता-फूलता है और लेबानान के देवदार की तरह बढ़ता है।" खजूर और लेबनान के देवदार के विषय में हमने विगत सप्ताह श्रोताओ को बताया था कि ये दो वृक्ष मध्यपूर्व के देशों के लिये अति उपयोगी वृक्ष हैं। खजूर के पेड़ और देवदार के वृक्ष अपने आस-पास बहुत से छोटे पौधों को भी सुरक्षा प्रदान करते हैं और अपनी परिपक्वाता में भी, अपनी वृद्धावस्था के बावजूद फलदायी होते तथा कृपा एवं प्रेम की सजीवता प्रकट करते हैं। भजनकार कहता है कि धर्मी पुरुष इन्हीं वृक्षों के सदृश हैं, जो तूफानों के आगे भी अचल रहते हैं। 92 वें भजन का रचयिता आग्रह करता है कि, हम भी ईश्वर के महान कार्यों को पहचानें और उनके लिये ईश्वर का स्तुतिगान करें।        

आगे, इस भजन के अन्तिम तीन पदों में भजनकार खजूर एवं लेबनान के देवदारों की गुणवत्ता का बखान करता और कहता है कि इन वृक्षों के अस्तित्व का उद्देश्य प्रभु ईश्वर के न्याय की घोषणा करना है। ये पद इस प्रकार हैं, "वे प्रभु के मन्दिर में रोपे गये हैं, वे हमारे ईश्वर के प्राँगण में फलते-फूलते हैं। वे लम्बी आयु में भी फलदार हैं। वे रसदार और हरे-भरे रहते हैं, जिससे वे प्रभु का न्याय घोषित करें: "प्रभु मेरी चट्टान है। उसमें कोई अन्याय नहीं।"   

श्रोताओ, 92 वें भजन के इन पदों में भजनकार इस तथ्य की ओर हमारा ध्यान आकर्षित कराता है कि हालांकि, खजूर और लेबनान के देवदार उपयोगी वृक्ष हैं, बहुत से छोटे पौधों को सुरक्षा प्रदान करते तथा वृद्धावस्था के बावजूद फलदायी होते हैं फिर भी यदि वे ईश्वर की महिमा और उनके न्याय का बखान न करें तो वे बेकार हैं। यदि इन वृक्षों के माध्यम से मनुष्य ईश्वर के भले कार्यों को न देख पाये तो इन वृक्षों का कोई प्रयोजन नहीं। इसी प्रकार मनुष्य का अन्तिम लक्ष्य ईश्वर की महिमा तथा ईश्वर में आनन्द मनाना होना चाहिये।

और अब आइये स्तोत्र ग्रन्थ के 93 वें भजन पर दृष्टिपात करें। पाँच पदों वाले इस लघु गीत में विश्व के अधिपति रूप में ईश्वर की महिमा का बखान किया गया है। ये पद इस प्रकार हैं, "प्रभु राज्य करता है। वह प्रताप का वस्त्र ओढ़े और सामर्थ्य का कटिबन्ध बाँधे है। उसने पृथ्वी का आधार सुदृढ़ बनाया है। तेरा सिंहासन प्रारम्भ से स्थिर है। तू अनन्त काल से विद्यमान है। प्रभु! बाढ़ की लहरें उमड़ रही हैं, बाढ़ की लहरें गरज रहीं हैं, बाढ़ की लहरें घोर गर्जन कर रही हैं। आकाश के ऊपर विराजमान प्रभु बाढ़ के गर्जन और महासागर की प्रचण्ड लहरों से कहीं अधिक शक्तिशाली है। प्रभु! तेरे आदेश अपरिवर्तनीय है। तेरे मन्दिर की पवित्रता अनन्त काल तक बनी रहेगी।"  

श्रोताओ, स्तोत्र ग्रन्थ में कई ऐसे भजन हैं जो जैरूसालेम पर राज्य करनेवाले राजाओं का ही नहीं अपितु ईश्वर और उनके राज्य का बखान करते हैं तथा 93 वें वाँ भजन इऩ्हीं में से एक है। भजनकार प्रभु ईश्वर को प्रताप का वस्त्र ओढ़े और सामर्थ्य का कटिबन्ध बाँधे राजाओं में देखता है। कुछेक शास्त्रियों का मानना है कि दाऊद के युग में राजाओं का राजसिंहासन पर विराजमान होना केवल एक वर्ष की अवधि के लिये रहा करता था। ऐसा राजा को विनीत रखने के उद्देश्य से किया जाता था। यह राजा को यह स्मरण कराने के लिये था कि यदि वह अपनी प्रजा की उचित देखभाल नहीं करेगा तो उससे राजा का पद छीन लिया जायेगा। द्वितीय, उसे स्मरण दिलाना था कि ईश्वर ही इस्राएल के राजा हैं और उनसे बढ़कर कोई अन्य राजा नहीं। इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए 93 वें भजन का रचयिता मानों कहता है, प्रभु राजा हैं, वे अनादि से राजा हैं और अनन्त काल तक राजा रहेंगे। बाढ़ की प्रचण्ड लहरों ने विश्व का विनाश करना चाहा किन्तु प्रभु ईश्वर का प्रताप और उनका सामर्थ्य इन प्रचण्ड लहरों से कहीं अधिक शक्तिशाली है। अतीत में प्रभु ईश्वर ने स्वतः को राजा रूप में तब प्रकट किया जब उन्होंने सृष्टि की रचना की और विश्व को स्थापित किया। श्रोताओ, बाईबिल धर्मग्रन्थ में सृष्टि के प्रारम्भ से ही बाढ़ की प्रचण्ड लहरों को विनाश का पर्याय माना गया। नूह के समय में पाप की शक्ति रूपी बाढ़ ने सम्पूर्ण सृष्टि को अपनी गिरफ्त में जकड़ लिया था किन्तु उत्पत्ति ग्रन्थ के आठवें अध्याय के अनुसार, "ईश्वर को नूह और उसके साथ पोत के सब जंगली जानवरों और सब पशुओं का ध्यान रहा। ईश्वर ने पृथ्वी पर हवा बहायी और पानी घटने लगा। श्रोताओ, आज भी प्रभु ईश्वर विश्व और उसके लोगों का इसी प्रकार ध्यान रखते हैं, ज़रूरत है केवल उनमें अपने विश्वास को सुदृढ़ करने की।








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